नए संसद भवन में महिला आरक्षण बिल की पेशकश का संकेत

नई दिल्ली। केंद्र सरकार के द्वारा आगामी संसद सत्र में महिला आरक्षण बिल पेश करने की संकेत मिल रही है, जो नए संसद भवन में हो सकता है। सूत्रों के अनुसार, संसद के विशेष सत्र के दौरान इस बिल को बुधवार को पेश किया जा सकता है। यह खबर सूत्रों के आधार पर आ रही है।

मोदी सरकार ने संसद के पांच दिन के सत्र से पहले आयोजित सर्वदलीय बैठक में विपक्षी गठबंधन “इंडिया” सहित राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के कई दलों द्वारा महिला आरक्षण विधेयक को पारित करने की मांग की थी। इस पर मोदी सरकार ने उन्हें समय पर निर्णय लेने का ऐलान किया है। इस बैठक में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिला आरक्षण को लेकर गहरी बहस हुई। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सहयोगी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता प्रफुल्ल पटेल ने कांग्रेस और उसके सहयोगियों की मांग का समर्थन किया है। साथ ही, भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस), तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) और बीजू जनता दल (बीजद) ने सरकार से संसद की कार्यवाही को नए संसद भवन में स्थानांतरित करने के महत्वपूर्ण अवसर पर महिला आरक्षण विधेयक पारित करने की अपील की है।

तृणमूल कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी में महिला सांसदों की बड़ी संख्या का उल्लेख करते हुए महिलाओं के आरक्षण के लिए विधेयक की मांग की है। इस संदर्भ में बीजद के नेता पिनाकी मिश्रा ने कहा कि नए संसद भवन के साथ एक नए युग की शुरुआत होनी चाहिए और महिला आरक्षण विधेयक को पारित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक इस विचार के बड़े समर्थक हैं। राकांपा के नेता पटेल ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि यह विधेयक आम सहमति से पारित होगा।

हालांकि, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और समाजवादी पार्टी जैसी कुछ क्षेत्रीय पार्टियों ने महिलाओं के लिए इस तरह के किसी भी आरक्षण में पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जाति की महिलाओं के लिए कोटा निर्धारित करने की मांग की है।

महिला आरक्षण से संबंधित मांगों के बारे में पूछे जाने पर, संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने बताया कि सर्वदलीय बैठकों के दौरान पार्टियां अलग-अलग मांगें करती हैं, और इसमें अधिक ध्यान नहीं दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि उपयुक्त समय पर इस मुद्दे पर फैसला होगा। इस तरह का विधेयक पहले 2010 में राज्यसभा द्वारा पारित किया गया था, जिसमें लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान था। हालांकि, यह संसद के निचले सदन में पारित नहीं हो सका और लोकसभा के भंग होने के साथ ही यह स्वत: रद्द हो गया।

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