यूपी पुलिस की वेबसाइड पर पांच लाख के दो इनामियाँ सहित 20 बड़े इनामी
वर्ष 1995 में छत्ता के कारोबारी की फिरौती न मिलने पर कर दी थी हत्या
आगरा। यूपी में ठोको नीति चल रही है, अपराधियों में खाकी की पूरी दहशत है, मानवाधिकार नियमों को ताक पर रख खाकी आएदिन मुठभेड़ कर अपराधियों को जेल भेज रही है। उसी नक्शेकदम पर चल रही आगरा पुलिस छुटभय्ये बदमाशों को लँगड़ा लूला कर कार्रवाई में लगी है, लेकिन आगरा जिले के सबसे बड़े इनामी डकैत का कोई सुराग नहीं लगा पा रही है। यूपी पुलिस की वेबसाइड पर आगरा से मोस्टवांटेड अपराधी शो हो रहा है, उस डकैत पर 50 हजार रुपये का ईनाम है। पुलिस व टीमें उसकी तलाश में 27 सालों में कोई ठोस कदम नहीं ले पाईं। गांव में पुलिस महज खानापूर्ति करने जाती है, लोग वहीं बात कहते हैं, जो उन्होंने 27 साल पहले कही थी, कि डकैत का परिवार पूर्व में ही गांव से पलायन कर चुका है। आगरा पुलिस आजतक इनामी डकैत जिंदा है या मर गया इस बात का निस्ताहरण नहीं कर सकी है। ग्रामीण यह मानकर चलते हैं कि डकैत मर चुका है। पुलिस आज भी उसे जिंदा मानकर चल रही है, जबकि रामनरेश का कोई अतापता नहीं है। 27 साल से लापता बदमाश को तलाशने में आगरा पुलिस का नेटवर्क फेल हो गया है, हालांकि रामनरेश का पिछले वर्षों में किसी तरह की अवैध गतिविधियों में नाम नहीं आया है।
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बड़े कांड के बाद बेवसाइट होती है अपडेट
कानपुर कांड के बाद से सीएम योगी ने जिलेवार अपराधियों की सूची बनाने के लिए के कप्तानों के पेच कसे थे। जिले में मोस्ट वांटेड अपराधियों की बात की जाए तो तकरीबन 1722 अपराधियों की कुंडली तैयार हो चुकी है। लेकिन पुलिस वेबसाइड पर सबसे बड़ा अपराधी पिछले दसियों साल से आगरा का मोस्ट वांटेड अपराधी रामनरेश सिंह है। जिसका सुराग पुलिस सालों से नहीं लगा सकी है। परिवार के लोग पुलिस के डर से पलायन कर चुके हैं। जब कोई बड़ी वारदात होती है, तो पुलिस आज भी खानापूर्ति के लिए गांव जाती है।
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जिंदा है या मर गया ये है बहस का मुद्दा
ठाकुर रामनरेश पुत्र कालीचरण अयेला सैंया का रहने वाला है। चार भाइयों में सबसे बड़ा था। उसकी शादी हो गई थी। गांव में वो सीधा स्वाभाव का था। करीब 23 साल पहले गांव से खेत घर बेंच कर पूरा परिवार मुरैना जाकर रहने लगा था। गांव में वह गलत सोहबत में रहकर छोटे-मोटे अपराध करने लगा था। 1995 में थाना छत्ता क्षेत्र से एक कारोबारी का अपहरण किया और फिरौती न मिलने पर उसकी हत्या कर दी थी। एक सफलता ने उसके पर लगा दिए। रामनरेश आज जरायम की दुनिया का बड़ा नाम है। उसके ऊपर थानों में दर्जनों मुकदमें कायम है। जो हत्या, लूट, अपहरण और मारपीट के है। पचास हजार का इनामी बदमाश रामनरेश मोबाइल क्रांति से पहले का अपराधी है। करीब 27 साल से पुलिस को चकमा दे रहा है। ग्रामीणों का तो यहां तक कहना है कि वह मर चुका है, लेकिन पुलिस उसे आज भी अपनी फाइलों और बदमाशों की लिस्ट में टॉप पर जिंदा किये हुए है।
वषों से है 50 हजार का इनाम
