अमेरिका से तनाव के बीच पीएम मोदी की चीन यात्रा: एक साहसिक कूटनीतिक पहल

Dharmender Singh Malik
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अमेरिका से तनाव के बीच पीएम मोदी की चीन यात्रा: एक साहसिक कूटनीतिक पहल

नई दिल्ली: वैश्विक राजनीति में एक नया मोड़ लेते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक कदम उठाया है। अमेरिका के साथ चल रहे तनावपूर्ण संबंधों और तीखे बयानों के बीच, पीएम मोदी इसी महीने चीन की यात्रा पर जा रहे हैं। इस यात्रा के दौरान उनकी मुलाकात चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से होने की संभावना है, जो एशिया की इन दो बड़ी शक्तियों के भविष्य के संबंधों को दिशा दे सकती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह दौरा सिर्फ भारत-चीन संबंधों के लिए ही नहीं, बल्कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भी एक स्पष्ट संदेश देगा कि भारत अपनी विदेश नीति में किसी एक ध्रुव पर निर्भर नहीं है। मोदी सरकार के इस कदम को वैश्विक संतुलन की राजनीति में एक रणनीतिक और चौंकाने वाली चाल के रूप में देखा जा रहा है।

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गलवान के बाद पहली यात्रा: SCO शिखर सम्मेलन में होंगे शामिल

प्रधानमंत्री मोदी 31 अगस्त को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए चीन के तियानजिन शहर का दौरा करेंगे। यह यात्रा कई मायनों में ऐतिहासिक है, क्योंकि यह 2020 की गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद उनकी पहली चीन यात्रा होगी। उस घटना के बाद से दोनों देशों के बीच संबंधों में भारी तनाव बना हुआ था, जिससे यह दौरा कूटनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है। यह यात्रा दोनों देशों के बीच बातचीत की एक नई शुरुआत का प्रतीक बन सकती है।

पीएम मोदी की यह यात्रा 31 अगस्त से 1 सितंबर तक चलेगी। इस दौरान वे शी जिनपिंग के अलावा SCO के अन्य सदस्य देशों के नेताओं से भी मिल सकते हैं। चर्चा के मुख्य विषयों में क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद, व्यापार, ऊर्जा और आपसी सहयोग शामिल हो सकते हैं।

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यात्रा से पहले हुई थी विदेश और रक्षा मंत्रियों की मुलाकात

पीएम मोदी की यात्रा से पहले, भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी चीन का दौरा किया था। इस दौरान उन्होंने सीमा पर तनाव, व्यापार प्रतिबंधों और उर्वरक जैसी जरूरी सामग्रियों की आपूर्ति पर बातचीत की थी। जयशंकर ने यह भी कहा था कि पिछले नौ महीनों में संबंधों में कुछ प्रगति हुई है, लेकिन जब तक सीमा पर शांति बहाल नहीं होती, तब तक रिश्ते सामान्य नहीं हो सकते।

इससे पहले, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी SCO के रक्षा मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लिया था, लेकिन उन्होंने उस साझा बयान पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था जिसमें कश्मीर में हुए आतंकी हमले का जिक्र नहीं था।

भविष्य की उम्मीदें और कूटनीतिक मायने

इस यात्रा से उम्मीद की जा रही है कि भारत और चीन के बीच कूटनीतिक बातचीत फिर से गति पकड़ेगी। यदि इस मंच का सही इस्तेमाल किया गया, तो सीमा विवाद को हल करने, व्यापारिक सहयोग बढ़ाने और क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने की दिशा में बड़े कदम उठाए जा सकते हैं।

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यह यात्रा यह भी दर्शाती है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए, बातचीत के जरिए समस्याओं को सुलझाने के लिए हमेशा तैयार रहता है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह दौरा दोनों देशों के रिश्तों में एक नया मोड़ लाता है या केवल एक औपचारिकता बनकर रह जाता है।

 

 

 

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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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