भारत में शराब सेवन से जुड़ी मौतों के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और विभिन्न शोध रिपोर्टों के अनुसार, देश में प्रतिवर्ष लगभग 2.6 से 3 लाख लोगों की जान शराब के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव से जाती है। इसमें लिवर सिरोसिस, कैंसर, हृदय रोग, सड़क दुर्घटनाएं और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं शामिल हैं।
2018 की WHO रिपोर्ट के अनुसार, अकेले लिवर सिरोसिस से हर साल 1.4 लाख भारतीयों की मौत होती है, जिनमें से बड़ी संख्या शराब सेवन से जुड़ी होती है। वहीं करीब 30,000 मौतें कैंसर से और लगभग एक लाख मौतें सड़क हादसों एवं अन्य कारणों से होती हैं, जिनमें शराब प्रमुख कारक है। आंकड़ों के अनुसार, भारत में प्रति एक लाख जनसंख्या पर औसतन 38.5 मौतें शराब के कारण होती हैं, जो पड़ोसी चीन (16.1) की तुलना में दोगुनी से भी अधिक है।
स्वास्थ्य कारणों के अलावा, अवैध और मिलावटी शराब (स्प्यूरियस लिकर) देश में एक गंभीर समस्या बनी हुई है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, वर्ष 2002 से 2022 के बीच देश में अवैध शराब पीने से 22,000 से अधिक लोगों की जान गई। औसतन हर साल 1,050 लोगों की मौत होती है, हालांकि कुछ बड़ी घटनाओं में यह संख्या अचानक कई गुना बढ़ जाती है।
हाल के वर्षों में कई बड़े हादसों ने इस खतरे को उजागर किया है। 2024 में तमिलनाडु के कल्लाकुरिची जिले में अवैध शराब पीने से कम से कम 65 लोगों की मौत हो गई और करीब 200 लोग बीमार पड़ गए। 2022 में बिहार में 73 लोगों ने जहरीली शराब पीने के बाद दम तोड़ दिया। इससे पहले 2019 में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में करीब 100, 2015 में मुंबई में 102 और 2008 में कर्नाटक–तमिलनाडु सीमा पर 180 लोगों की मौत हुई थी।
अवैध शराब से जुड़ी मौतों के अलावा, शराब मानसिक स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर डाल रही है। 2021 में दर्ज आत्महत्या मामलों में से 10,560 मामलों का सीधा संबंध नशे की लत (शराब व ड्रग्स) से पाया गया। विशेषज्ञों का मानना है कि यह आंकड़े सिर्फ आधिकारिक रिपोर्टों पर आधारित हैं, जबकि जमीनी स्तर पर स्थिति इससे कहीं अधिक गंभीर हो सकती है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि अत्यधिक शराब सेवन न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है बल्कि सामाजिक और पारिवारिक जीवन को भी प्रभावित करता है। वहीं, अवैध शराब के मामले में निगरानी और कानून के सख्त पालन की आवश्यकता है, ताकि मिलावटी और जहरीली शराब की सप्लाई को रोका जा सके।
सरकार और सामाजिक संगठनों द्वारा चलाए जा रहे जागरूकता अभियानों के बावजूद, शराब से जुड़ी मौतों में खास कमी देखने को नहीं मिली है। विशेषज्ञों का कहना है कि समस्या का समाधान तभी संभव है जब स्वास्थ्य शिक्षा, सख्त कानून, और नशामुक्ति सेवाओं को प्राथमिकता दी जाए।
अगर यही रफ्तार जारी रही तो आने वाले वर्षों में शराब जनित मौतें देश के लिए और भी बड़ा सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन सकती हैं। हमें इसके विरोध में कड़ी आवाज उठानी चाहिए और लोगों में जागरूकता करनी चाहिए।
