अलीगढ़: 300 करोड़ का भूमि घोटाला—जांच या प्रशासनिक छलावा?
अलीगढ़।अलीगढ़ में 300 करोड़ रुपये का भूमि घोटाला एक गंभीर सामाजिक और प्रशासनिक संकट बन चुका है, जिसने 750 राज्य कर्मचारियों के सपनों को चकनाचूर कर दिया है। जिन प्लॉटों पर उनका अधिकार था, वे भूमाफियाओं के कब्जे में चले गए, और इसके बावजूद प्रशासन की चुप्पी और ढीली कार्यवाही ने इस मुद्दे को और भी संदेहास्पद बना दिया है। क्या यह न्याय की दिशा में प्रशासनिक कोताही है, या फिर अधिकारियों और भूमाफियाओं के गठजोड़ का परिणाम?
एसआईटी की जांच: न्याय या दिखावा?
17 जून 2024 में शासन द्वारा गठित एसआईटी टीम, जिसमें अलीगढ़ के कमिश्नर, डीआईजी, और विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष शामिल थे, इस घोटाले की जड़ तक पहुंचने का जिम्मा सौंपा गया था। मगर अब, महीनों बाद भी जांच निष्कर्षहीन है। कर्मचारियों का आरोप है कि इस देरी के पीछे प्रशासनिक मिलीभगत है। क्या एसआईटी इस मामले में सचमुच गंभीर है या यह जांच मात्र एक औपचारिकता बनकर रह गई है?
भूमाफिया-अफसर गठजोड़: आखिर कौन देगा जवाब?
कर्मचारियों के आरोप गंभीर हैं—अगर जांच सही से हो, तो कई उच्चाधिकारियों के नाम सामने आ सकते हैं, जिन्होंने भूमाफियाओं के साथ मिलकर इस घोटाले को अंजाम दिया। यदि प्रशासन अपनी जवाबदेही से बचने की कोशिश कर रहा है, तो यह केवल न्याय का अपमान नहीं, बल्कि समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ना है।
1989 में समिति द्वारा खरीदी जमीन पर हुआ घोटाला: न्याय का मजाक
यह मामला 1989 में समिति द्वारा खरीदी जमीन से शुरू हुआ था, जब समिति ने कयामपुर और असदपुर में किसानों से जमीन खरीद कर राज्य कर्मचारियों को 200 वर्ग गज के प्लॉट आवंटित किए थे। लेकिन समिति के चुनाव न होने का फायदा उठाकर प्रभावशाली व्यक्तियों ने फर्जी दस्तावेजों के सहारे प्लॉटों को बेच दिया, और कर्मचारियों को उनके अधिकार से वंचित कर दिया गया। 300 करोड़ रुपये के इस घोटाले ने कई कर्मचारियों की ज़िंदगी बर्बाद कर दी, और उनका सपना धराशायी हो गया।
कर्मचारियों का संघर्ष: “आर-पार की लड़ाई”
यह मामला अब कर्मचारियों के लिए केवल जमीन का नहीं रहा। यह उनके अधिकारों, उनके भविष्य, और उनके सपनों की लड़ाई बन चुकी है। कर्मचारियों ने स्पष्ट किया है कि जब तक दोषियों को सजा नहीं मिलती और उनकी जमीन वापस नहीं मिलती, वे पीछे नहीं हटेंगे। उनका संघर्ष आर-पार की लड़ाई का रूप ले चुका है, और अगर प्रशासन ने जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाए, तो यह एक बड़े जनांदोलन का रूप ले सकता है।
प्रशासनिक न्याय कब?
कर्मचारियों की उम्मीदें अब लगभग टूट चुकी हैं। हर गुजरते दिन के साथ उनका धैर्य चुक रहा है। सवाल यह है—क्या प्रशासन इस घोटाले में संलिप्त दोषियों को बेनकाब कर सख्त कार्यवाही करेगा, या फिर यह मामला भी अन्य घोटालों की तरह दबा दिया जाएगा? आखिरकार, इस घोटाले का सच सामने आना जरूरी है, ताकि उन 750 कर्मचारियों को न्याय मिल सके, जो न्याय के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं।
समाज और प्रशासन दोनों की जिम्मेदारी है कि वे इस गंभीर मुद्दे पर आंखें न मूंदें और जल्द से जल्द पीड़ितों को न्याय दिलाएं।