क्या माता-पिता अपनी औलाद को प्रॉपर्टी से बेदखल कर सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, जानें आपके अधिकार!

Manisha singh
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क्या माता-पिता अपनी औलाद को प्रॉपर्टी से बेदखल कर सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, जानें आपके अधिकार!

नई दिल्ली: भारत में प्रॉपर्टी और पारिवारिक कानूनों को लेकर अक्सर भ्रम की स्थिति रहती है। खासकर जब बात बुजुर्ग माता-पिता और उनके बच्चों के संबंधों की आती है, तो यह सवाल बार-बार उठता है: क्या माता-पिता अपनी औलाद को अपनी संपत्ति या घर से बेदखल कर सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर एक अहम फैसला सुनाया है, जो लाखों परिवारों के लिए बेहद ज़रूरी जानकारी है।

क्यों उठता है यह सवाल बार-बार?

भारत में बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार और उन्हें मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने के कई मामले सामने आते हैं। ऐसी परिस्थितियों में कई माता-पिता चाहते हैं कि वे अपने बेटों, बहुओं या अन्य रिश्तेदारों को अपनी प्रॉपर्टी से बाहर निकाल सकें। इन्हीं हालातों को देखते हुए एक मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा था, जिसमें बुजुर्ग पिता ने अपने बेटे को घर से निकालने की मांग की थी, लेकिन कोर्ट ने उनका केस खारिज कर दिया। यहीं से सवाल उठता है कि ऐसा क्यों हुआ?

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क्या कहता है सीनियर सिटिजन्स एक्ट, 2007 (Senior Citizens Act, 2007)?

यह कानून खासतौर पर 60 साल से ऊपर के बुजुर्गों के लिए बनाया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि यदि उनके पास खुद की कमाई का कोई जरिया न हो, तो वे अपने बच्चों से भरण-पोषण (Maintenance) मांग सकें। इस एक्ट के तहत ट्रिब्यूनल (Tribunal) बनाए गए हैं, जो ऐसे मामलों की सुनवाई करते हैं और ज़रूरत पड़ने पर बच्चों को माता-पिता की देखभाल करने का आदेश भी देते हैं।

सेक्शन 23 की क्या है भूमिका?

इस एक्ट की धारा 23 बेहद महत्वपूर्ण है। यह कहती है कि अगर माता-पिता अपनी प्रॉपर्टी किसी को देते हैं – चाहे वह बेटा हो, बहू हो या कोई और – तो वे यह संपत्ति इस शर्त पर दे सकते हैं कि उन्हें आवश्यक सुविधाएं और देखभाल दी जाएगी। यदि यह शर्त पूरी नहीं होती है, तो यह माना जाएगा कि संपत्ति का हस्तांतरण (Transfer) धोखे या दबाव में हुआ है। ऐसी स्थिति में, ट्रिब्यूनल इस संपत्ति के हस्तांतरण को रद्द कर सकता है।

बहू को निकालने वाले केस पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला (2020)

साल 2020 में एक ऐसे मामले में, जहां बुजुर्ग माता-पिता ने अपनी बहू को घर से निकालने की मांग की थी और इसके लिए Senior Citizens Act के तहत ट्रिब्यूनल से राहत मांगी थी, ट्रिब्यूनल ने माता-पिता के पक्ष में फैसला दिया था। लेकिन बहू ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

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सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:

  • डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट, 2005 (Domestic Violence Act, 2005) के तहत बहू को सिर्फ इसलिए घर से नहीं निकाला जा सकता क्योंकि वह प्रॉपर्टी की मालिक नहीं है।
  • हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर मामला माता-पिता की सुरक्षा और भरण-पोषण से जुड़ा हो, तो ट्रिब्यूनल बेदखली का आदेश दे सकता है।

क्या सुप्रीम कोर्ट ने बेदखली को पूरी तरह से रोका है?

बिल्कुल नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि अगर औलाद अपने माता-पिता की देखभाल नहीं कर रही है और उन्हें शारीरिक या मानसिक रूप से परेशान कर रही है, तो ट्रिब्यूनल उसे प्रॉपर्टी से बाहर निकालने का आदेश दे सकता है। लेकिन यह फैसला तभी लिया जाएगा जब पक्के सबूत हों। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि बेदखली का आदेश देने से पहले दूसरे पक्ष की बातों को भी गंभीरता से सुना जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने उस खास केस में बेटे को क्यों नहीं निकाला?

जिस केस में सुप्रीम कोर्ट ने बेटे को बेदखल करने से मना किया था, उसमें 2019 में ट्रिब्यूनल ने पहले ही एक आदेश दिया था। उस आदेश के तहत बेटे को केवल दुकान और एक कमरे तक ही सीमित रहने को कहा गया था, और उसे माता-पिता की इजाजत के बिना घर में दखल न देने का निर्देश दिया गया था। माता-पिता ने 2023 में फिर से सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन अदालत ने पाया कि पिछले आदेश के बाद बेटे के दुर्व्यवहार का कोई नया सबूत नहीं है। इसलिए कोर्ट ने कहा कि हर केस में सीधे बेदखली का फैसला नहीं लिया जा सकता।

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तो माता-पिता कब निकाल सकते हैं औलाद को घर से?

यदि औलाद माता-पिता की देखभाल नहीं कर रही हो, उन्हें शोषण या उत्पीड़न का शिकार बना रही हो, तो माता-पिता Senior Citizens Act, 2007 के तहत ट्रिब्यूनल में केस दर्ज कर सकते हैं। अगर ट्रिब्यूनल को यह लगता है कि बुजुर्गों की सुरक्षा के लिए औलाद को प्रॉपर्टी से निकालना आवश्यक है, तो वह ऐसा आदेश दे सकता है। लेकिन यह सब उपलब्ध सबूतों और मौजूदा परिस्थिति पर निर्भर करता है।

यह फैसला बुजुर्ग माता-पिता के अधिकारों को मज़बूत करता है, साथ ही यह भी सुनिश्चित करता है कि कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो।

 

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