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वास्तु शास्त्र के अनुसार कुआं और बोरिंग के स्थान का प्रभाव: जानें किस दिशा में जल स्रोत बनाना है शुभ और क्यों

Manasvi Chaudhary
7 Min Read
वास्तु शास्त्र के अनुसार कुआं और बोरिंग के स्थान का प्रभाव: जानें किस दिशा में जल स्रोत बनाना है शुभ और क्यों

वास्तु शास्त्र में जल स्रोतों का सही स्थान हमारे जीवन को प्रभावित करता है। जानें विभिन्न दिशाओं में जल स्रोत के प्रभाव और इसके जीवन पर होने वाले लाभ और हानियों के बारे में।

आगरा: हमारे प्राचीन ज्ञान में, वास्तु शास्त्र जीवन के हर पहलू के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है, जिसमें हमारे जल स्रोतों की दिशा भी शामिल है। यह माना जाता है कि कुएं या बोरिंग की दिशा हमारे स्वास्थ्य, धन और पारिवारिक जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है।

जल का महत्व जीवन के हर पहलू में अत्यधिक है। जब हम कुएं और घड़े का पानी पीते थे, तब हमारी सेहत बेहतर रहती थी, लेकिन अब आरओ के पानी ने हमें बीमारियों का शिकार बना दिया है। पानी के स्रोतों का हमारे जीवन में गहरा प्रभाव होता है, विशेष रूप से वास्तु शास्त्र के अनुसार।

वास्तु शास्त्र में जल स्रोतों का महत्व

ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविन्द मिश्र बताते हैं कि जल हमारी प्राथमिक आवश्यकताओं में से एक है। पुराने समय में जब हम कुएं और घड़े का पानी पीते थे, तो स्वस्थ रहते थे। लेकिन आजकल आरओ का पानी पीने से बीमारियाँ बढ़ रही हैं। वास्तु शास्त्र में ईशान कोण को सबसे शुभ माना गया है, और प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, भूगर्भीय जल स्रोत जैसे कुआं, बोरिंग, तालाब आदि ईशान कोण में अत्यंत शुभ होते हैं। प्रातः काल सूर्य की पराबैंगनी किरणें इस दिशा के जल को ऊर्जावान बनाती हैं, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है।

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वास्तु शास्त्र के अनुसार, जल स्रोत जैसे कुआं, बोरिंग, तालाब, तरणताल आदि भवन निर्माण के बाद अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं। इन जल स्रोतों का सही दिशा में होना बेहद जरूरी है, क्योंकि इसका प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है।

वास्तु शास्त्र में ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) को सबसे शुभ माना गया है। प्राचीन ग्रंथों में यह स्पष्ट रूप से उल्लेखित है कि भूगर्भीय जल स्रोत इस दिशा में होने से व्यक्ति की सेहत, समृद्धि और मानसिक शांति में वृद्धि होती है। खासकर प्रातः काल की सूर्य की पराबैंगनी किरणें जब ईशान कोण के जल स्रोतों पर पड़ती हैं, तो इन किरणों की ऊर्जा कई गुना बढ़ जाती है और यह हमारे शरीर को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती है।

जल स्रोत के स्थान का प्रभाव:

जल स्रोत के स्थान के बारे में वास्तु शास्त्र में बहुत कुछ कहा गया है। इसका न केवल व्यक्ति के स्वास्थ्य पर, बल्कि मानसिक स्थिति और आर्थिक स्थिति पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है।

विभिन्न दिशाओं में कुआं और बोरिंग के प्रभाव इस प्रकार हैं:

  1. पूर्वी ईशान (उत्तर-पूर्व दिशा):

    • फल: धन में वृद्धि, संतान वृद्धि, उत्तम विद्या।

    • कारण: यह दिशा अत्यधिक शुभ मानी जाती है। यहां जल स्रोत रखने से घर में समृद्धि और शिक्षा के क्षेत्र में सफलता मिलती है। परिवार के सदस्य मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहते हैं।

  2. उत्तर-पूर्व (नॉर्थ-ईस्ट):

    • फल: धन में वृद्धि।

    • कारण: इस दिशा में जल स्रोत होने से धन की प्राप्ति और जीवन में सकारात्मक बदलाव आता है। यह दिशा समृद्धि और खुशहाली की दिशा मानी जाती है।

  3. पश्चिमी वायव्य (वेस्ट-नॉर्थ):

    • फल: गरीबी, घर में कलह, मानसिक तनाव।

    • कारण: इस दिशा में जल स्रोत होने से घर में तनाव और मानसिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। इसके अलावा, यह दिशा घर के माहौल को नकारात्मक बना सकती है, जिससे परिवार में कलह और आर्थिक परेशानी आ सकती है।

  4. उत्तरी वायव्य (नॉर्थ-वेस्ट):

    • फल: शत्रुता, चोरी का भय, धन के कारण झगड़े।

    • कारण: इस दिशा में जल स्रोत रखने से घर में शत्रुता बढ़ सकती है, और चोरी का खतरा भी बना रहता है। परिवार में धन को लेकर विवाद उत्पन्न हो सकता है।

  5. नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम):

    • फल: स्वामी की असामयिक मृत्यु, धन की हानि, पुरुष और स्त्रियों के बीच आपसी कलह।

    • कारण: यह दिशा बहुत हानिकारक मानी जाती है। यहां जल स्रोत होने से स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। यह दिशा परिवार में तनाव और झगड़े का कारण बन सकती है।

  6. आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व):

    • फल: बच्चों को भय, झगड़े और तकलीफें, धन की क्षति, स्त्रियों को दुःख।

    • कारण: इस दिशा में जल स्रोत होने से बच्चों को भय और मानसिक तनाव हो सकता है। इसके अलावा, इस दिशा के कारण महिलाओं को दुख और मानसिक कष्ट भी हो सकता है।

  7. ब्रह्मस्थान (केंद्र):

    • फल: परिवार में विघटन, पूर्ण नाश।

    • कारण: ब्रह्मस्थान को अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। यहां जल स्रोत का होना परिवार में विघटन और संकट का कारण बन सकता है। यह स्थिति घर के शांति और समृद्धि के लिए हानिकारक होती है।

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क्या करना चाहिए?

वास्तु शास्त्र में यह परामर्श दिया गया है कि जल स्रोत का निर्माण केवल ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में ही किया जाना चाहिए। इसके अलावा, जल स्रोत को कोण सूत्र पर नहीं होना चाहिए। इसका मतलब यह है कि जल स्रोत को तिरछी रेखा से उस क्षेत्र में न बनवाएं, जहां भूखंड के नैऋत्य कोण और ईशान कोण मिलते हैं।

यदि आप वास्तु शास्त्र के अनुसार जल स्रोत का निर्माण करेंगे, तो न केवल आपके जीवन में समृद्धि आएगी, बल्कि आपकी सेहत भी बेहतर रहेगी।

जल स्रोत का सही स्थान न केवल हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, बल्कि हमारे मानसिक स्वास्थ्य और समृद्धि में भी योगदान देता है। इसीलिए, कुआं या बोरिंग के स्थान को ठीक से चुनना चाहिए। अगर आप अपने घर या दफ्तर में जल स्रोत का निर्माण करने जा रहे हैं, तो वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों का पालन जरूर करें।

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