केंद्र सरकार ने ई-कॉमर्स कंपनियों पर शिकंजा कसा है। सरकार ने डार्क पैटर्न से जुड़ी गाइडलाइंस अधिसूचित की। गाइडलाइंस का उल्लंघन करने पर 10 लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जाएगा। डार्क पैटर्न अपनानने वाली ई-कॉमर्स कंपनियां इस दायरे में आएंगी।
सरकार की ओर से सितंबर में गाइडलाइंस का ड्राफ्ट जारी हुआ था। इसका पालन नहीं करने वाली कंपनियों पर जुर्माना लगेगा। सरकार दिशानिर्देश का उल्लंघन करने वाली ई-कॉमर्स कंपनियों पर 10 लाख रुपए तक का जुर्माना लगा सकती है।
भारत के केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण ने 30 नवंबर, 2023 को डार्क पैटर्न की रोकथाम और विनियमन के लिए दिशानिर्देशों को अधिसूचित कर दिया है। उपभोक्ता मामलों के विभाग (डीओसीए) ने हितधारकों के साथ दो महीने के लंबे परामर्श के बाद सितंबर में डार्क पैटर्न से निपटने के लिए पहली बार मसौदा दिशानिर्देश प्रकाशित किए थे, जिसमें ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म, कानून फर्म, सरकार और अन्य उपभोक्ता संरक्षण संगठन शामिल हैं। डीओसीए ने 5 अक्टूबर, 2023 तक प्रस्तावित दिशानिर्देशों पर सार्वजनिक टिप्पणियां, सुझाव और प्रतिक्रिया मांगी थी।
डार्क पैटर्न की रोकथाम के लिए जारी किए गए दिशानिर्देश
डीओसीए ने मसौदा दिशानिर्देशों में विशिष्ट डार्क पैटर्न को सूचीबद्ध किया था, जिन्हें विशिष्ट डार्क पैटर्न कहा गया था। यह कहा गया था कि दिशानिर्देश अतिरिक्त पैटर्न को भी कवर करेंगे, जिन्हें केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण समय-समय पर निर्दिष्ट कर सकता है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीपीए) ने मसौदा दिशानिर्देशों में शामिल निर्दिष्ट डार्क पैटर्न की सूची में कुछ बदलाव किए हैं। अधिसूचित दिशानिर्देशों में यह भी कहा गया है कि निर्दिष्ट डार्क पैटर्न प्रथाएं और चित्रण केवल मार्गदर्शन प्रदान करते हैं और इसे कानून की व्याख्या या बाध्यकारी राय या निर्णय के रूप में नहीं माना जाएगा, क्योंकि विभिन्न तथ्यों या स्थितियों में अलग-अलग व्याख्याएं हो सकती हैं।
क्या कहती हैं गाइडलाइंस? क्या होते हैं डार्क पैटर्न?
- उपभोक्ता के लिए झूठी आपात स्थिति बनाना।
- उपभोक्ता को कहना कि यह डील अगले 1 घंटे में खत्म हो जाएगी।
- उपभोक्ता के शॉपिंग कार्ट में कोई चीज खुद डाल देना।
- उपभोक्ता को कोई चीज नहीं लेने के लिए उसे शर्मिंदा करना।
- उपभोक्ता को जबरदस्ती चीज थोपना।
- उपभोक्ता को किसी गैर जरूरी सेवा लेने के लिए उकसाना।
- उपभोक्ता को सब्सक्रिप्शन के जाल में फंसाना।
- ऐसी सेवाएं देना, जहां से उपभोक्ता सरलता से ना निकल सके।
- जानकारी छोटे अक्षरों में देना या छुपाना।
- किसी उत्पाद की जानकारी देना और उसके बाद उपभोक्ता के लिए उसे बदल देना।
- उपभोक्ता से प्लेटफार्म फीस के लिए अलग से चार्ज करना।
- किसी भी तरह से कंपनी के विज्ञापन को छुपा कर पेश करना।
- उपभोक्ता को किसी उत्पाद लेने के लिए बार-बार परेशान करना।
- उपभोक्ता को बताएं बिना उसका सब्सक्रिप्शन जारी रखना।
- सब्सक्रिप्शन बंद करने पर उपभोक्ता से उल्टे सीधे-तरीके से सवाल पूछकर परेशान करना।