कुरुक्षेत्र में सूर्य के उत्तरायण होने पर ही भीष्म पितामह ने क्यों देह का त्याग किया – पं० प्रमोद गौतम

Rajesh kumar
4 Min Read

आगरा। वैदिक सूत्रम रिसर्च संस्था की संस्थापिका योग-गुरु स्व दिनेशवती गौतम ने माघ माह में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी (मासिक शिवरात्रि) को अपने भौतिक शरीर का परित्याग करके सूर्य के उत्तरायण में महीनों के महात्मा माघ माह में निर्वाण को प्राप्त किया था।
वैदिक सूत्रम की संस्थापिका के पांच वर्ष सम्पूर्ण होने पर संस्था के चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पं० प्रमोद गौतम ने आगरा टैगोर नगर दयालबाग स्थित संस्था कार्यालय पर उन्हें याद करते हुए हार्दिक श्रदांजली व्यक्त की और द्वापरयुग के कुछ महत्वपूर्ण रहस्यमयी तथ्यों को उजागर किया।

वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने द्वापरयुग के एक महत्वपूर्ण रहस्यमयी तथ्य के सन्दर्भ बताते हुए कहा कि कुरुक्षेत्र में महीनों के महात्मा माघ माह में ही क्यों देह त्याग किया भीष्म पितामह ने, इसके धार्मिक रहस्यमयी तथ्य को शास्त्रों के अनुसार गहराई से समझने की जरूरत है। द्वापरयुग में महाभारत युद्ध के दौरान युद्ध क्षेत्र में शरशय्या पर लेटने के बाद भी भीष्म पितामह प्राण नहीं त्यागते हैं। भीष्म पितामह के शरशय्या पर लेट जाने के बाद कुरुक्षेत्र में युद्ध 8 दिन और चला और इसके बाद भीष्म पितामह कुरुक्षेत्र के मैदान में अकेले लेटे रहे। भीष्म पितामह यद्यपि शरशय्या पर पड़े हुए थे फिर भी उन्होंने श्रीकृष्ण के कहने से युद्ध के बाद युधिष्ठिर का शोक दूर करने के लिए राजधर्म, मोक्षधर्म और आपद्धर्म आदि का मूल्यवान उपदेश बड़े विस्तार के साथ कुरुक्षेत्र के मैदान में दिया। इस उपदेश को सुनने से युधिष्ठिर के मन से ग्लानि और पश्‍चाताप दूर हो जाता है। यह उपदेश ही भीष्म नीति के नाम से पौराणिक काल से जाना जाता है।

See also  नव संवत्सर और नवरात्रि की शुरुआत: इस बार हाथी पर सवार होकर आईं माँ दुर्गा, विशेष योग और राजतंत्र में बदलाव के संकेत

उन्होंने बताया कि भीष्म पितामह यह भलीभांति जानते थे कि सूर्य के उत्तरायण होने पर प्राण त्यागने पर आत्मा को सदगति मिलती है और वे पुन: अपने लोक में जाकर मुक्त हो जाएंगे इसीलिए वे सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार करते हैं। परंतु जब सूर्य उत्तरायण हो गया तब भी उन्होंने भौतिक जगत की अपनी देह का त्याग नहीं किया क्योंकि शास्त्रों के अनुसार महीनों का महात्मा माघ माह सबसे उत्तम समय माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार इसे कल्पवास का पवित्र माह कहा जाता है इसीलिए भीष्म पितामह माघ माह का इंतजार करते रहे। माघ माह में आकाशमंडल में ज्यादा खुला होता है। धरती जिधर झुकी हुई है उधर ईशान कोण है। इस माह के दौरान यह क्षेत्र ज्यादा खुला और आवागमन हेतु सरल होता है।

See also  कन्याओं और महिलाओं का सम्मान ही माता की सच्ची उपासना-डॉ हरेन्द्र गुप्ता

पं,० गौतम ने बताया कि मकर संक्रांति पर्व से सूर्य के उत्तरायण होने पर माघ माह के आने पर युधिष्ठिर आदि सगे-संबंधी, पुरोहित और अन्य लोग भीष्म पितामह के पास पहुंचते हैं। उन सबसे भीष्म पितामह ने कहा कि इस शरशय्या पर उन्हें 58 दिन हो गए हैं। मेरे भाग्य से इस भौतिक जगत से उनके भौतिक शरीर के परित्याग का उपयुक्त मोक्षकारक माघ महीने का अत्यंत शुभ और उत्तम समय आ गया है। अब मैं स्वेच्छा से अपने शरीर को त्यागना चाहता हूं। इसके पश्चात उन्होंने सब लोगों से प्रेम-पूर्वक विदा मांगकर अपने भौतिक शरीर को त्याग दिया। सभी लोग भीष्म पितामह को याद कर रोने लगे। युधिष्ठिर तथा पांडवों ने पितामह के शरविद्ध शव को चंदन की चिता पर रखा तथा दाह-संस्कार किया। द्वापरयुग में भीष्म पितामह लगभग 150 वर्ष जीकर वे निर्वाण को प्राप्त हुए।

See also  शरद पूर्णिमा के दिन खीर बनाकर चाँद की चाँदनी में क्यों रखी जाती है?

उन्होंने बताया कि कुल मिलाकर माघ माह की पवित्रता के सन्दर्भ में हम यह समझ सकते हैं कि कुरुक्षेत्र में करीब 58 दिनों तक मृत्यु शैया पर लेटे रहने के बाद जब सूर्य उत्तरायण हो गया तब माघ माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भीष्म पितामह ने अपने भौतिक शरीर को छोड़ा था, इसीलिए यह दिन उनका निर्वाण दिवस है।

See also  नव संवत्सर और नवरात्रि की शुरुआत: इस बार हाथी पर सवार होकर आईं माँ दुर्गा, विशेष योग और राजतंत्र में बदलाव के संकेत
Share This Article
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement