आगरा: अखिल भारतीय जाट महासभा में लंबे समय से सुलग रही आंतरिक कलह आखिरकार खुलकर सामने आ गई है। महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, कुंवर शैलराज सिंह ने संगठन के कामकाज में व्याप्त गंभीर अनियमितताओं और मनमानी का आरोप लगाते हुए अपने पद से सार्वजनिक रूप से इस्तीफा दे दिया है। उनका यह इस्तीफा आज मथुरा में चल रहे महासभा के प्रांतीय सम्मेलन के दौरान आया है, जो संगठन के भीतर गहरे असंतोष और बिखराव की ओर इशारा कर रहा है।
अपने त्यागपत्र के साथ जारी किए गए एक विस्तृत बयान में कुंवर शैलराज सिंह ने संगठन की कार्यशैली पर सिलसिलेवार कई गंभीर आरोप लगाए हैं, जिससे महासभा की अंदरूनी कार्यप्रणाली पर बड़े सवाल खड़े हो गए हैं।
अध्यक्ष की नियुक्ति पर सवाल
कुंवर शैलराज सिंह ने बताया कि लगभग 10-12 वर्ष पूर्व चंडीगढ़ में हुई महासभा की एक बैठक में युद्धवीर सिंह के प्रस्ताव और उनके अनुमोदन के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह को अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। हैरानी की बात यह है कि इसके बाद अध्यक्ष ने केवल एक बार दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में हुई साधारण सभा में ही शिरकत की है। इसके अलावा, वे संगठन की किसी भी महत्वपूर्ण गतिविधि में सक्रिय रूप से भाग नहीं लेते रहे हैं।
पदाधिकारियों की नियुक्ति में अपारदर्शिता
शैलराज सिंह ने आरोप लगाया कि महासभा के अन्य पदाधिकारियों, जिनमें वे स्वयं भी शामिल थे, की नियुक्ति किस आधार पर हुई, इसकी कोई स्पष्ट और पारदर्शी प्रक्रिया कभी नहीं अपनाई गई। संगठन की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की कोई नियमित बैठक नहीं हुई, न ही बैठकों के कोई आधिकारिक कार्यवृत्त (मिनट्स) लिखे गए, और न ही किसी पदाधिकारी को उनकी नियुक्ति का कोई विधिवत पत्र जारी किया गया।
संगठनात्मक ढांचे का अभाव
उन्होंने संगठन की मूलभूत संरचना पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि महासभा का अधिकृत संविधान क्या है, इसकी जानकारी किसी भी पदाधिकारी को नहीं है। संगठन का बैंक खाता कहां है और कोषाध्यक्ष कौन है, जैसी बुनियादी जानकारियों से भी पदाधिकारी पूरी तरह अनभिज्ञ हैं। इस अराजक स्थिति के चलते महासभा के भीतर कामकाज पूरी तरह से असंगठित और अनियमित हो गया है।
कार्यप्रणाली में मनमानी और नियमों का उल्लंघन
कुंवर शैलराज सिंह ने जम्मू-कश्मीर में आयोजित एक राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का उदाहरण देते हुए संगठन की मनमानी कार्यशैली को उजागर किया। उन्होंने बताया कि उस समय वरिष्ठतम राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नत्था प्रधान जीवित थे, लेकिन संगठन के नियमों को ताक पर रखकर राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष राजाराम मील से बैठक की अध्यक्षता कराई गई। इतना ही नहीं, उस पहली ही बैठक में राष्ट्रीय उपाध्यक्षों को मंच पर उचित स्थान नहीं दिया गया और समाचार पत्रों में भी उनका कोई उल्लेख नहीं किया गया। इसके विपरीत, वहां के प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन चौधरी को राष्ट्रीय नेता के तौर पर प्रचारित किया गया।
आगरा में बैठक का प्रस्ताव भी ठंडे बस्ते में
उन्होंने आगे बताया कि उन्होंने आगरा में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की अगली महत्वपूर्ण बैठक आयोजित करने का प्रस्ताव रखा था, जिसे मौखिक रूप से स्वीकार तो कर लिया गया था, लेकिन आज तक उस पर कोई अमल नहीं हुआ। कार्यकारिणी की बैठक बुलाने के लिए कोई निश्चित समय-सीमा भी निर्धारित नहीं की गई।
सुधार के हर प्रयास को किया गया नजरअंदाज
कुंवर शैलराज सिंह ने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि जब भी उन्होंने संगठन में व्याप्त इन गंभीर मुद्दों को उठाकर सुधार की बात की, तो उनके सुझावों को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया गया। संगठन की कार्यप्रणाली में सकारात्मक बदलाव लाने के उनके हर प्रयास को लगातार नजरअंदाज किया गया।
समाज के लिए योगदान जगजाहिर
अपने इस्तीफे में कुंवर शैलराज सिंह ने यह भी स्पष्ट किया कि जाट समाज के लिए उनके द्वारा किए गए महत्वपूर्ण कार्यों से जानकार लोग अच्छी तरह वाकिफ हैं। उनके उल्लेखनीय कार्यों का उल्लेख विभिन्न पुस्तकों, विधानसभा की कार्यवाही और सरकारी दस्तावेजों में भी दर्ज है।
युवा नेतृत्व के लिए छोड़ा पद
अपने विस्तृत बयान के अंत में कुंवर शैलराज सिंह ने कहा कि उपरोक्त निराशाजनक परिस्थितियों के कारण, वे युवा नेतृत्व को आगे आने और कार्य करने का अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से अखिल भारतीय जाट महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सहित सभी पदों से आज विधिवत् रूप से सार्वजनिक रूप से त्यागपत्र दे रहे हैं।
गौरतलब है कि कुंवर शैलराज सिंह न केवल एक अनुभवी अधिवक्ता हैं, बल्कि जाट समाज में उनकी एक सम्मानित छवि भी है। उनके इस सार्वजनिक इस्तीफे से अखिल भारतीय जाट महासभा के भीतर व्याप्त गहरा आंतरिक असंतोष खुलकर सामने आ गया है, जिसने संगठन के भविष्य को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब देखना यह होगा कि महासभा इस अंदरूनी संकट से कैसे निपटती है और क्या नेतृत्व में कोई बड़ा बदलाव देखने को मिलता है।

