Advertisement

Advertisements

सांस्कृतिक धरोहर धरोहर को सहेजने से ही आती है समृद्धि : प्रो. लवकुश मिश्र

Saurabh Sharma
9 Min Read

डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के पर्यटन एवं होटल प्रबंधन संस्थान में विभागाध्यक्ष प्रोफेसर लवकुश मिश्र ने फर्रुखाबाद के श्री रामनगरिया मेले में आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए कहा कि जो समाज अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहेज कर रखता है और उसका संरक्षण करता है वह सदै उन्नति करता है। इससे न केवल देश में समृद्धि आती है बल्कि आने वाली पीढियों के लिए प्रेरणा भी मिलती है। जिला प्रशासन तथा पांचाल शोध एवं विकास समिति फर्रुखाबाद द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए प्रो. मिश्र ने विश्व के तमाम देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि जिन देशों ने अपने सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण नहीं किया या उनसे घृणा किया वे आज बर्बादी की कगार पर हैं । उनकी आने वाली पीढ़ियां बर्बाद हो चुकी है ।

आर्थिक रूप से विपन्नता आ चुकी है। उदाहरण के तौर पर अफगानिस्तान में बाम्यान की मूर्ति को बारूद लगाकर के जिन लोगों ने तोड़ा वे या पाकिस्तान में जिन लोगों ने मां शारदा सहित तमाम मंदिरों को क्षति पहुंचाई और उन्हें तहस-नहस कर दिया और उनको मिटाने का प्रयास किया आज वे खुद मिटने की कगार पर है। वहीं भारत है जिसने अपने-अपनी संस्कृति का संरक्षण किया अपने मंदिरों को सहेज कर रखा उसका परिणाम आज पूरी दुनिया देख रही है। आर्थिक प्रगति में सांस्कृतिक धरोहर का अमूल्य योगदान होता है।

आज प्रभु श्री राम जी का मंदिर अयोध्या में लाखों लोगों के रोजगार का साधन बन गया है। इसके पूर्व काशी में भगवान विश्वनाथ के दर्शन के लिए आने वाले लाखों श्रद्धालुओं ने स्थानीय जनता सहित तमाम लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया है।जो लोग कुतर्क किया करते थे कि अयोध्या में प्रभु श्री राम के मंदिर के बजाय वहां पर विश्वविद्यालय और अस्पताल खोलने चाहिए। उन्हें यह समझना चाहिए कि अभी एक महीने से कम ही हुआ प्रभु श्री राम के मंदिर में स्थापना के परंतु लगभग 2 लाख प्रतिदिन श्रद्धालु अयोध्या आ रहे हैं और वहां आने वाले चढ़ावे की बात करें और आर्थिक उन्नति की तो उससे एक महीने से कम समय में ही विश्वविद्यालय या अस्पताल खोलने की धनराशि चढ़ावे में आ चुकी है। अगर वहीं दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश का ही उधर दूसरा उदाहरण है प्रयागराज मे लगने वाले कुंभ मेला।

See also  प्लेन में बैठते ही मोहन यादव का बड़ा प्रशासनिक कदम: दो अधिकारियों की छुट्टी, शिवराज के पसंदीदा की एंट्री!

प्रति वर्ष लगने वाले इस मेले कारण आसपास के क्षेत्र में धार्मिक भावना के विस्तार के साथ-साथ ही स्थानीय लोगों के लिए वृहद स्तर पर रोजगार का अवसर उपलब्ध कराता है। गत वर्ष उत्तराखंड के श्री केदारनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं के आवागमन के कारण खच्चर चालको को 100 करोड़ से ऊपर का लाभ मात्र 4 महीने की यात्रा के दौरान हुआ था । जिनमें से ज्यादातर खच्चर वाले मुस्लिम समुदाय के थे। तो यह कहना कि मंदिर या सांस्कृतिक मेले से किसी एक धर्म या संप्रदाय विशेष को ही लाभ मिलता है ऐसा कहना गलत है। प्रोफेसर मिश्रा ने कहा कि हमारे तमाम सांस्कृतिक धरोहरों को आक्रांताओं के द्वारा नष्ट कर दिया गया था। उन्हें आज फिर से पुनर्जीवित करने की और उनके भी प्रचार प्रसार की आवश्यकता है। यह केवल आर्थिक प्रगति के लिए ही नहीं बल्कि सामाजिक संतुलन और समाज में अपराधों को रोकने के लिये भी आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि कुंभ मेले में मौनी अमावस्या या बसंत पंचमी के दिन लाखों करोड़ों लोग एक साथ एक दिन में स्नान करते हैं परंतु अगर अपराधी की प्रवृत्ति देखे या अपराध की दर देखें तो यह अन्य शहरों के जनसंख्या के अनुपात में बहुत कम होती है। क्योंकि मानव प्रवृत्ति होती है कि जब व्यक्ति धार्मिक होता है तब वह अपराध नहीं करता है। धर्म और अपराध एक साथ नहीं चल सकते हैं। प्रवृत्ति बदल जाती है। अगर देश में धार्मिक आयोजनो और संस्कृति को आने वाली पीढियां के बीच प्रचारित प्रसारित किया जाए तो पूरे देश के अपराध नियंत्रण में भी अद्भुत सहायता मिलेगी जिससे पुलिस की कम आवश्यकता होगी और पुलिस और अन्य अपराध नियंत्रण में होने वाले खर्च को विकास के लिए आवंटित किया जा सकता है।

