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मोहन भागवत के तीन-बच्चों के मानदंड के आह्वान का स्वागत करें या विरोध? धर्म या विकास? अजीब दुविधा!

Dharmender Singh Malik
4 Min Read
कैसे ये तथ्य नजरअंदाज करें कि आबादी के नियंत्रण से आज भारत की सामाजिक आर्थिक व्यवस्था सुदृढ़ हुई है, मिडिल क्लासेज की लाइफ स्टाइल, शिक्षा स्तर काफी सुधरा है। स्वास्थ्य भी इंप्रूव हुआ है। 1952 में शुरू हुए परिवार नियोजन अभियान का प्रभाव अब दिखने लगा है।
ऐसे में जन संख्या वृद्धि का सुझाव कौन मानेगा? लेट हो गए हैं हम।
बृज खंडेलवाल 

हिंदू समाज के सामाजिक और आर्थिक विकास में तीन बच्चों के मानदंड को अपनाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत के आह्वान ने एक नई बहस छेड़ दी है। यह विचार जनसांख्यिकी, सामाजिक, और नैतिक दृष्टिकोण से एक जटिल प्रश्न खड़ा करता है, जिसका उत्तर हर किसी के लिए अलग हो सकता है।

धार्मिक और राजनीतिक दृष्टिकोण

भागवत का सुझाव विशेष रूप से हिंदू वोटरों को लक्षित कर प्रतीत होता है, जो अगले कुछ दशकों में हिंदू और मुस्लिम जनसंख्या के बीच संतुलन बनाए रखने की चिंता करते हैं। कुछ पक्षों का कहना है कि यदि हिंदू परिवारों में बच्चों की संख्या बढ़ाई जाती है, तो अल्पसंख्यक समाज के बढ़ते प्रभाव से संतुलन बिगड़ सकता है। दूसरी ओर, युवा हिंदू समाज का एक बड़ा हिस्सा आधुनिक जीवनशैली को अपनाता है, जिसमें एकल परिवार, कम बच्चों और लिव-इन रिलेशन जैसी अवधारणाएं लोकप्रिय हो चुकी हैं।

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महिला सशक्तिकरण और आर्थिक दबाव

भागवत का यह आह्वान महिला सशक्तिकरण और सामाजिक स्वायत्तता के खिलाफ जा सकता है, क्योंकि तीन बच्चों का मानक महिलाओं पर पारंपरिक पारिवारिक भूमिकाओं को और मजबूती से लागू कर सकता है। भारत में महिलाओं को प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में सूचित निर्णय लेने का अधिकार मिलना चाहिए, लेकिन अधिक बच्चों के दबाव में उनकी व्यक्तिगत आकांक्षाएं और करियर की संभावनाएं प्रभावित हो सकती हैं।

आर्थिक निहितार्थ

आर्थिक दृष्टिकोण से भी यह नीति चुनौतीपूर्ण हो सकती है। कई परिवार पहले से ही अपने बच्चों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। यदि बड़े परिवारों को प्रोत्साहित किया जाता है, तो यह जीवन स्तर को और खराब कर सकता है, संसाधनों की कमी उत्पन्न कर सकता है, और बाल गरीबी को बढ़ावा दे सकता है।

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पर्यावरणीय और संसाधन दबाव

भारत की बढ़ती जनसंख्या पर दबाव बढ़ता जा रहा है, और संसाधनों का संतुलित उपयोग अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि हम बिना सतत विकास के परिवारों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करेंगे, तो यह जल संसाधन, स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों और सार्वजनिक सेवाओं पर गंभीर दबाव डाल सकता है।

शिक्षा और महिला सशक्तिकरण से स्थिरता

अन्य देशों में, जैसे कि कुछ विकसित देशों में, शैक्षिक सुधार और महिला सशक्तिकरण के माध्यम से जनसंख्या स्थिरीकरण की प्रक्रिया अपनाई गई है। शोध यह भी दिखाता है कि महिलाओं की शैक्षिक प्राप्ति और कम प्रजनन दर के बीच एक सीधा संबंध है। इस प्रकार, परिवार नियोजन और महिला सशक्तिकरण पर ध्यान केंद्रित करना, जनसंख्या वृद्धि को स्थिर करने का अधिक प्रभावी और स्थायी तरीका हो सकता है।

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तीन बच्चों के मानदंड पर जोर देने का विचार जटिल है और इसके दीर्घकालिक परिणाम भी असमंजसपूर्ण हो सकते हैं। इस विचार को अपनाने से पहले यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि यह महिलाओं के सशक्तिकरण, संसाधन प्रबंधन, और सामाजिक समृद्धि के लिए सही दिशा में काम करे। केवल संख्याओं को बढ़ाने से वास्तविक विकास और सामाजिक कल्याण संभव नहीं हो सकता है।

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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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