नई दिल्ली । पिछले 8 वर्षों में भारत में सब्सिडी बड़ी तेजी के साथ कम की गई है। डीजल, रसोई गैस खाद इत्यादि में जो सब्सिडी दी जा रही थी। केंद्र सरकार ने पिछले 8 वर्षों में सब्सिडी में भारी कटौती की है। 2023-24 के बजट में पिछले वर्ष की तुलना में 28 फ़ीसदी सब्सिडी कम कर दी गयी। जो अभी तक की सब्सिडी कटौती का एक रिकॉर्ड है। बजट में सरकार ने खाद्य उर्वरक और ऊर्जा सब्सिडी पर बड़ी बेरहमी के साथ कैंची चलाई है। जिसका असर आम जनता पर पड़ना तय माना जा रहा है।
वर्तमान केंद्र सरकार ने खाद्यान्न स्टॉक को दृष्टिगत रखते हुए सब्सिडी में भारी कटौती करने का फैसला लिया है। सरकार को लगता है कि इससे राजकोषीय घाटा कम होगा। राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने के लिए वित्तीय विशेषज्ञों के अनुसार सरकार ने बहुत बडा जोखिम लिया है।वर्तमान सरकार के दूसरे कार्यकाल में सतत ऊर्जाखाद और उर्वरक की सब्सिडी में लगातार कमी की गई है। इस बार के बजट में यह कटौती 28 फ़ीसदी पर पहुंच गई है। पिछले 4 सालों में पेट्रोलियम सब्सिडी 38.1 फ़ीसदी कम हो गई है। वर्ष 2021 की बात करेंतो जीडीपी के मुकाबले कुल सब्सिडी का आकार 3.6 फ़ीसदी था। जो 2024 के बजट में घटकर 1.2 फ़ीसदी रह गया है।
सब्सिडी घटने का सबसे बड़ा असर किसानों और आम जनता पर पड़ना तय माना जा रहा है।लगातार कीमतें बढ़ रही हैं। सरकार का महंगाई पर कोई नियंत्रण नहीं रह गया है। जिससे आम जनता में बेचैनी बढ़ती जा रही है। सब्सिडी बिल में कमी करने से आम जनता को खाने पीने की चीजें महंगी मिलेगी। किसानों को खाद महंगी मिलेगी।
सरकार ने पिछले वर्षों में गैस पेट्रोल और डीजल की कीमतें बाजार के हवाले कर दी हैं। लेकिन कंपनियों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम कम होने के बाद भी भारत में डीजल और पेट्रोल के दाम कंपनियों द्वारा नहीं घटाए गए। इसे खेल को अब आम जनता भी समझने लगी है।