See also  Agra News: पराक्रम दिवस पर NCC कैडेट्स ने नेताजी को किया याद

प्रोफेसर मिश्रा ने कहा कि विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा भारत की जो सांस्कृतिक विरासत नष्ट की गई इसका दुष्प्रभाव न केवल भारत पर या हिंदू समाज पर पड़ रहा है बल्कि पूरी मानव जाति पर पड़ रहा है। पूरी मानव जाति आज भारत की उस गौरवशाली ज्ञान से वंचित रह गई है जिसके कारण पूरी दुनिया में तरक्की का एक नया युग शुरू हो सकता था। प्रोफेसर मिश्रा ने कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय को जलाने वाले बख्तियार खिलजी ने न केवल किताबें जलाई बल्कि सदियों के शोध द्वारा अर्जित ज्ञान को भी जला दिया। जिसमें आयुर्वेदिक सहित तमाम शास्त्रों की जरूरी जानकारियां जल कर स्वाहा हो गई। अगर वह आज होती तो शायद पूरा विश्व एलोपैथी के जाल में जो फंसा हुआ है और अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा महंगी दवाओं पर खर्च कर रहा है उससे बच जाता । और उस पैसे का उपयोग वह अपनी आर्थिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए करता।

प्रोफेसर मिश्रा ने मंच से लोगों का आवाहन किया कि फर्रुखाबाद का नाम बदलकर पितामह भीष्म नगर रखने हेतु सभी अपने-अपने स्तर पर प्रयास करें। शासन प्रशासन जनप्रतिनिधियों के द्वारा उचित कदम उठाएं क्योंकि यह पांचाल क्षेत्र महाभारत कालीन गौरवशाली क्षेत्र रहा है इसकी पहचान फर्रख सियार से नहीं बल्कि पितामह भीष्म से है। यहां तमाम धार्मिक स्थल है पास में ही बौद्धों का विश्व प्रसिद्ध स्थल संकिसा है, नीम करोली बाबा का जन्म स्थान है कपिल मुनि का आश्रम है जिनका सांख्य दर्शन पूरी दुनिया में विख्यात है। मां गंगा के किनारे बसे इस तीर्थ क्षेत्र को अगर महाभारत की ऐतिहासिकता से जोड़ा जाएगा तो घरेलू पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी जिससे इस क्षेत्र में आर्थिक उन्नति होगी ।आने वाली पीढ़ियां महाभारत की घटनाओं से सीख लेकर के अपने जीवन को संवारेगी ।

See also  एफडीए ने मिलावटी खाद्य पदार्थों की बिक्री रोकथाम को चलाया विशेष अभियान

फर्रुखाबाद का नवयुवक आज अपनी पहचान के लिए तरस रहा है देश-विदेश में जब वह नौकरी के लिए जाता है तो अपनी पहचान को व्यक्त नहीं कर पाता है। आवश्यकता है कि हम आने वाली पीढ़ी को उसकी पहचान दें। इसके लिए सबसे पहले इसका नामकरण वास्तविक नाम के आधार पर होना चाहिए ।

मुख्य अतिथि के रूप में उत्तर प्रदेश के सेवा निवृत पुलिस महानिरीक्षक तथा प्रसिद्ध इतिहासविद डा0 शैलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि फर्रुखाबाद सभी धर्मों से जुड़ा रहा है।यहाँ बौद्ध, जैन और हिन्दू सभी से संबंधित स्थल है ।जरूरत है कि उन्हे पर्यटन मानचित्र पर लाकर प्रचार प्रसार किया जाये।

कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व सांसद श्री चंद्र भूषण सिंह ने की । पाँचाल शोध एवं विकास समिति के अध्यक्ष डा0 सुरेन्द्र सिंह सोमवंशी ने कहा कि समिति के प्रयासो से गंगा के घाटों का सौंदर्यीकरण किया जा रहा है और मन्दिरो का जीर्णोधार जारी है। उन्होने कहा कि काशी के बाद सबसे ज्यादा शिवलिंग यही पर हैं और काशी की तरह यहां गंगा अर्ध चंद्राकार मे बहती है इसिलिए इसे अपरा काशी भी कहते हैं।

उन्होने कहा कि पांचाल शोध एवं विकास समिति ने डा0 भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के पर्यटन एवं होटल प्रबंधन संस्थान के साथ पिछ्ले वर्ष समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किया था। तब से विश्वविद्यालय से निरंतर एक दृस्टि व प्रेरणा कार्य करने के लिये मिलती है।

इस अवसर पर प्रो0 लवकुश मिश्र को पांचाल गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर प्रसिद्ध कवित्रि डा0 स्वेता दुबे सहित अन्य वक्ताओं ने भी अपने विचार रखे। संगोष्ठी के संयोजक श्री भूपेन्द्र सिंह ने सभी का अभार व्यक्त किया।

Advertisements

See also  पूर्व भारतीय क्रिकेटर ने किया खेरागढ़ विधानसभा क्रिकेट महाकुंभ का शुभारंभ
Share This Article
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement