नई दिल्ली। पाकिस्तान, जो लंबे समय से आतंकवादियों को पनाह देने के आरोपों से घिरा हुआ है, अब एक गंभीर खाद्य संकट का सामना कर रहा है। भारत द्वारा सीमा पार आतंकवाद पर की गई सख्त कार्रवाई, जिसमें ऑपरेशन सिंदूर के तहत आतंकी ठिकानों को तबाह करना और सिंधु जल समझौते को निलंबित करना शामिल है, ने पहले से ही आर्थिक रूप से कमजोर पाकिस्तान की स्थिति को और भी नाजुक बना दिया है। पड़ोसी मुल्क में अब अकाल जैसे हालात बनते जा रहे हैं।
पाकिस्तानी अखबार ‘डॉन’ की एक हालिया रिपोर्ट इस भयावह स्थिति को उजागर करती है। रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान खाद्य सुरक्षा के मामले में अत्यंत चिंताजनक दौर से गुजर रहा है। हालांकि, दिसंबर 2024 तक खाद्य मुद्रास्फीति में कमी आई है और यह 0.3 प्रतिशत तक पहुंच गई है, जो साल की शुरुआत में दोहरे अंकों में थी। लेकिन, गरीबी और व्यापक बेरोजगारी देश के अधिकांश नागरिकों के लिए भोजन तक पहुंच में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है।
साल 2022 में आई विनाशकारी बाढ़ ने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और कृषि क्षेत्र पर गहरे निशान छोड़े हैं। इसके बाद, 2023 और 2024 में बेमौसम की बारिश और अन्य प्राकृतिक आपदाओं ने लोगों की आजीविका को बुरी तरह प्रभावित किया है। ग्रामीण बलूचिस्तान, सिंध और खैबर पख्तूनख्वा प्रांतों में संकट विशेष रूप से गहरा है। इन क्षेत्रों में जलस्तर लगातार घट रहा है, जिसके कारण कृषि उत्पादन में भारी कमी आई है और खेती पर निर्भर किसान गहरे कर्ज के जाल में फंसते जा रहे हैं।
कुपोषण बना चिंता का विषय
रिपोर्ट में किए गए नवीनतम आकलन के अनुसार, पाकिस्तान में वर्तमान में लगभग 11 मिलियन लोग IPC (Integrated Food Security Phase Classification) के चरण 3 (संकट) या उससे भी बदतर हालात में जी रहे हैं। इनमें से लगभग 2.2 मिलियन लोगों के सामने तो आपातकालीन जैसी स्थिति है, जिसका अर्थ है कि उन्हें तत्काल मानवीय सहायता की आवश्यकता है। सिंध और खैबर पख्तूनख्वा प्रांतों में कुपोषण का लगातार बढ़ना एक गंभीर चिंता का विषय है। इन क्षेत्रों में कम वजन वाले बच्चों की जन्म दर अधिक है और डायरिया तथा फेफड़ों से संबंधित संक्रमणों के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।
इन गंभीर चुनौतियों को और जटिल बनाने वाली बात यह है कि पाकिस्तान को मानवीय आधार पर मिलने वाला वैश्विक निवेश भी लगातार घट रहा है। अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से मिलने वाली आर्थिक मदद में कमी आने के कारण खाद्य सहायता कार्यक्रमों को सीमित कर दिया गया है, जिससे खाद्य सुरक्षा और कुपोषण से निपटने के लिए चल रहे प्रयास कमजोर पड़ गए हैं।
आतंकियों का मददगार पाकिस्तान
‘डॉन’ ने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया है कि इन चुनौतियों से निपटने के लिए पाकिस्तान को तत्काल अपनी नीतियों में व्यापक बदलाव करने की आवश्यकता है। अखबार ने केंद्र और प्रांतीय सरकारों से अपने सामाजिक सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने, माताओं और बच्चों के लिए पोषण सहायता सुनिश्चित करने और कृषि क्षेत्र में अधिक निवेश करने का आह्वान किया है। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि यदि निर्णायक कार्रवाई नहीं की जाती है, तो पाकिस्तान के फिर से भूख और गरीबी के पुराने चंगुल में फंसने का खतरा मंडरा रहा है।
इसके अलावा, यह भी उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान की सरकार अपने नागरिकों की बुनियादी जरूरतों और सुरक्षा पर ध्यान देने के बजाय आतंकवादियों पर अधिक खर्च कर रही है। हाल ही में शहबाज शरीफ की सरकार ने कुख्यात आतंकवादी मसूद अजहर को 14 करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की है। जब तक पाकिस्तान की सरकार आतंकवादियों को पालती रहेगी और उनकी मदद करती रहेगी, तब तक देश के आम नागरिकों के हितों की रक्षा करना अत्यंत कठिन होगा। भारत की सख्त नीतियों और वैश्विक समुदाय की घटती मदद के बीच, पाकिस्तान एक गहरे मानवीय और आर्थिक संकट की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है।