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UP : ग्रामीण भारत की बदहाली: आशा की तलाश

Dharmender Singh Malik
4 Min Read

प्रदीप यादव

एटा : उत्तर प्रदेश में ग्रामीण विकास के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं संचालित की जा रही हैं। मगर ग्रामीण अंचल में निवास करने वाले लोग आज भी समस्याओं और अभावग्रस्त जीवन जीने को मजबूर हैं। स्वच्छता अभियान ग्रामीण, जल शक्ति मिशन, सामुदायिक शौचालय, आवास एवं मनरेगा जैसी महत्वपूर्ण योजनाएं ग्रामीण विकास के लिए संचालित की जा रही हैं, मगर वह असल विकास आज भी ग्रामीणों के लिए एक उम्मीद है। जिसके सहारे वह अपना जीवन यापन कर रहे हैं। योजनाओं के माध्यम से लाखों करोड़ों रुपए खर्च कर दिए जाते हैं। फिर भी गांव में बड़ी-बड़ी योजनाएं बेअसर नजर आ रही हैं।

स्वच्छता मिशन के तहत गांव-गांव सामुदायिक व घरों में शौचालयों का निर्माण कराया गया था ताकि गांव में रहने वाली आबादी के जीवन स्तर में सुधार किया जा सके। मगर कुछ गांवों की हकीकत इन सबसे इतर पेयजल संकट, कीचड़ युक्त रास्ते, शौचालयों की अनुपयोगिता की दास्तान बयां कर रहे हैं।

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उससे भी अधिक हैरानी की बात तो यह है कि लाखों रुपए खर्च कर बनाए गए सामुदायिक शौचालयों का निर्माण और संचालन अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। ज्यादातर सामुदायिक शौचालयों में ताले लटके हुए हैं, तो इसके निर्माण का क्या औचित्य रहा होगा इसका जवाब शायद ही किसी के पास हो?

विभाग ने बाकायदा इनके रखरखाव के लिए केयरटेकर की व्यवस्था की हुई है। उन्हें निश्चित मानदेय भी दिया जा रहा है।

जनपद एटा के विकासखंड अलीगंज की ग्राम पंचायत लोहरी गवीं में निवास करने वाले ग्रामीण आज भी नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। गांव नगला नौगजा की कुछ गलियों में इंटरलॉकिंग एवं खड़ंजा बना हुआ है। इनकी साफ सफाई लोगों की निजी जिम्मेदारी है। गांव में सफाई कर्मी को बहुत कम देखा जाता है। गांव के पूर्व में एक रास्ता घुटनों तक कीचड़ से भरी पड़ी है। राहगीरों को उससे होकर गुजरना पड़ता है। आसपास की आबादी में संक्रमण रोगों की फैलने की संभावना बनी हुई है। रास्ते में जल भराव और कीचड़ से छोटे बच्चों, महिलाओं, वृद्ध लोगों, पालतू पशुओं को हर रोज भारी समस्या का सामना करना पड़ता है।

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गांव निवासी अनार सिंह, जनक सिंह, विजेंद्र सिंह फौजी, वीरेंद्र, होरीलाल, बलिस्टर, बांकेलाल, अतर सिंह आदि व्यक्तियों ने बताया कि कई बार रोजगार सेवक, ग्राम प्रधान एवं पंचायत सचिव से शिकायत की जा चुकी है, बावजूद इसके समस्या जस की तस बनी हुई है।

2 वर्ष पूर्व गांव में एक सामुदायिक शौचालय का निर्माण ग्राम पंचायत निधि से कराया गया था। उसे आज भी प्रयोग में नहीं लाया गया है। उसके आसपास कटीली झाड़ियां उगी हुई हैं। साफ सफाई भी नहीं की जाती है। इसे प्रशासनिक व्यवस्थाओं की विवशता या लचरता कहें? कि लाखों रुपये खर्च होने के बाद भी ग्रामीण जीवन आज भी अपनी बदहाल व्यवस्थाओं की एक तस्वीर बयां कर रहा है। शायद कभी इसका अपना भी मुस्तकबिल बदल जाए।

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इस समस्या का समाधान करने के लिए सरकार और प्रशासन को मिलकर प्रयास करने की जरूरत है। ग्रामीण विकास के लिए योजनाओं का क्रियान्वयन प्रभावी तरीके से किया जाना चाहिए। ग्रामीणों की समस्याओं को दूर करने के लिए स्थानीय स्तर पर जागरूकता फैलाने की जरूरत है।

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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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