भा.ज.पा. जिलाध्यक्ष पद के लिए मची है जबरदस्त मारामारी, नेताओं के बीच छिड़ी है चुनावी जंग!

Rajesh kumar
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आगरा: भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) यूपी में अपने जिलाध्यक्षों की घोषणा में इतनी देर कर रही है कि अब यह मुद्दा पार्टी के लिए सिरदर्द बन गया है। पहले 15 जनवरी तक जिलाध्यक्षों की घोषणा का ऐलान किया गया था, लेकिन अब तक प्रदेश नेतृत्व के पसीने छूट रहे हैं और यह काम पूरा नहीं हो सका है। प्रदेश में जिलाध्यक्ष पदों के लिए उम्मीदवारों की लाइन लगी हुई है, और प्रत्येक जिले में केवल एक पद होने के बावजूद दावेदारों की संख्या दर्जनों में है। पार्टी का उद्देश्य सामाजिक समीकरणों को सही तरह से साधते हुए जिलाध्यक्ष का चयन करना है, और इसी कारण से यह प्रक्रिया इतनी धीमी हो रही है।

जिलाध्यक्षों के चयन में देरी, 15 जनवरी की समयसीमा गई पार

पार्टी की संगठनात्मक चुनाव प्रक्रिया के तहत 7 से 10 जनवरी के बीच जिलाध्यक्षों के नामांकन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी। जिले के चुनाव अधिकारियों ने दावेदारों की छंटनी की और प्रमुख नाम प्रदेश नेतृत्व को सौंपे। इसके बाद कई बार बैठकों का दौर चला और पहले यह उम्मीद जताई जा रही थी कि 20 से 22 जनवरी के बीच जिलाध्यक्षों की घोषणा हो जाएगी, लेकिन अब तक कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हो पाई है।

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सांसद-विधायकों की मनमानी और सामाजिक समीकरणों का दबाव

भा.ज.पा. के जिलाध्यक्ष पद के लिए गहरी मारामारी देखने को मिल रही है। हर जिले में एक पद है और दावेदार दर्जनों में हैं। पार्टी के भीतर कई बड़े नेता और कार्यकर्ता अपने पसंदीदा उम्मीदवार को इस पद पर देखना चाहते हैं, जिससे स्थिति और भी जटिल हो गई है। सांसद और विधायक भी अपनी पसंद के उम्मीदवारों को जिलाध्यक्ष के रूप में देखना चाहते हैं, जिसका असर प्रदेश नेतृत्व के निर्णय पर पड़ा है।

इसके अलावा, भाजपा के जिलाध्यक्षों के चयन में सामाजिक समीकरणों को भी ध्यान में रखा जा रहा है। पार्टी अपने दावेदारों को इस तरह से चुनना चाहती है, जिससे सामाजिक संतुलन बना रहे। इसके कारण, किसी एक नाम पर सहमति बनाना बेहद मुश्किल हो रहा है। यही कारण है कि जिलाध्यक्षों की सूची की घोषणा में देरी हो रही है।

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सत्ता पक्ष के जिलाध्यक्ष का रुतबा

भा.ज.पा. में जिलाध्यक्ष का पद भी विधायक और सांसद के रुतबे से कम नहीं होता। जिलाध्यक्ष सत्ता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और उनकी छवि पार्टी के अंदर और बाहर काफी प्रभावशाली होती है। इस कारण हर किसी की इच्छा है कि वह जिलाध्यक्ष बने और अपनी राजनीतिक ताकत को बढ़ाए। सत्ता के इस रुतबे को लेकर दावेदारों के बीच तीव्र प्रतिस्पर्धा बनी हुई है।

प्रदेश अध्यक्ष चुनाव से पहले जिलाध्यक्षों का चुनाव जरूरी

भा.ज.पा. की संगठनात्मक प्रक्रिया के तहत 25 जनवरी को प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव होना है। लेकिन प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के लिए जिलाध्यक्षों का चुनाव अनिवार्य है। यह भी तय किया गया है कि इस स्थिति को देखते हुए यूपी में 45 से 50 जिलाध्यक्षों की घोषणा की जाएगी, ताकि प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव का कोरम पूरा हो सके। हालांकि, इसके लिए भी पार्टी को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

नाम वापसी के फॉर्म और विरोध का नहीं होना सवाल

यह भी स्पष्ट किया गया है कि पार्टी के नामांकन प्रक्रिया के दौरान सभी दावेदारों से नाम वापसी के फॉर्म भी लिए गए थे। इसका मतलब यह है कि अब जिस भी व्यक्ति को जिलाध्यक्ष पद सौंपा जाएगा, वह प्रदेश नेतृत्व द्वारा किया गया चयन होगा। चूंकि नाम वापसी के फॉर्म पहले ही प्राप्त किए जा चुके हैं, ऐसे में किसी विरोध की संभावना नहीं बचती। अब बस प्रदेश नेतृत्व का निर्णय आना बाकी है, लेकिन इसे अंतिम रूप देने में समय लग रहा है।

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भा.ज.पा. के जिलाध्यक्ष पदों को लेकर जो मारामारी चल रही है, वह पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है। हर जिले में दर्जनों दावेदारों के बीच एक पद के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा हो रही है। भाजपा प्रदेश नेतृत्व के सामने यह स्थिति चुनौतीपूर्ण हो गई है, क्योंकि उसे हर जिले के सामाजिक समीकरण और नेताओं की इच्छाओं को संतुलित करते हुए सही निर्णय लेना होगा। हालांकि, पार्टी ने यह तय किया है कि जल्दी ही जिलाध्यक्षों की घोषणा की जाएगी, ताकि प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया में कोई रुकावट न आए।

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