यूपी उपचुनाव में सपा ने खुद को किया साबित वहीँ मुख्य विपक्षी दल बसपा को लगा झटका

लखनऊ । यूपी की तीन सीटों के लिए हुए उपचुनाव के नतीजे भाजपा के भीतर विमर्श का विषय इसलिए बन गए हैं कि रामपुर जैसी सीट तो उसने जीत ली लेकिन खतौली सीट गंवा दी है।

मैनपुरी लोकसभा सीट पर कांटे का मुकाबला माना जा रहा था लेकिन वह भी समाजवादी पार्टी के पक्ष में एकतरफा चली गई। इनके सबके बावजूद नतीजे भाजपा के मुकाबले बीएसपी के लिए कहीं ज्यादा बड़े झटके साबित हुए हैं। बीएसपी उपचुनाव में मैदान में नहीं थी लेकिन उपचुनाव के नतीजों के जरिए उसका भविष्य भी बहुत कुछ तय होना था। इसीलिए बीएसपी की नजरें उपचुनाव के नतीजों पर थीं।

2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा को महज एक विधानसभा सीट पर जीत मिली थी। अपनी इस हार पर बसपा की तरफ से कहा गया था कि जो लोग भी भाजपा को हराना चाहते हैं उन्हें यह समझना होगा कि समाजवादी पार्टी भाजपा को नहीं हरा सकती उसके पक्ष में भले ही कितना गोलबंद होकर वोट किया जाए।

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अगर 2022 में गैर भाजपा मतदाताओं ने समाजवादी पार्टी के बजाय बीएसपी के पक्ष में गोलबंद होकर वोट किया होता तो भाजपा को हराया जा सकता था।

इसी साल जून महीने में दो लोकसभा सीटों आजमगढ़ और रामपुर में उपचुनाव हुए। समाजवादी पार्टी ये दोनों चुनाव हार गई। इसे समाजवादी पार्टी के लिए बहुत बड़ा झटका माना गया क्योंकि ये दोनों सीटें उसकी गढ़ मानी जाती थीं।

आजमगढ़ में तो समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को ही हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद गोला विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव हुआ उसमें भी समाजवादी पार्टी हार गई। तब भी मायावती ने कहा था यूपी के खीरी का गोला गोकर्णनाथ विधानसभा उपचुनाव भाजपा की जीत से कहीं ज्यादा समाजवादी पार्टी की 34298 वोटों से हार के लिए चर्चा में है।

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बसपा जब उपचुनाव नहीं लड़ती है और यहां भी चुनाव मैदान में नहीं उतरी तो अब एसपी अपनी इस हार के लिए कौन-सा नया बहाना बनाएगी?

राजनीतिक गलियारों में कहा जा रहा था कि मैनपुरी लोकसभा और दो विधानसभा सीटों के उपचुनाव में अगर समाजवादी पार्टी हार गई तो 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले उसका शटर डाउन हो जाएगा। बीएसपी के उत्थान का रास्ता निकल सकता है। समाजवादी पार्टी ने न केवल मैनपुरी सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा बल्कि सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल के साथ खतौली विधानसभा सीट जीत ली।

रामपुर सीट भले ही उसने गंवा दी हो लेकिन वह अपने वोट बैंक का मनोबल बनाए रखने में तो कामयाब रही ही साथ ही यह संदेश देने में भी कामयाब रही कि भाजपा को हराने का दमखम उसी में है। यह बात बसपा के लिए एक तगड़े झटके की तरह है।

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