गोपाल दास नीरज, भारतीय सिनेमा के एक महान गीतकार, जिनकी रचनाओं में शैलेंद्र की तरह ही दिल छू लेने वाली गहराई थी। शैलेंद्र के जाने के बाद नीरज का नाम उन गीतकारों में शामिल हुआ, जिनकी रचनाओं में सिनेमा के दर्शकों को दिल से जुड़ने का एक नया तरीका मिला। उनकी रचनाओं में सामान्य हिंदी शब्दों का उपयोग करके उन्होंने अपनी कला को हर व्यक्ति तक पहुँचाया। नीरज के गीतों ने फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज कलाकारों को भी अपनी ओर खींचा, जिनमें राज कपूर और देव आनंद जैसे महान फिल्मकार शामिल थे।
नीरज और शैलेंद्र: समानता और अंतर
शैलेंद्र के गीतों ने सिनेमा की दुनिया में एक नई दिशा दी थी। उनका गीत “न हाथी है न घोड़ा है, वहां पैदल ही जाना है” और नीरज का गीत “काल का पहिया घूमै है भइया” दोनों ही गीत समाज और जीवन की सच्चाई को सरल शब्दों में प्रस्तुत करते हैं। शैलेंद्र का गीत “चिट्ठियां हो तो हर कोई बांचे” और नीरज का “लिखे जो खत तुझे” दोनों ही गीतों में भावनाओं की गहरी अभिव्यक्ति दिखाई देती है। नीरज का गीत “कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे” भी उसी प्रकार का गीत था, जो हर दिल को छू गया।
नीरज की शैली में वह सहजता और सरलता थी, जो शैलेंद्र के गीतों में दिखाई देती थी। नीरज ने कभी भी उर्दू के भारी-भरकम शब्दों का प्रयोग नहीं किया, बल्कि उन्होंने आम बोलचाल की हिंदी का प्रयोग किया, जिससे उनकी रचनाएं जनता के दिलों में घर कर गईं। यही कारण था कि राज कपूर और देव आनंद जैसे फिल्मकारों ने उनकी रचनाओं को पसंद किया और उनके गीतों को अपनी फिल्मों में शामिल किया।
राज कपूर और देव आनंद की नीरज से मुलाकात
राज कपूर और देव आनंद जैसे दिग्गज फिल्मकार नीरज के गीतों के बहुत बड़े प्रशंसक थे। राज कपूर ने खुद नीरज से कहा था कि वह शैलेंद्र के बाद उन्हें अपने गीतों का सबसे उपयुक्त विकल्प मानते थे। शैलेंद्र के निधन के बाद राज कपूर ने नीरज से संपर्क किया और उनकी फिल्म “मेरा नाम जोकर” के लिए गीत लिखवाए। नीरज का गीत “कहता है जोकर सारा जमाना” फिल्म का थीम सॉन्ग बन गया, और इस गीत ने फिल्म की दार्शनिकता को पूरी तरह से व्यक्त किया।
देव आनंद ने भी नीरज के गीतों की सराहना की। 1960 के दशक के शुरुआती वर्षों में एक कवि सम्मेलन में नीरज ने अपने गीत प्रस्तुत किए, जिसे सुनकर देव आनंद ने उनकी तारीफ की और उन्हें अपनी फिल्म “प्रेम पुजारी” के लिए गीत लिखने का निमंत्रण दिया। नीरज का गीत “तेरे रंग से यूं रंगा है मेरा मन” और “रंगीला रे” आज भी हर प्रेमी की जुबान पर है।
नीरज का फिल्मी सफर
नीरज का फिल्मी सफर महज छह साल का था, लेकिन इस दौरान उन्होंने 120 से ज्यादा गाने लिखे, जो आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं। नीरज का सबसे मशहूर गीत “कारवां गुजर गया, गुबार देखते रहे” फिल्म “नई उमर की नई फसल” (1966) का था। इस गीत की विशेषता यह थी कि यह पहले से कवि सम्मेलनों में गाया जाता था और बाद में फिल्म में शामिल किया गया। इस गीत को मोहम्मद रफी की आवाज में गाया गया, और यह गीत युवाओं के बीच एक जुनून बन गया था।
नीरज और शैलेंद्र के गीतों में समानता
नीरज और शैलेंद्र दोनों ही अपने गीतों में समाज और जीवन की सच्चाइयों को सरल तरीके से व्यक्त करते थे। शैलेंद्र का गीत “आवारा हूं” और नीरज का गीत “कारवां गुजर गया” दोनों ही गाने निराशा और उम्मीद के बीच के अंतर को दर्शाते हैं। नीरज ने कभी भी अपने गीतों में शब्दों की जटिलता नहीं बढ़ाई, और उन्होंने हर व्यक्ति तक अपनी बात को पहुँचाया।
नीरज का संगीत से संबंध
नीरज का जीवन केवल फिल्मों तक सीमित नहीं था। उन्होंने साहित्य में भी योगदान दिया था और उन्हें कवि सम्मेलनों में अपनी रचनाओं का प्रस्तुत करना बहुत पसंद था। उनका कहना था कि जब तक लोग उनकी रचनाओं की सराहना करते हैं, वह लिखते रहेंगे।
नीरज का फिल्मी जीवन और वापसी
नीरज का फिल्मी जीवन भले ही छोटा था, लेकिन उनके द्वारा लिखे गए गीतों की लोकप्रियता आज भी बनी हुई है। 2016 में एक साक्षात्कार के दौरान नीरज ने बताया था कि जब उनके प्रिय संगीतकार जैसे एसडी बर्मन और रोशन का निधन हो गया, तो उनका मन सिनेमा से उचट गया। हालांकि, उनका सिनेमा से संबंध बना रहा और देव आनंद ने उन्हें 1984 में “हम नौजवान” फिल्म के लिए गीत लिखवाए।
नीरज का योगदान भारतीय सिनेमा में अमूल्य है। उनकी रचनाओं ने फिल्म इंडस्ट्री को एक नया दिशा दी, और उनके गीत आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं। राज कपूर और देव आनंद जैसे फिल्मकारों के लिए नीरज एक दार्शनिक गीतकार के रूप में थे, जो उनके फिल्मों में पूरी तरह से उतरते थे। उनके गीतों में जीवन का सार और समाज की सच्चाइयाँ झलकती हैं, और यही कारण है कि नीरज को आज भी एक महान गीतकार के रूप में याद किया जाता है।