आगरा अंबेडकर यूनिवर्सिटी विवाद: कुलपति ने अरुण दीक्षित के आरोपों को नकारा, ₹76.64 लाख के भुगतान का दिया हवाला, सार्वजनिक माफी की मांग

BRAJESH KUMAR GAUTAM
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आगरा अंबेडकर यूनिवर्सिटी विवाद: कुलपति ने अरुण दीक्षित के आरोपों को नकारा, ₹76.64 लाख के भुगतान का दिया हवाला, सार्वजनिक माफी की मांग

आगरा: डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. आशु रानी ने अधिवक्ता अरुण दीक्षित द्वारा लगाए गए कमीशन मांगने के आरोपों को “अनर्गल और मिथ्या” बताते हुए सिरे से खारिज कर दिया है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय उन्हें पहले ही 76.64 लाख रुपये का भुगतान कर चुका है, और केवल 2.74 लाख रुपये के पुराने बिलों की जांच की जा रही है, जिनके दस्तावेज अधिवक्ता ने अभी तक उपलब्ध नहीं कराए हैं।

“जांच से क्यों घबरा रहे हैं डॉ. दीक्षित?” – कुलपति

कुलपति प्रो. आशु रानी ने पलटवार करते हुए कहा कि यदि अधिवक्ता अरुण दीक्षित साजिशन विश्वविद्यालय, उसके अधिकारियों और कर्मचारियों, और कुलपति को बदनाम करना बंद नहीं करेंगे, तो विश्वविद्यालय प्रशासन उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्यवाही करने को बाध्य होगा। उन्होंने सवाल उठाया कि जिस व्यक्ति को विश्वविद्यालय 76.64 लाख रुपये का भुगतान कर सकता है, उसका सिर्फ 2.74 लाख रुपये का भुगतान क्यों रोकेगा।

कुलपति ने दावा किया कि डॉ. अरुण दीक्षित, जो अधिवक्ता पैनल के निवर्तमान सदस्य हैं, सालों पुराने बिल पास कराने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन पर लगातार दबाव बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि जैसे ही विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनके दावों की जांच के लिए समिति गठित की, वे बौखला गए और राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर उच्चाधिकारियों को फर्जी शिकायतें कर विश्वविद्यालय प्रशासन पर कमीशनखोरी के आरोप जड़ दिए। प्रो. आशु रानी ने शनिवार को पत्रकार वार्ता कर लगाए गए आरोपों को “मनगढ़ंत और फर्जी” बताया, यह कहते हुए कि ये बिल वर्तमान कुलपति के कार्यकाल के नहीं हैं।

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दस्तावेज़ न देने का आरोप और राजभवन की समीक्षा बैठक पर टिप्पणी

प्रो. आशु रानी ने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने अधिवक्ता अरुण दीक्षित से उच्च न्यायालय के वादों से संबंधित बिलों के लिए आदेशों की प्रति और कृत कार्यवाही का रिकॉर्ड मांगा था, लेकिन उन्होंने आज तक वह दस्तावेज नहीं दिए। कुलपति ने आरोप लगाया कि अधिवक्ता मौखिक आदेश पर कार्य किए जाने की बात कहकर किसी भी तरह के दस्तावेज उपलब्ध कराने से पल्ला झाड़ रहे हैं। ऐसे में विश्वविद्यालय प्रशासन का दायित्व बनता है कि वह उन मामलों की गहनता से जांच करे तभी भुगतान के लिए सत्यापित किया जाए।

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कुलपति ने यह भी कहा कि अधिवक्ता जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं, बल्कि विश्वविद्यालय के कर्मचारियों एवं अधिकारियों पर मिथ्या आरोप लगाकर विश्वविद्यालय की छवि और कर्मचारियों की कर्तव्यनिष्ठा पर प्रश्नचिह्न लगा रहे हैं। उन्होंने राजभवन के अपर मुख्य सचिव द्वारा ली गई समीक्षा बैठक को अधिवक्ता द्वारा “अमर्यादित और असम्मानजनक रूप से प्रस्तुत करना शर्मनाक” बताया।

“हार नहीं मानूंगी” – कुलपति

कुलपति प्रो. आशु रानी ने विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का स्मरण करते हुए कहा कि डॉ. भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय का एक गौरवशाली इतिहास रहा है, लेकिन कुछ लोगों के निजी स्वार्थों की पूर्ति के कारण न सिर्फ विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा धूमिल हुई, बल्कि हितधारकों की विश्वसनीयता भी कमजोर पड़ी। उन्होंने कहा कि अपने ढाई साल से ज़्यादा के कार्यकाल में उन्होंने हर दिन विश्वविद्यालय के मान और सम्मान के लिए लड़ाई लड़ी है और हर दिन विश्वविद्यालय की साख को मजबूत करने का प्रयास किया है।

उन्होंने चेतावनी दी कि यदि कोई भी उन पर या उनकी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा पर फर्जी आरोप लगाएगा, तो इसे किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और ऐसे आरोपों का विधिसम्मत जवाब दिया जाएगा। कुलपति ने कहा कि अधिवक्ता अरुण दीक्षित ने उन पर और विश्वविद्यालय प्रशासन पर जो आरोप लगाए हैं, वे पूर्णतः मिथ्या तथा तथ्यहीन हैं, जिससे विश्वविद्यालय की साख को आघात पहुंचा है। इसके लिए उन्हें जल्द से जल्द सार्वजनिक रूप से माफी मांगने को कहा गया है, अन्यथा वे विधिक कार्यवाही के लिए तैयार रहें।

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कुलपति ने अंत में स्पष्ट किया कि अधिवक्ता अरुण दीक्षित को विश्वविद्यालय की आंतरिक अनुशासनात्मक प्रक्रिया के तहत गंभीर कदाचार एवं अनुशासनहीनता के कारण निष्कासित किया गया है। यह निर्णय सभी नियमों और प्रक्रियाओं का पालन करते हुए तथ्यों के आधार पर लिया गया था। उन्होंने खेद व्यक्त किया कि अधिवक्ता भाषा की मर्यादा को भूलकर किसी भी सम्मानित व्यक्ति, पद या संस्थान को कुछ भी अनाप-शनाप बोल रहे हैं।

 

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