वन विभाग की भूमिका पर उठ रहे सवाल, संरक्षित वानिकी भूमि पर निर्माण की किसने दी इजाजत

  • सोता रहा वन विभाग, धड़ल्ले से होता रहा अवैध निर्माण
  • फॉरेंसिक जांच से खुल सकता है नए एवं पुराने पेड़ों का रहस्य

आगरा /किरावली। टीटीजेड क्षेत्र स्थित किरावली के गांव विद्यापुर गांव के समीप गाटा संख्या 149 में निर्माणाधीन पेट्रोल पंप की भूमि के सामने संरक्षित वन भूमि पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगवाए गए पेड़ों को काटने की गुत्थी उलझती जा रही है। वन विभाग लगातार पेड़ों के कटने से इंकार कर रहा है, लेकिन मौके पर हालात कुछ और बयां कर रहे हैं।

आपको बता दें कि संरक्षित वन भूमि पर संरक्षित वन भूमि पर कोई भी गैर वानिकी कार्य पूरी तरह निषेध होता है, इसके बावजूद मौके पर फावड़ा से लेकर लगातार जेसीबी चली, अवैध मिट्टी का खनन हुआ, झाड़ी कटी, पेड़ काटे गए, इसके बावजूद वन विभाग सोता रहा। पेट्रोल पंप के सामने जो पेड़ लगे हैं, वह पूरी तरह नए दिख रहे हैं, उन पर डाले गए नंबर भी पूरी तरह साफ हैं। जबकि पुराने फोटो एवं वीडियो में इनकी काफी भिन्नता दिख रही है। इस भूमि की गूगल मैपिंग के जरिए ली गई तस्वीरों में पेड़ों की संख्या अत्याधिक दिख रही है, जबकि मौके पर पेड़ों की संख्या पूरी तरह नगण्य है। पेट्रोल पंप के दाईं एवं बायीं तरफ पेड़ों की संख्या पूरी दिख रही है तो पेट्रोल पंप के सामने के पेड़ों को आसमान खा गया या जमीन निगल गई। 2015-2016 सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रत्येक 3 मीटर की दूरी पर पेड़ लगवाए गए थे, वह दूरी भी अब बिल्कुल नहीं दिख रही है।

ड्रोन मैपिंग के जरिए ली गई वर्तमान तस्वीर में गायब दिख रही पेड़ों की कतार

आवागमन के रेडियस में भी होने लगा घालमेल

इस मामले में वन विभाग लगातार पेट्रोल पंप संचालक को राहत दे रहा है। पेड़ कटने से लेकर संरक्षित वन भूमि पर हुई छेड़छाड़ को नजरंदाज करते हुए स्वीकृत नक्शे के विपरीत रेडियस के आधार पर आवागमन का संपर्क मार्ग बनवाने की कोशिश की जा रही है। नियमानुसार 13 मीटर रेडियस के अनुसार रोड बनाना होता है, लेकिन मौके पर स्थिति यह बन रही है कि 20 मीटर के रेडियस पर अनाधिकृत तरीके से आवागमन का मार्ग बनवाने की कोशिश की जा रही है। 28 मार्च 2019 को भारत सरकार द्वारा जारी की गई एनएचएआई की रेडियस का निर्धारण करने की गाइडलाइन के अनुसार ही वन विभाग निर्धारण करता है।

फॉरेंसिक जांच से हो सकता है भंडाफोड़

इस मामले में शिकायतकर्ता के अनुसार मौके पर लगाए गए जिन पेड़ों को वन विभाग और पेट्रोल पंप संचालक द्वारा नवीन बताया जा रहा है, अगर उन पेड़ों की फोरेंसिक जांच की जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी हो सकता है। एक दशक पहले लगाए गए पेड़ों की गहराई स्पष्ट हो जाएगी। वन विभाग लगातार इससे बच रहा है। अपनी गिरेबान फंसने के डर से कोई भी बोलने के लिए तैयार नहीं है।

एसडीओ करने लगे गुमराह

इस मामले में वन विभाग के एसडीओ अरविंद कुमार मिश्रा लगातार पेट्रोल पंप संचालक के बचाव में दिख रहे हैं। उन्होंने पेड़ों को नुकसान और काटने के मामले में संचालक से जुर्माना वसूलने की बात तो स्वीकारी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की कमेटी सीईसी को सूचना देने के नाम पर कन्नी काट ली। इससे पहले तक वह पेड़ों के कटने और नुकसान पहुंचाने से ही इंकार कर रहे थे। वहीं उनके द्वारा बताया गया कि संचालक द्वारा मिट्टी भराई की अनुमति प्राप्त की गई है जबकि संरक्षित वन भूमि पर यह सब पूरी तरह निषेध है।

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