आगरा: क्या आपने कभी सोचा है कि हवाई जहाज के उड़ान भरने से पहले उसके इंजन में चिकन क्यों डाला जाता है? यह सुनकर शायद आप हैरान हो जाएं, लेकिन इसके पीछे एक गंभीर वैज्ञानिक कारण और सुरक्षा मानक हैं। दरअसल, जब कोई प्लेन टेक-ऑफ या लैंडिंग करता है, तो वह जमीन के सबसे करीब होता है। इस दौरान उड़ते हुए पक्षियों का प्लेन से टकराना आम बात है, जिसे बर्ड स्ट्राइक कहते हैं।
बर्ड स्ट्राइक कितना खतरनाक हो सकता है?
एक छोटा सा पक्षी भी एक विशाल विमान को भारी नुकसान पहुंचा सकता है। जब प्लेन 350 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भरता है, तो मामूली टक्कर भी जानलेवा साबित हो सकती है।
- विंडशील्ड पर असर: कई बार पक्षियों के प्लेन से टकराने पर उसकी विंडशील्ड (सामने का शीशा) टूट जाती है, जिससे पायलट तक घायल हो सकता है।
- इंजन को नुकसान: सबसे खतरनाक स्थिति तब होती है जब पक्षी प्लेन के इंजन में चला जाए। इससे इंजन के ब्लेड टूट सकते हैं, आग लग सकती है और इंजन बंद हो सकता है, जिसकी वजह से प्लेन क्रैश भी हो सकता है।
इसी खतरे को देखते हुए, दुनियाभर के विमानन संगठन और सरकारें यह सुनिश्चित करती हैं कि प्लेन के उड़ान भरने से पहले बर्ड स्ट्राइक की स्थिति में उसकी मजबूती की पूरी जांच की जाए।
क्या है ‘चिकन गन’ और क्यों किया जाता है यह टेस्ट?
प्लेन के उड़ान भरने से पहले इंजन को चेक करने के लिए असल में ‘चिकन गन’ (Chicken Gun) नामक एक विशेष उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है। यह एक बड़ी हवा की तोप (Compressed Air Cannon) होती है, जिसे प्लेन की विंडशील्ड, विंग (पंख) और इंजन पर दागा जाता है। इसकी रफ्तार इतनी होती है जितनी एक असली पक्षी के टकराने की होती है।
यह टेस्ट इसलिए किया जाता है ताकि प्लेन के ग्लास और इंजन की सही स्थिति को जांचा जा सके। यह परीक्षण आमतौर पर प्रयोगशालाओं (Laboratory) में होता है। प्रयोगशाला में मुर्गा टकराने के बाद इंजीनियर हाई-स्पीड कैमरों से रिकॉर्डिंग करते हैं और फिर हुए नुकसान का विश्लेषण करते हैं।
चिकन गन टेस्ट असली मुर्गे से किया जाता है, क्योंकि उसका वजन, आकार और टिशू आकाश में उड़ने वाले पक्षी से काफी मिलते-जुलते हैं। आजकल इस तरीके को सभी बड़े एयरक्राफ्ट बनाने वाले संस्थान अपना रहे हैं।
सुरक्षा मानकों का अहम हिस्सा
अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मानकों (International Safety Standards) के अनुसार, अगर प्लेन के इंजन में मुर्गा फंस जाए, तो भी उसे कम से कम 2 मिनट तक 75% थ्रस्ट (पूरी ताकत का 75%) के साथ काम करना जरूरी है। ऐसा इसलिए ताकि पायलट के पास इमरजेंसी लैंडिंग कराने का पर्याप्त समय हो। आपको बता दें कि यह टेस्ट अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा मानकों का एक अनिवार्य हिस्सा है और बिना इसको पास किए कोई भी प्लेन उड़ान नहीं भर सकता है।
यह जानकारी शायद आपको चौंका गई होगी, लेकिन यह विमान यात्रा को सुरक्षित बनाने के लिए किए जाने वाले महत्वपूर्ण परीक्षणों में से एक है।