मानव शरीर को पाकर दिव्य तप करना चाहिए – रमेश ओझा

Deepak Sharma
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मानव शरीर को पाकर दिव्य तप करना चाहिए - रमेश ओझा

श्रीमद्भागवत सप्ताह ज्ञानयज्ञ का आयोजन: मनुष्य जीवन का उद्देश्य भोग नहीं, भगवान की भक्ति है

छटीकरा, उत्तर प्रदेश – गांधी मार्ग स्थित श्रौतमुनि निवास आश्रम में आयोजित 85वें होली महोत्सव के अंतर्गत श्रीमद्भागवत सप्ताह ज्ञानयज्ञ की शुरुआत हुई। इस आयोजन में परम भागवत कथा प्रवक्ता रमेश भाईश्री ओझा ने महत्वपूर्ण धार्मिक उपदेश दिए। उन्होंने बताया कि मनुष्य जीवन का उद्देश्य केवल सांसारिक भोग नहीं है, बल्कि यह भगवान की भक्ति और दिव्य तप करने के लिए प्राप्त हुआ है।

इस कार्यक्रम के दौरान गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने श्रीमद्भागवत सप्ताह ज्ञानयज्ञ की व्यासपीठ का पूजन-अर्चन किया। इस अवसर पर वेदों के मंत्रोच्चारण के बीच श्रीमद्भागवत का पूजन गुरु गंगेश्वरानंद ट्रस्ट के परमाध्यक्ष स्वामी आनंद भास्करानंद, स्वामी वेदानंद, स्वामी अद्वैतमुनि, महादेव बापू, सुभाष अग्रवाल और सुभद्रा अग्रवाला द्वारा किया गया।

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कथा प्रवक्ता रमेश ओझा ने दिए गहरे आध्यात्मिक उपदेश

रमेश भाईश्री ओझा ने कहा, “मनुष्य का जीवन भोग की वस्तु नहीं है, बल्कि यह भगवान के प्रति भक्ति और तप का मार्ग है। आजकल का मानव अपनी शारीरिक इच्छाओं और संसारिक भोगों में उलझा हुआ है। भगवान के प्रति भक्ति छोड़कर, वह केवल भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए भाग रहा है।”

उन्होंने आगे कहा कि “प्रभु से बढ़कर कोई अन्य सुख और संपत्ति नहीं है। श्रीमद्भागवत कथा सुनने और समझने से व्यक्ति का कल्याण होता है। यह कथा आत्मा को शुद्ध करती है और मनुष्य को सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।”

भाईश्री ओझा ने कहा कि संसारिक सुख और दुख का कारण केवल अशक्ति है। जब व्यक्ति भगवान से और भगवान की भक्ति से दूर होकर संसार के भोगों में उलझता है, तो यही अशक्ति उसे दुख की ओर ले जाती है। लेकिन जब इस अशक्ति को भगवान की भक्ति में बदल दिया जाता है, तो मोक्ष का मार्ग खुल जाता है और मनुष्य का जीवन सफल हो जाता है।

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“इस मानव शरीर को पाकर हमें दिव्य तप करना चाहिए,” यह विचार रमेश ओझा ने अपने संबोधन में व्यक्त किए। उनका मानना है कि जब व्यक्ति अंत:करण की शुद्धि करता है, तब उसे अनंत सुख की प्राप्ति होती है। भगवान को अर्पित भाव से किया गया हर कर्म ही दिव्य तप है।

धार्मिक आयोजन में श्रद्धालुओं की भारी भीड़

इस कार्यक्रम में अनेक साधु-संतों और धार्मिक गुरुओं की उपस्थिति ने माहौल को और भी दिव्य बना दिया। इस दौरान मुनि, महंत और अन्य धार्मिक प्रतिनिधियों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। प्रमुख अतिथियों में मुकामी महंत चौधरी निरंजन दास, महामंडलेश्वर प्रकाश मुनि, स्वामी भूमानंद, स्वामी निर्गुण दास, स्वामी ओमश्वरानंद, स्वामी निर्मल दास, स्वामी श्यामानंद, स्वामी दिव्यानंद, स्वामी राममुनी, स्वामी परमानंद सरस्वती और डॉ. अनिलानंद सहित कई अन्य नामचीन हस्तियां मौजूद थीं।

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इस आयोजन में श्रद्धालु बड़ी संख्या में उपस्थित थे और उन्होंने श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण कर अपने जीवन में भक्ति और साधना के महत्व को समझने का प्रयास किया।

समापन और दीक्षा का आह्वान

कथा के अंत में, आयोजकों ने सभी श्रद्धालुओं को भगवान के प्रति भक्ति में मन, वचन, और क्रिया से लगने की प्रेरणा दी। स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने इस आयोजन को समाप्त करते हुए कहा कि केवल भक्ति और दिव्य कर्म ही मनुष्य के जीवन का सही उद्देश्य है। उन्होंने सभी श्रद्धालुओं को अपने जीवन में भक्ति और साधना को बढ़ाने का आह्वान किया।

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