एटा। जिन्हें करना था गुंडों पर शिकंजा, उन्होंने थमा दिया शरीफों को गुंडा एक्ट का नोटिस! जैथरा पुलिस की कानूनी अज्ञानता या फिर जानबूझकर की गई मनमानी, अब सवालों के घेरे में है।
थाना जैथरा के गांव दौलतपुर निवासी आराम सिंह, सरजेश और रनवीर पर महज दो-दो मामूली मुकदमे दर्ज हैं। न कोई संगीन आरोप, न कोई अपराधिक इतिहास। बावजूद इसके पुलिस ने इन्हें खतरनाक अपराधी बताकर गुंडा नियंत्रण अधिनियम की धारा 3/4 के तहत जिला बदर करने की रिपोर्ट भेज दी।
लेकिन इस बार पुलिस की यह मनमानी अदालत में टिक नहीं पाई। अपर जिला मजिस्ट्रेट ने जैथरा पुलिस की कार्रवाई को शासनादेश के विरुद्ध ठहराते हुए सख्त शब्दों में खारिज कर दिया। अदालत ने साफ कहा—एक-दो मुकदमों या बीट रिपोर्ट के आधार पर गुंडा एक्ट थोपना कानून का दुरुपयोग है और यह न्याय प्रक्रिया का मजाक बनाना है।
यह कार्रवाई नहीं, उत्पीड़न है!
शरीफों पर गुंडा एक्ट लगाना क्या पुलिस की नासमझी है या फिर किसी साजिश का हिस्सा? सवाल बड़ा है और जवाब प्रशासन के जिम्मे है। जिन लोगों ने कभी समाज में शांति भंग नहीं की, उन्हें अपराधी घोषित कर देना क्या पुलिस की तानाशाही नहीं?
गुंडे घूम रहे खुलेआम, पुलिस दौड़ा रही कागजी घोड़े
पुलिस के इस मनमानी पूर्ण रवैए ने एक बार फिर ये साबित कर दिया कि जैथरा थाने में कानून किताबों में नहीं, रिपोर्ट की शक्ल में चलता है। असली अपराधियों को पकड़ने के बजाय शरीफों को प्रताड़ित करना जैथरा पुलिस की प्राथमिकता बन गई है।
बड़े सवाल
क्या जैथरा पुलिस को नहीं है शासनादेश की जानकारी?
क्या गुंडा एक्ट अब राजनीतिक या निजी दुश्मनी का हथियार बन चुका है?
क्या कोई पुलिसकर्मी खुद इस कार्रवाई से लाभ पा रहा है?
अब देखना ये है कि क्या जिला प्रशासन इस गैरकानूनी कार्रवाई के जिम्मेदारों पर कोई कार्रवाई करेगा या यह मामला भी फाइलों में दबा दिया जाएगा। फिलहाल जैथरा पुलिस की यह करतूत जनता के बीच कई सवाल छोड़ गई है ।