RSS प्रमुख मोहन भागवत को अधिवक्ता ने भेजा कानूनी नोटिस, एक हाथ से प्रणाम करने की परंपरा पर उठाया सवाल

BRAJESH KUMAR GAUTAM
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हाथरस:  उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के सादाबाद तहसील के सिविल कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले अधिवक्ता सुनील कुमार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत को कानूनी नोटिस भेजा है। नोटिस में आरएसएस द्वारा अपनाई गई एक हाथ से प्रणाम करने की परंपरा को सनातन धर्म और धार्मिक ग्रंथों के खिलाफ बताया गया है। यह मामला अब चर्चा का विषय बन गया है, और अधिवक्ता द्वारा उठाए गए सवाल ने धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं के बीच एक नई बहस शुरू कर दी है।

कानूनी नोटिस में क्या है आरोप?

अधिवक्ता सुनील कुमार ने अपनी कानूनी नोटिस में दावा किया है कि सनातन धर्म के अनुसार भगवा ध्वज और गुरुजनों को हमेशा दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करने की परंपरा रही है। उनका आरोप है कि आरएसएस के स्वयंसेवक न केवल भगवा ध्वज, बल्कि संघ के पदाधिकारियों को भी केवल एक हाथ से प्रणाम करते हैं, जो हिंदू धार्मिक मान्यताओं और ग्रंथों के विपरीत है।

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अधिवक्ता ने यह भी कहा कि किसी भी धार्मिक ग्रंथ में एक हाथ से प्रणाम करने का कोई उल्लेख नहीं है। उनके अनुसार, यह परंपरा सनातन धर्म की मूल भूत शिक्षा से मेल नहीं खाती है। सुनील कुमार ने मोहन भागवत को यह नोटिस भेजते हुए कहा कि संघ को अपनी परंपराओं पर पुनर्विचार करना चाहिए।

60 दिनों का समय, चेतावनी भी दी गई

नोटिस में अधिवक्ता सुनील कुमार ने मोहन भागवत को इस मामले में अपना पक्ष रखने के लिए 60 दिनों का समय दिया है। इसके साथ ही उन्होंने यह चेतावनी भी दी है कि अगर इस अवधि में कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिलता, तो वे इस मामले को न्यायालय में ले जाएंगे और एक याचिका दायर करेंगे। उनका कहना है कि इस विवाद को शांतिपूर्वक हल करने के लिए संघ को स्पष्ट जवाब देना चाहिए।

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संघ की प्रतिक्रिया और मामला

फिलहाल आरएसएस की तरफ से इस कानूनी नोटिस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। हालांकि, यह मामला धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को लेकर नई बहस को जन्म दे सकता है, जो न केवल समाज में बल्कि राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हो सकता है।

सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं का सवाल

यह मामला इस बात को भी उजागर करता है कि किस प्रकार विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं के पालन को लेकर समाज में विभिन्न दृष्टिकोण होते हैं। जहां एक ओर यह परंपरा कई लोगों के लिए सामान्य हो सकती है, वहीं कुछ लोग इसे धार्मिक आस्थाओं के खिलाफ मान सकते हैं। ऐसे में इस मुद्दे पर विचार और चर्चा की आवश्यकता और भी बढ़ जाती है।

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