क्या ताजमहल है ISI का नया ‘टारगेट’? आगरा से एक दर्जन जासूसों की गिरफ्तारी, पीएमओ तक पहुंची बात

Jagannath Prasad
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क्या ताजमहल है ISI का नया 'टारगेट'? आगरा से एक दर्जन जासूसों की गिरफ्तारी, पीएमओ तक पहुंची बात

आगरा, उत्तर प्रदेश: विश्व धरोहर ताजमहल के लिए प्रसिद्ध आगरा सिर्फ एक पर्यटन स्थल ही नहीं, बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी भारत के लिए अत्यंत संवेदनशील शहर रहा है। बीते दशकों में यहां से कई बार पाकिस्तानी जासूसों की गिरफ्तारी ने इस बात को पुख्ता किया है कि यह शहर विदेशी खुफिया एजेंसियों, विशेषकर पाकिस्तान की ISI, की नजरों में लंबे समय से रहा है। भारतीय वायुसेना का अड्डा, सैन्य छावनी और ऐतिहासिक आगरा किला जैसे महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों की उपस्थिति आगरा को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से बेहद अहम बनाती है, जिसके चलते यहां अत्यधिक सतर्कता की आवश्यकता है।

ताजा मामला और खुफिया पृष्ठभूमि

हाल ही में यूट्यूबर ज्योति मल्होत्रा के खिलाफ कथित जासूसी की जांच ने आगरा की खुफिया पृष्ठभूमि को एक बार फिर उजागर कर दिया है। ज्योति मल्होत्रा की गिरफ्तारी से शुरू हुआ जासूसों की गिरफ्तारी का सिलसिला अभी भी चल रहा है, जिनकी संख्या अब एक दर्जन के पार जा चुकी है। आगरा की कई महत्वपूर्ण जगहों से जुड़े किसी भी जासूसी प्रयास का सफल होना देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। यह चिंता इसलिए भी जायज है क्योंकि अतीत में भी आगरा से तमाम जासूस पकड़े जा चुके हैं।

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आगरा में ऐतिहासिक जासूसी की घटनाएं

आगरा में हुई कुछ प्रमुख जासूसी की घटनाएं इस शहर की संवेदनशीलता को दर्शाती हैं:

  • 11 अगस्त 1951: चटगांव (अब बांग्लादेश) के इब्राहीम को महत्वपूर्ण नक्शों व नोटों के साथ पकड़ा गया था। इसी मामले में ताजगंज से शेख अब्दुल और शेख कल्लू भी गिरफ्तार हुए थे।
  • वर्ष 1951: अछनेरा से इंशा अल्लाह ख़ान, और फिरोजाबाद से सैयद उबैद, मसूद और बशीर अहमद को गिरफ्तार किया गया।
  • 28 जुलाई 1951: आगरा में सीओडी (केंद्रीय आयुध डिपो) परिसर में कुली के वेश में एक पाकिस्तानी सेना अधिकारी पकड़ा गया। इसी दौरान छावनी से दो अन्य जासूस और छत्ता थाना क्षेत्र से अकील उर्फ बटलर को भी गिरफ्तार किया गया।
  • वर्ष 1952: क़बूल ख़ान नामक व्यक्ति साधु के वेश में एयरबेस के पास जासूसी करते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया।
  • 1953: इटावा से राशनिंग अधिकारी मियां साबरी के पास से एक वायरलेस सेट बरामद किया गया।
  • 1960-63: रक्षा उपमंत्री और प्रधानमंत्री द्वारा संसद में वायुसेना अधिकारियों की बर्खास्तगी की जानकारी दी गई, जो जासूसी से जुड़ा एक गंभीर मामला था।
  • 1971: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के एक क्लर्क को जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया गया।
  • 1982: नौसेना के एक फोटोग्राफर पर जासूसी के आरोप में मुकदमा दर्ज किया गया।
  • 6 दिसंबर 1983: मेजर जनरल सहित तीन सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों की गिरफ्तारी हुई, जो उस समय का सबसे चर्चित जासूसी मामला था।
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नागरिकों को भी रहना होगा सतर्क

आज के कनीक और सोशल मीडिया के युग में जासूसी के तौर-तरीके भले बदल चुके हों, लेकिन खतरे को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। अब जासूस सोशल मीडिया के माध्यम से भी संवेदनशील जानकारी जुटाने का प्रयास कर सकते हैं। इसी के मद्देनजर, राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों के साथ-साथ नागरिकों की भी जिम्मेदारी है कि वे अपने आसपास की हर गतिविधि पर सतर्क दृष्टि बनाए रखें और किसी भी संदिग्ध गतिविधि की सूचना तत्काल संबंधित अधिकारियों को दें।

यह समझना आवश्यक है कि पाकिस्तान भारत के सामने पूरी तरह असफल हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो कहा, वह अब तक करके दिखाया है और अब राष्ट्र की एकमात्र नीति यही है कि पाकिस्तान को मजबूती से जवाब दिया जाए। देश में यह भावना प्रबल है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) भी शीघ्र भारत के नियंत्रण में आएगा। ऐसे में, विदेशी शक्तियों द्वारा जासूसी के माध्यम से अस्थिरता पैदा करने के प्रयासों के प्रति हमें और अधिक जागरूक रहना होगा।

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