गर्मी के बढ़ते प्रभाव के साथ ताजमहल, जो भारत का एक प्रमुख पर्यटन स्थल और विश्व धरोहर है, प्रदूषण की चपेट में आकर पर्यटकों के लिए भी असहनीय हो गया है। आगरा का प्रदूषित माहौल और लू के थपेड़े पर्यटकों के लिए मुश्किलें बढ़ा रहे हैं, वहीं ताजमहल के सफेद संगमरमर पर प्रदूषण और मानव-प्रेरित क्षय का प्रभाव भी गहरा हो गया है।
आगरा के पर्यावरणीय संकट का सामना
ताजमहल के बगल से बहने वाली यमुना नदी, जो कभी शहर की जीवनरेखा हुआ करती थी, अब प्रदूषित नाले में बदल चुकी है। नदी का दूषित पानी संगमरमर को रंग बदलने पर मजबूर कर देता है। हाइड्रोजन सल्फाइड जैसे रसायन संगमरमर पर दाग छोड़ते हैं और स्मारक के स्वरूप को प्रभावित करते हैं। यमुना नदी की तलहटी में फैली गंदगी और कीड़े भी ताजमहल के रंग को खराब करने में योगदान दे रहे हैं।
आगरा में बढ़ता प्रदूषण
आगरा में मेट्रो विस्तार योजना और बढ़ते वाहनों की संख्या से ट्रैफिक जाम और प्रदूषण में बढ़ोतरी हो रही है। 1993 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा ताजमहल के संरक्षण के लिए दिए गए आदेश के बावजूद, आगरा की वायु गुणवत्ता लगातार गिरती जा रही है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट के अनुसार, आगरा में PM2.5 का स्तर अक्सर 300 μ\mug/m³ तक पहुंच जाता है, जो WHO की सुरक्षित सीमा से छह गुना अधिक है।
पर्यटन का प्रभाव और संरक्षण की आवश्यकता
आगरा में पर्यटन उद्योग भी समस्या का एक हिस्सा बन चुका है। लाखों पर्यटक ताजमहल के दौरे पर आते हैं, लेकिन उनकी उपस्थिति संरचनात्मक अखंडता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है। पर्यावरणविदों और स्थानीय लोगों का मानना है कि ताजमहल का संरक्षण करने के लिए एक व्यापक योजना की जरूरत है, जिसमें औद्योगिक उत्सर्जन को नियंत्रित करना, सीवेज उपचार प्रणाली में सुधार करना और पर्यटकों की संख्या को नियंत्रित करना शामिल है।
आवश्यक कदम और सरकारी पहल
रिवर कनेक्ट कैंपेन के पर्यावरणविद् डॉ. देवाशीष भट्टाचार्य ने यमुना नदी के पुनरोद्धार की मांग की है। उनका कहना है कि औद्योगिक उत्सर्जन को रोकने, नदी के स्वास्थ्य को बहाल करने और स्मारक के संरचनात्मक मूल्यांकन के लिए संसाधनों में वृद्धि की आवश्यकता है। साथ ही, पर्यटन स्थलों के लिए वैकल्पिक उपायों को बढ़ावा देना चाहिए ताकि दबाव कम हो सके।
स्मारक की खामोश चीख
ताजमहल की खामोश चीख एक हताश अपील है, जिसे नजरअंदाज किया जा रहा है। पर्यावरणीय संकट के समाधान में देरी से यह अनमोल धरोहर अपरिवर्तनीय क्षय की ओर बढ़ सकती है। भारत सरकार और संबंधित विभागों को इस संकट का हल निकालने के लिए त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए। अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो यह महान स्मारक हमारी पर्यावरणीय विफलताओं का प्रतीक बन सकता है।
आखिरकार, सवाल यह है कि क्या ताजमहल अपने इस संकट से उबर पाएगा, या यह हमारी असफलताओं का एक और भव्य स्मारक बनकर रह जाएगा?