‘भगवान गणेश प्रत्येक युग में अवतरित होते हैं। सतयुग में भी महोत्कट रूप में कश्यप तथा अदिति के यहां अवतरित हुए। त्रेता युग में उन्होंने माता पार्वती की आराधना से प्रसन्न होकर उनको बाल कृष्ण से रिझाया तथा देवताओं और ऋषि मुनियों का कल्याण किया।’ श्रीगोपालजी धाम, दयालबाग में श्रीगणेश पुराण कथा का आज छठा दिन था।
गुरुदीपिका योगक्षेम फाउंडेशन द्वारा आयोजित इस प्रवचन में कथा वाचक डॉ दीपिका उपाध्याय ने बताया कि माता पार्वती के द्वारा त्रिसंध्या क्षेत्र में की गई तपस्या के परिणाम स्वरुप भगवान गणेश ने बाल लीलाएं की। बाल लीला करते हुए बहुत से राक्षसों का भी वध किया। कथावाचक ने भगवान विनायक के मयूरेश अवतार का सुंदर चित्रण किया।
नाग माता का ध्रुव तथा गरुड़ माता विनता के बैर की कथा सुनाते हुए बताया कि इस बैर को भगवान गणेश ने ही शांत कराया था। माता विनता के पुत्र मयूर को वाहन बनाने के कारण वह मयूरेश कहलाए और उन्होंने शेषनाग के बंधन में पड़े संपाति, जटायु आदि को मुक्त कराया। यही नहीं भगवान गणेश ने वासुकी तथा शेषनाग को अपने आभूषण रूप में स्वीकार किया।
भगवान गणेश के अस्त्र-शस्त्र सूर्य के तेज से निर्मित हैं, इस प्रसंग को सुनाते हुए कथावाचक ने भगवान सूर्य तथा देवी संज्ञा का प्रसंग सुनाया कि किस प्रकार सूर्य के तेज से भगवान शिव का त्रिशूल, भगवान विष्णु की कौमोदकी गदा तथा भगवान गणेश के परशु, पाश, अंकुश आदि बने हैं।
फाउंडेशन के निदेशक रवि शर्मा ने बताया कि कल कथा का पूर्ण विश्राम होगा तथा इस अवसर पर राधाअष्टमी का उत्सव मनाया जाएगा।
इस अवसर पर श्याम सुंदर बवेजा, अनुज गुप्ता, नीलम गौतम, मंजु बवेजा, देवेंद्र गोयल, दीपा लश्करी, वीना कालरा, कान्ता शर्मा आदि उपस्थित रहे। भजन कीर्तन की व्यवस्थाएं वरदान उपाध्याय ने संभाली।