हथियार के बदले खनिज: कैसे अमेरिका ने देशों को बर्बाद करने वाली डीलें कीं

Deepak Sharma
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हथियार के बदले खनिज: कैसे अमेरिका ने देशों को बर्बाद करने वाली डीलें कीं

नई दिल्ली: अमेरिका, जिसे अक्सर ‘बाहुबली’ के तौर पर पहचाना जाता है, अपनी शक्ति और प्रभाव का इस्तेमाल करता है ताकि वह अपनी वैश्विक राजनीतिक रणनीतियों को लागू कर सके। ‘हथियार लो, खनिज दो’ एक ऐसी डील है, जो अमेरिका ने कई देशों के साथ की है, और इसके बदले में उसने उन देशों के प्राकृतिक संसाधनों को अपनी मुट्ठी में कर लिया। हाल ही में रूस और यूक्रेन के युद्ध के बीच अमेरिका ने एक और खनिज समझौते पर हस्ताक्षर करने की पेशकश की है, जहां यूक्रेन को हथियार देने के बदले अमेरिका को खनिज मिलेंगे। इस डील के तहत यूक्रेन से अमेरिका को लगभग 500 मिलियन डॉलर (43 अरब रुपये) का खनिज प्राप्त होगा।

यूक्रेन से खनिज का सौदा

यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे संघर्ष में अमेरिका ने यूक्रेन को हथियार प्रदान किए थे, और अब सुलह की संभावनाओं से पहले, अमेरिका ने यूक्रेन से खनिज समझौते पर हस्ताक्षर के लिए दबाव डाला है। इस सौदे में अमेरिकी सरकार को यूक्रेन से खनिज प्राप्त होंगे, जो यूक्रेन के संघर्ष का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बने हैं। यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने किसी देश से खनिज लेकर उसके बदले हथियार सौंपे हों।

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अफगानिस्तान का खनिज सौदा

इससे पहले, अफगानिस्तान के साथ भी अमेरिका ने खनिज के बदले हथियारों का सौदा किया था। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने 2017 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से 1 ट्रिलियन डॉलर के खनिज सौदे पर बातचीत की थी। अफगानिस्तान में लिथियम और अन्य मूल्यवान खनिज होने के कारण यह सौदा बेहद आकर्षक था। इसके एवज में अमेरिका ने अफगानिस्तान को आधुनिक हथियार दिए।

हालांकि, जब ट्रंप ने 2021 में अमेरिकी सैनिकों को अफगानिस्तान से वापस बुला लिया, तो तालिबान ने अफगान सेना को खदेड़ दिया। इस स्थिति में अशरफ गनी को अफगानिस्तान छोड़ना पड़ा और तालिबान ने उस खनिज सौदे को रद्द कर दिया, क्योंकि उनका मानना था कि यह खनिज अफगानिस्तान के लोगों का हक है। इस सौदे के कारण अफगानिस्तान की राजनीति और अर्थव्यवस्था पूरी तरह से अस्थिर हो गई, और आज तालिबान का नियंत्रण है, जिसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने मान्यता नहीं दी है।

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बांग्लादेश का भी बुरा हाल

अमेरिका ने बांग्लादेश को भी खनिज के चक्कर में बर्बाद किया। शेख हसीना की सरकार ने 2010 के आसपास खनिज के एवज में अमेरिका से समझौता करने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन पर्दे के पीछे अमेरिका ने एक ऐसी रणनीति अपनाई, जिससे शेख हसीना को सत्ता से बाहर होना पड़ा। हसीना के जाने के बाद, अंतरिम सरकार ने अमेरिका के साथ एक एलएनजी गैस समझौता किया। इसके तहत, बांग्लादेश अगले 20 वर्षों तक 5 मिलियन टन एलएनजी गैस अमेरिका को देगा, जबकि बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था और राजनीतिक स्थिति अत्यधिक कमजोर हो गई है।

सीरिया की बर्बादी

सीरिया भी अमेरिका के खनिज-हथियार सौदे का शिकार हुआ। 2017 में अमेरिका ने सीरिया के उन इलाकों को छोड़ दिया, जहां तेल के भंडार थे। इसके बाद अमेरिका और सीरिया के बीच तेल के लिए समझौता हुआ। कुछ वर्षों तक अमेरिका ने सीरियाई सरकार को सैनिक और हथियारों के बल पर समर्थन दिया, लेकिन 2019 में अमेरिका ने अपने सैनिकों को सीरिया से बाहर कर लिया। इसके बाद सीरिया में भारी हिंसा हुई, और वर्तमान में सीरिया में कोई स्थिर सरकार नहीं है। इसके साथ ही इजराइल ने भी सीरिया पर कई हमले किए हैं।

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अमेरिका की ‘हथियार लो, खनिज दो’ नीति

अमेरिका की यह नीति, जो ‘हथियार लो, खनिज दो’ के रूप में प्रसिद्ध है, कई देशों की बर्बादी की कहानी बन चुकी है। हथियारों के बदले खनिज का सौदा करना अमेरिका की रणनीति का एक हिस्सा बन गया है, जो इन देशों को एक ओर से तो बल प्रदान करता है, लेकिन दूसरी ओर इन देशों को पूरी तरह से आर्थिक और राजनीतिक रूप से कमजोर कर देता है। अफगानिस्तान, बांग्लादेश और सीरिया जैसे देशों की हालत ने इस बात को साबित किया है कि अमेरिका द्वारा की गई यह डीलें अंततः इन देशों की अस्थिरता का कारण बनती हैं।

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