चंडीगढ़: आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल, चाहे दिल्ली, पंजाब या अन्य राज्यों में बड़े नेता माने जाएं, लेकिन अपने गृह राज्य हरियाणा में उनकी पार्टी अब तक ठोस पहचान बनाने में असफल रही है। हरियाणा में आम आदमी पार्टी का वोट प्रतिशत एक से दो प्रतिशत के बीच ही सीमित रहा है। वर्तमान में हरियाणा में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही है, और एक बार फिर यह सवाल उठता है कि क्या केजरीवाल अपनी पार्टी को यहां जन स्वीकृति दिला पाएंगे। Kejriwal’s Challenge: Struggling for Acceptance in Haryana
हरियाणा के चुनावी परिदृश्य में आम आदमी पार्टी अकेले खड़ी है। कांग्रेस की ‘इंडिया’ गठबंधन में आम आदमी पार्टी भी शामिल है, लेकिन हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए दोनों दलों के बीच गठबंधन नहीं हो पाया।
केजरीवाल की चुनौती
हाल ही में केजरीवाल शराब घोटाले के मामले में जमानत पर जेल से बाहर आए हैं, और अब उनके सामने अपनी पार्टी का जनाधार साबित करने की चुनौती है। आम आदमी पार्टी का गठन करने के बाद, केजरीवाल तीन बार दिल्ली में सरकार बना चुके हैं और पंजाब में भी पार्टी को सत्ता में ला चुके हैं। हालांकि, हरियाणा में अब तक वे कोई विशेष उपलब्धि नहीं दिखा सके हैं।
आम आदमी पार्टी ने हरियाणा में विधानसभा और लोकसभा के हर चुनाव में भाग लिया है, लेकिन वोट प्रतिशत हमेशा एक से दो प्रतिशत के बीच रहा है। यह केजरीवाल की गृह राज्य में पार्टी की कठिनाइयों को दर्शाता है।
आम आदमी पार्टी की अब तक की चुनावी सफलताएं मुख्यतः केजरीवाल द्वारा दिए गए आश्वासनों पर आधारित रही हैं, न कि सामाजिक समीकरणों पर। इसलिए यह कहना कठिन है कि सामाजिक समीकरणों की कमी के कारण पार्टी को हरियाणा में सफलता नहीं मिल रही है।
अब देखना होगा कि केजरीवाल इस बार हरियाणा के मतदाताओं को लुभाने के लिए कौन से नए रणनीति अपनाते हैं और क्या उनकी पार्टी की स्थिति में कोई बदलाव आता है या यह पूर्ववत ही बनी रहती है।