शहडोल, मध्य प्रदेश: मध्य प्रदेश में ‘ड्राय फ्रूट घोटाले’ की गूंज अभी थमी भी नहीं थी कि मऊगंज से एक नया और चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहां ‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ के नाम पर आयोजित एक 40 मिनट के कार्यक्रम में 10 लाख रुपये का घोटाला कर दिया गया। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इस कार्यक्रम में इस्तेमाल हुईं गद्दे-चादरें एक बिजली की दुकान से किराए पर ली गईं वो भी बाकायदा बिल बनाकर।
एक ही ‘प्रदीप इंटरप्राइजेज’ से लाखों के फर्जी बिल!
यह कार्यक्रम 17 अप्रैल को मऊगंज जनपद के खैरा ग्राम में आयोजित हुआ था। प्रशासनिक दस्तावेज़ों के अनुसार, सारे खर्च का भुगतान ‘प्रदीप इंटरप्राइजेज’ नामक एक दुकान को किया गया। किराना, टेंट, मिठाई, लाइट, चाय-नाश्ता, पानी – हर चीज़ का बिल एक ही दुकान से बना दिया गया। लेकिन उस पूरे क्षेत्र में ‘प्रदीप इंटरप्राइजेज’ नाम की कोई दुकान ही नज़र नहीं आती।
सबसे हास्यास्पद बात यह है कि गद्दे और चादरें भी इसी दुकान से किराए पर ली गईं – 30 और 35 रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से। सवाल उठता है कि क्या अब बल्ब बेचने वाले बिस्तर किराए पर देने लगे हैं?
जनपद अध्यक्ष ने भी उठाई आवाज़
कार्यक्रम में मऊगंज की जनपद अध्यक्ष नीलम सिंह खुद मौजूद थीं, लेकिन उन्हें न तो मंच पर जगह दी गई और न ही पीने को साफ पानी मिला। ग्रामीणों ने बताया कि टैंकर से गंदा पानी दिया गया और नाश्ता तो दूर की बात थी। इसके बावजूद, चाय-नाश्ते के लाखों के बिल बना दिए गए, जो इस घोटाले की ओर साफ इशारा करते हैं।
बजट से कई गुना ज़्यादा खर्च और ज़बरन भुगतान के आरोप
‘पंचायत दर्पण पोर्टल’ के अनुसार, इस कार्यक्रम के लिए सिर्फ 2.54 लाख रुपये की स्वीकृति थी, लेकिन खर्च 7.45 लाख रुपये से अधिक कर डाले गए। यह सब बिना किसी प्रस्ताव या जनपद बैठक के हुआ। लेखापाल ने भी सीईओ राम कुशल मिश्रा पर गंभीर आरोप लगाए हैं कि उनसे जबरन मोबाइल और डीएससी (डिजिटल सिग्नेचर सर्टिफिकेट) लेकर फर्जी भुगतान कराए गए। इस शिकायत पर जनपद अध्यक्ष ने सीईओ को पत्र जारी कर मोबाइल वापस दिलवाया।
मऊगंज जनपद में दो-दो सीईओ पदस्थ हैं – एक प्रशासनिक और एक वित्तीय – और दोनों ही विवादों से घिरे हुए हैं। एक पीसीओ को ही नियमविरुद्ध सीईओ का प्रभार दे दिया गया है, जिन पर पहले से ही लोकायुक्त में शिकायत दर्ज है।
जांच की मांग: क्या यह सुनियोजित घोटाला है?
अब इस पूरे प्रकरण को लेकर कई गंभीर सवाल उठते हैं:
- क्या यह एक सुनियोजित घोटाला था?
- क्या कलेक्टर और जिला सीईओ ने इस पर आंखें मूंद ली थीं, या वे भी इस खेल का हिस्सा हैं?
शहडोल के बाद मऊगंज… अगला कौन? जनता पूछ रही है कि क्या कभी इन सवालों का जवाब मिलेगा, या ये मामले भी फाइलों में दब जाएंगे? यह घोटाला पारदर्शिता और जवाबदेही पर बड़े प्रश्नचिह्न लगाता है।