ISRO History : भारत की अंतरिक्ष यात्रा 1975 में आर्यभट्ट से शुरू हुई

Dharmender Singh Malik
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आप सब जानते ही हैं धीरे-धीरे भारत देश बहुत प्रगति कर रहा है और दूसरे देशों में अपना मान बढ़ा रहा है। ऐसे में विज्ञान ने भी भारत देश में बहुत अधिक प्रगति की है, इसमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण योगदान इसरो का होता है। आज के समय में विज्ञान से जुड़ी या फिर अंतरिक्ष से जुड़ी कोई भी वार्ता होती है, तो इसरो का नाम टीवी और अखबारों पर आने लगता है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि इसरो है क्या और क्या है इसका पूरा नाम? तो चलिए आज हम आपको आपके इन सवालों का जवाब  देने वाले हैं।

Who is The Founder of ISRO

भारत का सबसे बड़ा स्पेस सेंटर जोकि कर्नाटक राज्य की राजधानी बेंगलुरु में स्थित है यह एक ऐसा स्थान है, जिसने भारत को गर्व महसूस कराने में अपनी पूरी मेहनत लगा दी है. इसका निर्माण 15 अगस्त 1959 में किया गया था. इसरो की स्थापना करने वाले व्यक्ति जिन्हें इसरो के पिता के रूप में माना जाता है उनका नाम विक्रम अंबालाल साराभाई है। इस अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की नींव रखने वाले मुख्य व्यक्ति विक्रम साराभाई ही थे। आज के समय में यदि अनुमान लगाया जाए तो लगभग 17000 व्यक्ति इस अंतरिक्ष अनुसंधान में कार्यरत हैं। सबसे अचंभित कर देने वाली बात तो यह है कि वे सभी वैज्ञानिक अपने परिवार से दूर रहते हैं और उन्होंने अपना अमूल्य जीवन इसरो को समर्पित कर दिया है।

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इस अनुसंधान द्वारा कई सारे भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम किए गए, जिनकी शुरुआत सन 1962 में हुई थी। भारतीय अनुसंधान ने पूरे देश में अपनी एक ऐसी छाप छोड़ी है कि यदि उनके द्वारा किए गए खर्चों का आंकलन किया जाए तो वह इसरो द्वारा खर्चे जाने वाले आंकड़ों से काफी हद तक कम है। यहां तक कि सबसे अधिक सैटेलाइट भारत के इस अनुसंधान द्वारा ही छोड़े गए हैं ऐसा रिकॉर्ड ऐतिहासिक तौर पर दर्ज किया जा चुका है।

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इसरो का इतिहास (ISRO History)

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान आज जिस मुकाम पर है इसके पीछे एक गहरा इतिहास छुपा हुआ है भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान की इस सफलता का राज इसके पीछे छुपी हुई कड़ी मेहनत और देश के प्रति समर्पित होने वाले व्यक्ति हैं जिन्होंने आज इसरो का नाम पूरे विश्व में सबसे ऊपर लाकर खड़ा कर दिया है। इसरो एक ऐसा नाम है जिसकी शुरुआत 1920 के दशक में ही हो गई थी, जब वैज्ञानिक एस.के. मित्रा ने कोलकाता शहर में भूमि आधारित रेडियो प्रणाली को लागू करने के लिए और आयन मंडल की ध्वनि के लिए कई सारे प्रयोग किए थे। बाद में देश के कुछ और जाने-माने वैज्ञानिक भी वैज्ञानिक सिद्धांतों के निर्माण के लिए आगे आए, जिनमें से सीवी रमन और मेघनाद सहाय मुख्य थे. इन दोनों का भी वैज्ञानिक सिद्धांतों को पूर्ण करने में महत्वपूर्ण योगदान था।

