यूएई के नए पर्सनल स्टेटस लॉ, जो 15 अप्रैल से लागू हुए, गैर-मुस्लिमों (हिंदू, ईसाई व अन्य) को विवाह, तलाक, विरासत और कस्टडी जैसे मामलों में अपनी परंपराओं या देश के कानून का पालन करने का विकल्प देते हैं। महिलाओं के अधिकारों में भी महत्वपूर्ण वृद्धि की गई है। जानें इस ऐतिहासिक बदलाव की मुख्य विशेषताएं।
अबू धाबी: संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने अपने पर्सनल स्टेटस लॉ में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं, जो 15 अप्रैल से प्रभावी हो गए हैं। इन सुधारों के तहत विवाह, तलाक, विरासत और बच्चों की कस्टडी जैसे व्यक्तिगत मामलों में गैर-मुस्लिम प्रवासियों और स्थानीय नागरिकों को राहत और समानता प्रदान की गई है। विशेष रूप से, हिंदू, ईसाई और अन्य गैर-मुस्लिम समुदाय के लोगों को यूएई में अपनी परंपराओं और मान्यताओं के अनुसार जीवन जीने का विकल्प मिला है, साथ ही महिलाओं के अधिकारों में भी वृद्धि की गई है।
हालांकि यूएई में पारित कोई भी कानून सभी नागरिकों और निवासियों पर लागू होता है, इस नए कानून में गैर-मुस्लिमों को यह छूट दी गई है कि वे अपने देश के कानून या अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अन्य विकल्प भी चुन सकते हैं। यदि वे ऐसा कोई विकल्प नहीं चुनते हैं, तो यूएई का नया पर्सनल स्टेटस लॉ उन पर लागू होगा।
किन पर लागू, किसे छूट?
- यूएई के नागरिक: यह कानून यूएई के सभी नागरिकों पर लागू होगा, जिसमें इंटर-रिलीजन विवाह (यूएई के पुरुष का अन्य धर्म की महिला से विवाह) भी शामिल हैं।
- गैर-मुस्लिम नागरिक: यूएई की नागरिकता रखने वाले गैर-मुस्लिम (ईसाई, हिंदू या अन्य धर्म) इस कानून की जगह अपने पर्सनल लॉ या अपने देश के नियमों का पालन कर सकते हैं। वे यूएई के कानून में वैध किसी अन्य विकल्प को भी चुन सकते हैं। विकल्प न चुनने पर यूएई का कानून लागू होगा।
- गैर-मुस्लिम निवासी: यूएई के नागरिक नहीं होने वाले गैर-मुस्लिम निवासी अपने धर्म या अपने देश के कानून का पालन कर सकते हैं। वे शादियों के लिए अबू धाबी का सिविल मैरिज कानून या मॉरिशस का कानून जैसे यूएई में मान्य किसी भी अन्य नियम को अपना सकते हैं। भारतीय निवासी हिंदू यूएई के इस कानून का इस्तेमाल कर सकते हैं।
- गैर-निवासी: कुछ विशेष परिस्थितियों में यह कानून यूएई के बाहर के लोगों पर भी लागू हो सकता है, जैसे तलाक के मामले में यूएई का कोई नागरिक या निवासी वादी हो, या ऐसे मामले जहां किसी भी पक्ष के पास यूएई का निवास न हो लेकिन वे यूएई को अपना निवास स्थान बताते हों।
नए पर्सनल स्टेटस लॉ की मुख्य विशेषताएं
- लड़के और लड़की की शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल।
- 18 वर्ष के होने पर परिवार की सहमति न होने पर कोर्ट में जाने की अनुमति।
- महिला के अपने से 30 साल बड़े पुरुष से पहली शादी के लिए जज का अनुमोदन अनिवार्य, कोर्ट दोनों की अनुकूलता देखेगा।
- मुस्लिम निवासी महिला को यूएई में शादी के लिए अभिभावक की अनुमति की आवश्यकता नहीं।
- मुस्लिम प्रवासी विवाह, तलाक, कस्टडी और उत्तराधिकार जैसे व्यक्तिगत मामलों के लिए अपने देश के कानूनों को लागू करने का विकल्प चुन सकते हैं।
- मंगनी टूटने पर 25000 दिरहम से अधिक कीमत वाले सभी गिफ्ट वापस करने होंगे।
- एडवांस में दिया गया दहेज भी वापस करना होगा।
- बिना किसी पक्ष की गलती या दूल्हा-दुल्हन की मौत पर गिफ्ट वापस नहीं होंगे।
- तलाक के मामलों में 15 साल से अधिक उम्र का बच्चा कस्टडी के लिए अपनी पसंद बता सकता है।
- बच्चे की कस्टडी की उम्र 21 से घटाकर 18 वर्ष की गई, लड़कियां शादी होने तक कस्टडी में रहेंगी।
- पुराने नियम में नॉन-मुस्लिम महिलाओं की कस्टडी 5 साल में खत्म हो जाती थी।
- पति अपने माता-पिता या पिछली शादी के बच्चों के साथ तभी रह सकता है जब वह उन्हें वित्तीय सहायता दे और इससे पत्नी को कोई नुकसान न हो।
- वैवाहिक घर के मालिक या किराएदार होने पर कोई भी आपसी सहमति के बिना किसी और को रहने की अनुमति नहीं दे सकता, पत्नी की अनुमति के बिना पति के माता-पिता भी नहीं रह सकते।
- तलाक के लिए अनिवार्य मध्यस्थता अवधि 90 दिन से घटाकर 60 दिन की गई। पति को 15 दिनों के अंदर तलाक या सुलह का आधिकारिक दस्तावेज प्रस्तुत करना होगा।
- बच्चे के आत्मनिर्भर होने तक वित्तीय सहायता की जिम्मेदारी पिता की होगी।
- पत्नी को अपनी संपत्ति की देखरेख की पूरी आजादी होगी, पति उसकी सहमति के बिना कुछ नहीं कर सकता।
- पति के माता-पिता पत्नी की अनुमति के बिना वैवाहिक घर में नहीं रह सकते। यदि पति की दूसरी शादी हो और पहली शादी के आर्थिक रूप से आश्रित बच्चे हों तो वे रह सकते हैं। महिला के पिछली शादी के बच्चे भी रह सकते हैं यदि उनका कोई और अभिभावक न हो।
कुल मिलाकर, संयुक्त अरब अमीरात का नया पर्सनल स्टेटस लॉ गैर-मुस्लिमों और महिलाओं के लिए एक ऐतिहासिक बदलाव माना जा रहा है। यह कानून व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समानता को बढ़ावा देता है और यूएई को वैश्विक स्तर पर एक आधुनिक और समावेशी समाज के रूप में स्थापित करता है। इन सुधारों का प्रभाव यूएई के साथ-साथ पूरे खाड़ी क्षेत्र में भी देखने को मिल सकता है।