घरेलू हिंसा, महिलाओं के जीवन का एक कड़वा सच है। यह सदियों से एक सामाजिक बुराई के रूप में व्याप्त रहा है। 2005 में, भारत सरकार ने “घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम” पारित किया, जो महिलाओं को इस उत्पीड़न से बचाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था। यह कानून उन महिलाओं के संघर्ष और बलिदान का परिणाम है जिन्होंने हिंसा के खिलाफ आवाज उठाई और न्याय की मांग की।
प्रमुख योगदानकर्ता
यहाँ कुछ प्रमुख योगदानकर्ता हैं जिनके संघर्ष ने घरेलू हिंसा कानून को जन्म दिया:
भारतीय महिला संघ (Indian Women’s Association): यह संगठन 1925 से महिलाओं के अधिकारों के लिए काम कर रहा है। इसने घरेलू हिंसा के खिलाफ जागरूकता फैलाने और कानून बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नारीवादी संगठन: कई नारीवादी संगठनों ने घरेलू हिंसा के मुद्दे को उठाया और महिलाओं के लिए कानूनी सुरक्षा की मांग की।
सामाजिक कार्यकर्ता: कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज उठाई और पीड़ितों की सहायता के लिए काम किया।
प्रेरणा का स्रोत:
यह कानून कई महिलाओं के नाम पर बना है जिन्होंने घरेलू हिंसा का सामना किया और न्याय के लिए लड़ाई लड़ी। इनमें से कुछ नाम हैं:
प्रोफेसर शांता सिन्हा: 1980 के दशक में, उन्होंने “पति की पिटाई के खिलाफ महिलाओं का संगठन” (WSSAH) की स्थापना की, जो घरेलू हिंसा के खिलाफ लड़ने वाली पहली महिला संगठनों में से एक था।
डॉ. वी. मोहन: 1990 के दशक में, उन्होंने “महिलाओं के लिए कानूनी सहायता” (LASW) की स्थापना की, जो घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं को कानूनी सहायता प्रदान करती है।
नूतन ठाकुर: 1993 में, उन्होंने “महिला अधिकार संगठन” (MAS) की स्थापना की, जो घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं के लिए आश्रय और पुनर्वास प्रदान करता है।
इंदिरा जायसिंग: 1995 में, उन्होंने “महिलाओं का राष्ट्रीय आयोग” (NCW) की स्थापना की, जो महिलाओं के अधिकारों के लिए एक महत्वपूर्ण संस्था है।
कानून का प्रभाव:
यह कानून घरेलू हिंसा के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इसने महिलाओं को हिंसा से बचाने और न्याय प्राप्त करने के लिए कई अधिकार प्रदान किए, जैसे:
आश्रय का अधिकार:
पीड़ित महिलाओं को अपने घर से निकाले जाने पर आश्रय प्राप्त करने का अधिकार है।
चिकित्सा सहायता का अधिकार:
पीड़ित महिलाओं को चिकित्सा सहायता प्राप्त करने का अधिकार है।
आर्थिक सहायता का अधिकार:
पीड़ित महिलाओं को आर्थिक सहायता प्राप्त करने का अधिकार है।
कानूनी सहायता का अधिकार:
पीड़ित महिलाओं को कानूनी सहायता प्राप्त करने का अधिकार है।
घरेलू हिंसा कानून में प्रावधान
1. सजा का प्रावधान
यह कानून घरेलू हिंसा के दोषियों के खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान करता है। अगर किसी महिला को घरेलू हिंसा का शिकार बनाया जाता है, तो उसे उच्च न्यायालय में इलाज के लिए आवेदन करने का अधिकार होता है। इसके अलावा, दोषी को कठोर सजा का सामना करना पड़ता है जो उसे इस क्रिमिनल अपराध के लिए दिया जाता है।
2. घरेलू हिंसा के पीड़ितों के लिए सहायता
यह कानून पीड़ित पुरुषों और महिलाओं को सहायता प्रदान करने का भी प्रावधान करता है। उन्हें घरेलू हिंसा के मामलों में आराम और सुरक्षा की व्यवस्था की जाती है। वे एक सुरक्षित जगह प्राप्त कर सकते हैं और उन्हें आवश्यक चिकित्सा सहायता भी मिलती है।
3. घरेलू हिंसा के दोषियों के खिलाफ उच्चतम न्यायालयों में मुक़दमा
यह कानून घरेलू हिंसा के दोषियों के खिलाफ उच्चतम न्यायालयों में मुक़दमा दर्ज करने का अधिकार देता है। इससे पीड़ित पुरुषों और महिलाओं को अपने अधिकारों की रक्षा करने का मौक़ा मिलता है और उन्हें न्याय मिलता है।
4. जागरूकता कार्यक्रम
जिनके नाम पर बना घरेलू हिंसा कानून के तहत, सरकार ने जागरूकता कार्यक्रम भी शुरू किया है। इसका उद्देश्य लोगों को घरेलू हिंसा के खिलाफ जागरूक करना है और उन्हें इस समस्या के बारे में जानकारी और सही तरीके से प्रतिक्रिया करने की संज्ञा देना है।
जिनके नाम पर बना घरेलू हिंसा कानून ने घरेलू हिंसा के मुख्य कारणों पर नजर रखा है और इसे कम करने के लिए सख्त कार्रवाई की जाती है। इसका महत्वपूर्ण उद्देश्य है पीड़ित पुरुषों और महिलाओं की सुरक्षा करना और उन्हें घरेलू हिंसा के खिलाफ लड़ाई में सहायता प्रदान करना। यह कानून घरेलू हिंसा के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने का भी महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है।