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दामाद का ‘ससुराल’ पर दावा! कोर्ट के एक फैसले से सब हैरान!

Saurabh Sharma
5 Min Read
दामाद का 'ससुराल' पर दावा! कोर्ट के एक फैसले से सब हैरान!

नई दिल्ली: हमारे देश में प्रॉपर्टी से जुड़े विवाद कोई नई बात नहीं हैं, लेकिन जब मामला पारिवारिक रिश्तों से जुड़ जाए, तो कानूनी लड़ाई और भी पेचीदा हो जाती है. ऐसा ही एक ताज़ा मामला सामने आया है जहाँ एक दामाद ने ससुराल की संपत्ति में अपना हक जता दिया. सोचिए, शादी के बाद सालों तक ससुराल में रहने वाला दामाद अब कोर्ट में जाकर कहता है कि ये प्रॉपर्टी मेरी भी है. लेकिन कोर्ट ने जो फैसला सुनाया, वो किसी करारे झटके से कम नहीं था.

अब चलिए इस मामले की पूरी कहानी विस्तार से जानते हैं और समझते हैं कि क्या वाकई दामाद का ससुराल की संपत्ति में कोई हक बनता है या नहीं.

क्या है पूरा मामला?

एक शख्स की शादी हुई और वह अपनी पत्नी के साथ ससुराल में ही रहने लगा. शुरू-शुरू में तो सब ठीक चला, लेकिन कुछ सालों बाद रिश्तों में खटास आ गई. दामाद का दावा था कि उसने ससुराल की प्रॉपर्टी में काफी पैसा लगाया है, मरम्मत कराई है, रंगाई-पुताई करवाई है और कुछ हिस्सा बनवाने में भी मदद की है. ऐसे में उसे उस घर में हिस्सा मिलना चाहिए क्योंकि वह सालों से वहीं रह रहा है और आर्थिक योगदान भी दिया है.

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जब बात बातचीत से नहीं सुलझी तो मामला सीधे कोर्ट पहुँच गया.

कोर्ट ने क्या कहा?

दामाद को शायद उम्मीद रही होगी कि कोर्ट उसकी बातें सुनकर उसे हिस्सा दिला देगी. लेकिन हाईकोर्ट का फैसला एकदम सख्त और साफ़ था.

कोर्ट ने साफ कहा – “दामाद का ससुराल की प्रॉपर्टी पर कोई कानूनी अधिकार नहीं होता जब तक सास-ससुर खुद उसे हिस्सा देने की वसीयत या गिफ्ट न करें.”

यानी, सिर्फ इसलिए कि किसी की शादी किसी घर की बेटी से हुई है, वह उस घर की संपत्ति का मालिक नहीं बन जाता.

शादी का रिश्ता, कोई गारंटी नहीं!

कोर्ट ने आगे और भी बातें साफ़ कर दीं:

  • शादी का मतलब यह नहीं कि दामाद को ससुराल वालों की प्रॉपर्टी में कोई अधिकार मिल गया.
  • भारतीय कानून के मुताबिक, संपत्ति का हक सिर्फ कानूनी वारिसों को मिलता है. इसमें बेटे-बेटियाँ, पति-पत्नी आते हैं – लेकिन दामाद नहीं.
  • अगर सास-ससुर खुद से अपनी संपत्ति में दामाद को हिस्सा देना चाहते हैं, तो वे वसीयत या गिफ्ट डीड के ज़रिए ऐसा कर सकते हैं. लेकिन बिना दस्तावेज़ के सिर्फ दामाद का “मैंने पैसा लगाया” कहना काफ़ी नहीं है.
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क्या कहता है भारतीय कानून?

भारतीय कानून यानी हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (Hindu Succession Act, 1956) के अनुसार:

  • अगर कोई व्यक्ति बिना वसीयत के गुज़रता है, तो उसकी संपत्ति उसके बच्चों में बराबर बँटती है.
  • दामाद को कोई भी हिस्सा तभी मिल सकता है जब उसे कानूनी रूप से नामित किया गया हो (उदाहरण के लिए, वसीयत के ज़रिए).

यानी शादी के नाते कोई भी ससुराल की प्रॉपर्टी का हकदार नहीं बनता.

सोशल मीडिया पर मचा बवाल

जैसे ही यह फैसला सामने आया, सोशल मीडिया पर लोगों की मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ आने लगीं. कुछ लोग दामाद को लालची कह रहे थे, तो कुछ कह रहे थे – “अगर उसने सालों तक घर में पैसा लगाया है, तो क्या उसे कुछ नहीं मिलना चाहिए?”

लेकिन सच्चाई यही है कि कोर्ट और कानून भावनाओं से नहीं, दस्तावेज़ों और सबूतों से चलते हैं. यानी किसी रिश्ते से प्रॉपर्टी नहीं मिलती, प्रॉपर्टी तभी मिलती है जब उसके कागज़ आपके नाम हों.

दामाद के लिए सबक

अगर कोई दामाद लंबे समय तक ससुराल में रह रहा है और वह घर में पैसा भी लगा रहा है, तो उसे पहले ही किसी समझौते या गिफ्ट डीड के ज़रिए अपनी स्थिति क्लियर करनी चाहिए. नहीं तो बाद में जाकर कोर्ट में रोने से कुछ नहीं होगा.

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यह मामला बाकी लोगों के लिए भी एक सबक है कि रिश्ते मज़बूत हों, यह अच्छी बात है – लेकिन जब बात संपत्ति की हो, तो कागज़-पत्र ज़रूरी हैं.

इस पूरे मामले का सीधा जवाब ये है कि दामाद का ससुराल की प्रॉपर्टी पर कोई हक नहीं बनता जब तक कि उसे कानूनी रूप से हिस्सेदार न बनाया जाए. शादी सिर्फ़ एक रिश्ता है, संपत्ति में हिस्सेदारी की गारंटी नहीं.

कोर्ट का ये फैसला सभी दामादों और परिवारों के लिए एक बड़ा संदेश है – कि कानून के हिसाब से चलो, भावनाओं के नहीं.

 

 

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