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कुछ समय पश्चात लगभग सन् 1945 के बाद एक ऐसा समय आया जब भारत धीरे-धीरे विकास करने लगा, ठीक इसी प्रकार अंतरिक्ष अनुसंधानों को लेकर भी कई सारे महत्वपूर्ण विकास किए जाने लगे. सन 1945 के दशक में 2 महान वैज्ञानिक जिन्होंने सबसे पहले अपनी सोच और समझ से इसरो के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन दोनों वैज्ञानिको का नाम होमी भाभा और विक्रम साराभाई था। उन्होंने कई सारे प्रयोग करके अंतरिक्ष अनुसंधानों का निर्माण किया जिसमें सबसे पहले उन्होंने कॉस्मिक किरणों का अध्ययन किया। बाद में उन्होंने वायु परीक्षण, कोलार खानो में गहरे भूमिगत प्रयोग और ऊपरी वायुमंडल का संपूर्ण अध्ययन करके एक मुख्य अध्ययन अनुसंधान प्रयोगशाला और कुछ विद्यालयों एवं स्वतंत्र स्थानों का निर्माण किया।

उन दोनों में कुछ ऐसी लगन थी जिन्होंने कई सारी खोज व निर्माण को अंजाम दिया। इसके लिए धीरे-धीरे उन्होंने अनुसंधान बनाने शुरू किए और भारत सरकार को भी अपने अंतरिक्ष अनुसंधान में रुचि दिखाने के लिए प्रोत्साहित किया वह एक ऐसा समय था जिस समय धन की उपलब्धता बहुत कम थी, इसलिए उन्होंने 1950 में परमाणु ऊर्जा विभाग की स्थापना की, जिसका प्रयोग पूरे भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए धन अर्जित करने के लिए किया गया। कुछ परीक्षण ऐसे थे जो निरंतर वैज्ञानिकों द्वारा जारी रखे गए, जिसमें मौसम विभाग, पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के पहलुओं पर परीक्षण आदि था।

भारत की जनता को अंतरिक्ष और अंतरिक्ष से जुड़ी किसी भी बात पर विश्वास दिलाना इतना आसान नहीं था, इसलिए जब सन् 1957 में सोवियत यूनियन ने स्पूतनिक 1 को सफलतापूर्वक लॉन्च कर दिया, तो बाकी पूरी दुनिया में अंतरिक्ष से जुड़ी सभी बातों पर विश्वास किया जाने लगा और अंतरिक्ष से जुड़ी सभी बातों को अहमियत भी दी जाने लगी। उसके बाद ही सन 1962 में भारत सरकार द्वारा भारतीय राष्ट्रीय अनुसंधान समिति बनाई जाने का फैसला लिया गया तत्पश्चात इसरो के जनक विक्रम साराभाई के साथ मिलकर भारतीय राष्ट्रीय अनुसंधान समिति ने ऊपरी वायुमंडल के अध्ययन के लिए एक रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन बनाया जिसकी स्थापना तिरुवंतपुरम के थुम्बा में की गई।

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सन 1969 में अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन को तत्कालीन रूप से इसरो का नाम दे दिया गया. भारत देश के नागरिकों और सरकार को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका और महत्व समझाते हुए इसरो के विकास में विक्रम साराभाई का अपना महत्वपूर्ण योगदान रहा और अधिक विकास के लिए उन्होंने आवश्यक दिशा-निर्देशों के साथ इसरो को 1 महत्वपूर्ण स्थान दिया। इस प्रकार धीरे-धीरे इसरो में अपने महत्वपूर्ण सहयोग द्वारा उन्होंने राष्ट्र को कई सारी अंतरिक्ष आधारित सेवाएं स्वतंत्र रूप से प्रदान की।

भारत में जब पहला रॉकेट लांच इन स्टेशन बनाया गया तब तिरुवनंतपुरम से सफलतापूर्वक भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा प्रथम रॉकेट अंतरिक्ष की ओर लांच किया गया। भारतीय वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत थी, कि इस लांच में उन्होंने सफलता प्राप्त की।

सन 1975 के अप्रैल महीने की 19 तारीख को पहली बार भारतीय वैज्ञानिकों ने एक उपग्रह का लांच किया। इसे ‘आर्यभट्ट’ नाम दिया गया था और इसे रूस के वैज्ञानिकों की सहायता से लांच किया गया था। इस लॉन्च की सफलता के लिए कई सारे देशों ने भारत देश को बधाई भी दी थी।