रामनरेश के ऊपर सिटी के थाना छत्ता में लूट, हत्या, अपहरण और मारपीट के दर्जनों मुकदमा दर्ज है। उसकी आपराधिक पृष्ठभूमि को देखते हुए पुलिस ने उसके ऊपर पचास हजार का इनाम घोषित किया है। पिछले 18 साल से पचास हजार का इनाम ही चला आ रहा है। पुलिस उसको पकड़ नहीं पा रही है और न कोई सुराग लगा सकी है। पुलिस ने अपनी तरफ से पकड़ने के लिए कोई साकार प्रयास नहीं किये हैं। विकास दुबे या उस जैसे अपराधी पर पहले दिन ही ढाई लाख का इनाम हुआ और आठ दिन के अंदर ही पांच लाख रुपये का ईनाम घोषित कर दिया है। जबकि रामनरेश पर आठ भी दसियों साल से 50 हजार का इनाम चला आ रहा है।
परिजनों को नहीं किया ट्रैस
रामनरेश के परिवार के लोग अपने गांवों से सालों पहले पलायन कर गए हैं। पुलिस सिर्फ गांव में ही जाकर पूछताछ करके चली आती है। पुलिस ने गैंग के सदस्यों के परिजनों को भी खोजने की जहमत नहीं उठाई है। पुलिस चाहे तो क्या नहीं कर सकती। पुलिस ने अपने आपको बहुत एडवांस कर लिया है। एक स्टेट में पुलिस की कई टीमें काम करती है। बदमाशों को पकड़ने के लिए बाकायदा एसटीएफ को लगाया जाता है। हर जिले में एंटी डकैती सेल बनी हुई है। उसके बाद भी पुलिस की कोई भी टीम इनामी रामनरेश या उसके परिजनों को तलाश नहीं कर सकी है।
ध्वस्त होता पुलिसिया नेटवर्क
कई सालों तक थानों पर तैनात सिपाही ही पुलिस के सटीक नेटवर्क जोड़ते है। किसी भी बड़े क्राइम को खोलने की जिम्मेदारी सिपाहियों को दी जाती है। हालांकि सर्विलांश व साइबर सैल टीमें जब से बनी हैं, पुलिस का मैन टू मैन मुखिबर तंत्र खतम हो गया है। पुलिस अब मोबाइल नेटवर्क के जरिये अपराधी तक पहुंचने की कोशिश करती है। आज भी कुछ अपराधी है, ऐसे हैं, जो मोबाइल का इस्तेमाल नहीं करते। पुलिस का कहना होता है कि बदमाश चंबल के बीहड़ में कूंद जाते हैं। यहां तीन राज्यों की सीमाएं पास होने का पूरा फायदा उठा रहे हैं। वर्ष 2012 में 42 थानों में करीब 1664 लोगों के खिलाफ हिस्ट्रीशीट खोली हुई थी। वह संख्या अब ढाई हजार के करीब है।
इनमें से भी हैं कई कागजी बदमाश
यूपी के प्रतापगढ़ में सुभाष यादव और सभापति यादव दोनों पर पांच लाख का इनाम है। गोरखपुर के राघवेंद्र सिंह व मेरठ के बदन सिंह पर ढाई लाख का इनाम है। बनारस से मनीष सिंह सहित करीब पांच बदमाशों पर दो लाख के इनाम हैं। आगरा से ठाकुर रामनरेश सिंह, बुलंदशहर से विनोद कुमार, लखनऊ के सलीम उर्फ मुख्तार शेख, सहारनपुर के सुधीर, मुज्जफरनगर से संजीव नल, सुनील यादव, अजीज सहित 13 बदमाश 50 हज़ार के इनामियाँ हैं। इस लिस्ट की हक़ीक़त जान ली जाए तो रामनरेश की तरह कई यूपी पुलिस बेवसाइट की शोभा बढ़ा रहे मिलेंगे।
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यूपी पुलिस की वेबसाइड पर पांच लाख के दो इनामियाँ सहित 20 बड़े इनामीवर्ष 1995 में छत्ता के कारोबारी की फिरौती न मिलने पर कर दी थी हत्याबड़े कांड के बाद बेवसाइट होती है अपडेटजिंदा है या मर गया ये है बहस का मुद्दावषों से है 50 हजार का इनामपरिजनों को नहीं किया ट्रैसध्वस्त होता पुलिसिया नेटवर्कइनमें से भी हैं कई कागजी बदमाश