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आईआईटी मद्रास से पढ़ाई के बाद श्रीधन वेम्बू ने अमेरिका में नौकरी की.
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1996 में अमेरिका से भारत आकर अपने गांव में एक कंपनी शुरू की.
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2009 में इस कंपनी का नाम बदलकर जोहो कॉर्पोरेशन कर दिया गया.
Success Story: हर आईटी इंजीनियर का सपना होता है कि किसी अमेरिकी कंपनी में नौकरी मिल जाए और जिंदगी पैसों के साथ आसानी से कट जाए. लेकिन, कुछ आईटी प्रोफेशनल्स सैलरी और रुतबे से भी संतुष्ट नहीं होते हैं. हम आपको जिस शख्स की सक्सेस स्टोरी बता रहे हैं वह अमेरिका में अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर गांव आ गया और अरबों की एक कंपनी खड़ी कर दी.
हम बात कर रहे हैं जोहो (Zoho) के फाउंडर श्रीधर वेम्बू की, जिन्होंने एक साधारण-से कर्मचारी के रूप में अपने करियर की शुरुआत की और बिना किसी फंडिंग की मदद से 39,000 करोड़ की फर्म खड़ी कर दी.
अमेरिका से नौकरी छोड़कर गांव लौटे
तमिलनाडु से ताल्लुक रखने वाले श्रीधर वेम्बू एक मध्यमवर्गीय परिवार में पले-बढ़े. खास बात है कि श्रीधर वेम्बू ने अपनी प्राइमरी एजुकेशन तमिल भाषा में पूरी की. आईआईटी मद्रास से 1989 में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर वेम्बू पीएचडी के लिए अमेरिका रवाना हो गए.
अमेरिका में रहकर पीएचडी करने के साथ-साथ नौकरी करने के बाद वेम्बू भारत लौट आए. इस कदम से उनके रिश्तेदार काफी हैरान हो गए. लेकिन, श्रीधर वेम्बू अपना बिजनेस करना चाहते थे इसलिए उन्होंने लोगों की न सुनकर अपने मन की सुनी.
गांव में बनाया ऑफिस
1996 में श्रीधर वेम्बू ने अपने भाई के साथ मिलकर सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट फर्म एडवेंटनेट की शुरुआत की. साल 2009 में इस कंपनी का नाम बदलकर जोहो कॉर्पोरेशन कर दिया गया. यह कंपनी सॉफ्टवेयर सॉल्युशन सर्विस मुहैया कराती है.
खास बात है कि उन्होंने अपने बिजनेस को शुरू करने के लिए किसी महानगर को नहीं चुना बल्कि उन्होंने तमिलनाडु के तेनकासी जिले में अपनी कंपनी स्थापित की. दरअसल इसके पीछे उनका मकसद यह भी था कि वह ग्रामीण क्षेत्रों में सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट बिजनेस का विस्तार करना चाहते थे. श्रीधर वेम्बू की इच्छा है कि ग्रामीण क्षेत्रों के प्रतिभाशाली लोग भारत की मुख्य निर्यात आईटी सेवाओं में काम करें.
श्रीधर वेम्बू, ज़ोहो कॉर्पोरेशन के को-फाउंडर और सीईओ हैं. डीएनए की रिपोर्ट के अनुसार, इस कंपनी रेवेन्यू $1 बिलियन से अधिक यानी 39,000 करोड़ है. इस बड़े मकाम को हासिल करने के बाद भी वेम्बू अपनी जड़ों से जुड़े रहे हैं. अरबपति कारोबारी होने के बावजूद वे अक्सर साइकिल चलाते नजर आ जाते हैं.