19 अप्रैल, 1975 को भारत ने अपने पहले उपग्रह आर्यभट्ट के सफल प्रक्षेपण के साथ अंतरिक्ष युग में एक बड़ी छलांग लगाई। प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री के नाम पर, उपग्रह का प्रक्षेपण भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ। सोवियत संघ की मदद से, आर्यभट्ट को रूस में कपुस्टिन यार प्रक्षेपण स्थल से aKosmos-3M प्रक्षेपण यान का उपयोग करके कक्षा में लॉन्च किया गया था।

इस ऐतिहासिक क्षण ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान और प्रौद्योगिकी में एक नए युग की शुरुआत की। पृष्ठभूमि अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत की रुचि 1960 के दशक की शुरुआत में डॉ. विक्रम साराभाई के मार्गदर्शन में शुरू हुई, जिन्हें व्यापक रूप से भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक माना जाता है। राष्ट्रीय विकास के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की क्षमता को पहचानते हुए, भारत सरकार ने 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना की।

इसरो का प्राथमिक उद्देश्य अंतरिक्ष अनुसंधान और ग्रहों की खोज को आगे बढ़ाते हुए राष्ट्रीय विकास के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग करना था। आर्यभट्ट का जन्म 5वीं शताब्दी के भारतीय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट के सम्मान में नामित, उपग्रह भारत की समृद्ध वैज्ञानिक विरासत का एक प्रमाण था।

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इस परियोजना का नेतृत्व समर्पित भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की एक टीम ने किया, जिन्होंने उपग्रह को डिजाइन और विकसित करने के लिए अथक प्रयास किया। 360 किलोग्राम वजनी आर्यभट्ट एक्स-रे खगोल विज्ञान, सौर भौतिकी और आयनोस्फेरिक अध्ययन में प्रयोग करने के लिए विभिन्न प्रकार के वैज्ञानिक उपकरणों से सुसज्जित था। सोवियत संघ के साथ सहयोग आर्यभट्ट का सफल प्रक्षेपण भारत और सोवियत संघ के बीच सहयोगात्मक प्रयास से संभव हुआ।

1972 में हस्ताक्षरित एक समझौते के हिस्से के रूप में, सोवियत संघ उपग्रह के लिए तकनीकी सहायता और एक प्रक्षेपण वाहन प्रदान करने पर सहमत हुआ। सोवियत अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक सिद्ध वर्कहॉर्स कोसमोस-3एम रॉकेट को आर्यभट्ट को कक्षा में ले जाने के लिए चुना गया था। उपग्रह को 19 अप्रैल, 1975 को रूस में कपुस्टिन यार प्रक्षेपण स्थल से लॉन्च किया गया था। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम पर प्रभाव आर्यभट्ट के प्रक्षेपण ने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित किया, जिसने देश को स्पा के विशिष्ट क्लब में पहुंचा दिया।

मिशन की सफलता ने भारतीय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों का आत्मविश्वास बढ़ाया, जिससे भविष्य में और अधिक महत्वाकांक्षी परियोजनाओं का मार्ग प्रशस्त हुआ। इसके बाद के वर्षों में, भारत ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में तेजी से प्रगति करना जारी रखा, संचार, रिमोट सेंसिंग और मौसम विज्ञान के लिए कई उपग्रह लॉन्च किए। इसके अलावा, आर्यभट्ट की सफलता ने भारत की स्वतंत्र उपग्रह प्रक्षेपण क्षमताओं की नींव रखी।

आज, भारत के पास पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) और जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) सहित उन्नत लॉन्च वाहनों की एक श्रृंखला है, जिन्होंने कई घरेलू और विदेशी उपग्रहों को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किया है। 19 अप्रैल, 1975 को आर्यभट्ट का प्रक्षेपण भारत के अंतरिक्ष इतिहास में एक निर्णायक क्षण था।

इस सफल मिशन ने पिछले पांच दशकों में अंतरिक्ष अनुसंधान और प्रौद्योगिकी में भारत की प्रभावशाली प्रगति के लिए मंच तैयार किया। जैसे-जैसे भारत अंतरिक्ष में नई सीमाएं तलाशना जारी रखता है, आर्यभट्ट की विरासत देश के अंतरिक्ष युग में प्रवेश की गौरवपूर्ण याद दिलाती रहेगी और इसके वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की प्रतिभा और समर्पण का प्रमाण बनी रहेगी।

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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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