आगरा से निकला ‘बिरयानी का बादशाही अफसाना’: शाही रसोई से सोशल मीडिया तक, वेज अवतार में भी जलवा

Dharmender Singh Malik
7 Min Read
आगरा से निकला 'बिरयानी का बादशाही अफसाना': शाही रसोई से सोशल मीडिया तक, वेज अवतार में भी जलवा

आगरा: “जहाँ बिरयानी की खुशबू पहुंच जाए, वहाँ भूख खुद चलकर आ जाती है।” यह सिर्फ एक कहावत नहीं, बल्कि आज के भारत की हकीकत है, और इस हकीकत का जन्म स्थान कोई और नहीं, बल्कि आगरा है। वाटर वर्क्स क्रॉसिंग से लेकर छीपी टोला, पीर कल्याणी से लेकर दीवानी का चौराहा—आगरा की हर गली, हर नुक्कड़ पर बिरयानी के ताज पहने स्टॉल सजे हैं, और युवा से लेकर बुज़ुर्ग तक, हर कोई इस जादुई व्यंजन का दीवाना है।

शाही रसोई से ठेले तक का सफर: मुमताज महल की विरासत

कहते हैं कि आगरा के शाही खानसामों ने ही सबसे पहले बिरयानी को भारतीय अंदाज़ में ढाला। मुगल छावनियों में, बड़े-बड़े देगचों या पतीलों में बिरयानी को मद्दी आँच (दम) पर पूरी रात पकाया जाता था, जिसमें गोश्त (मांस), केसर, मेवे और खुशबूदार चावल का अद्भुत संगम होता था। यह शाही पकवान न सिर्फ पेट भरता था, बल्कि दिल को भी तसल्ली देता था।

एक लोकप्रिय किंवदंती के अनुसार, मुमताज महल ने जब देखा कि मुगल सैनिकों का आहार संतुलित नहीं है, तो उन्होंने अपने शाही बावर्चियों को एक ऐसा भोजन तैयार करने का आदेश दिया जो स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पोषण से भरपूर हो। और फिर इसी खोज के परिणाम स्वरूप बिरयानी का जन्म हुआ।

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बिरयानी: विविधता का स्वाद और क्षेत्रीय पहचान

बिरयानी जितनी लज़ीज़ है, उतनी ही विविधता से भरपूर भी। हर क्षेत्र ने इसे अपनाया और अपने-अपने रंग-ढंग से संवारा:

  • हैदराबादी बिरयानी: निज़ामों की रसोई से निकली यह बिरयानी कच्चे मांस और चावल को एक साथ दम पर पकाने की कला है, जिसमें केसर, जावित्री, दालचीनी जैसे मसालों की जादूगरी होती है।
  • लखनवी (अवधी) बिरयानी: “दम पुख्त” शैली में बनी यह बिरयानी नफासत और नज़ाकत का अद्भुत मेल है, जिसमें मीट का रस चावलों में पूरी तरह समा जाता है।
  • कोलकाता बिरयानी: जब नवाब वाजिद अली शाह को निर्वासित किया गया, तो मटन की जगह आलू और अंडे ने बिरयानी में जगह पाई – और यह आज तक लोगों की पसंद बनी हुई है।
  • थालास्सेरी बिरयानी (केरल): इसमें खास किस्म का खयमा चावल, मालाबार मसाले, काजू और किशमिश का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।
  • डिंडीगुल बिरयानी (तमिलनाडु): तीखे मसाले, सीरगा सांबा चावल और दमदार स्वाद इसे खास बनाते हैं।

आगरा में वेज बिरयानी का नया अवतार

कभी जो व्यंजन पूरी तरह मांसाहारी माना जाता था, वह अब आगरा और ब्रज क्षेत्र में वेज बिरयानी के रूप में भी झंडे गाड़ रहा है। पनीर, सोया, मशरूम और कटहल (जैकफ्रूट) के साथ यह नए अवतार में लोगों के दिलों में जगह बना रहा है। मथुरा-वृंदावन जैसे तीर्थ स्थलों में, जहाँ पहले केवल पारंपरिक शुद्ध शाकाहारी भोजन की ही कल्पना की जाती थी, वहाँ अब वेज बिरयानी के खोमचे (ठेले) दिखाई देने लगे हैं। यह कोई मामूली बदलाव नहीं, बल्कि भारत की पाक परंपरा में एक नया अध्याय है।

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डिजिटल दौर में बिरयानी का जादू: हर मिनट 95 प्लेट ऑर्डर

बिरयानी अब न सिर्फ स्टॉल और ढाबों तक सीमित है, बल्कि स्विगी, ज़ोमैटो और डंज़ो जैसे डिलीवरी ऐप्स के ज़रिए हर घर तक पहुँच चुकी है। बड़े-बड़े फूड व्लॉगर्स इसे चखने के लिए शहरों के कोने-कोने में घूमते हैं, और यू-ट्यूब चैनल्स पर “10 बेस्ट बिरयानी स्पॉट्स” जैसी वीडियो की भरमार है। बिरयानी अब एक “इंस्टाग्रामेबल डिश” बन चुकी है।

एक हालिया सर्वे के अनुसार, भारत में हर मिनट 95 प्लेट बिरयानी ऑर्डर होती हैं, और पिछले पाँच वर्षों में बिरयानी की मांग 75% तक बढ़ी है। ये आंकड़े गवाही देते हैं कि बिरयानी महज़ खाना नहीं, एक जज़्बा बन चुकी है।

वैश्विक पहचान और “डिप्लोमैटिक डिश”

बिरयानी अब दुबई, न्यूयॉर्क, लंदन और सिंगापुर जैसे शहरों में भारतीय रेस्तरां की जान बन चुकी है। जहाँ भी प्रवासी भारतीय हैं, वहाँ बिरयानी की मांग है। कुछ तो इसे “डिप्लोमैटिक डिश” भी कहने लगे हैं – जो भारत की नर्म छवि को विदेशों में प्रचारित करती है।

बिरयानी के इस बेइंतिहा शौक को देखकर इतना तो साफ है कि यह महज स्वाद नहीं, बल्कि एक जज़्बात है। यह चावल और मसालों की मोहब्बत है, जो ज़ुबान से शुरू होकर दिल तक पहुँचती है।

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आज जब खानपान में तकरार और तंगनज़री बढ़ रही है, बिरयानी हमें याद दिलाती है कि विविधता में ही सौंदर्य है – और यही है भारत की असली पहचान।

बिरयानी शब्द की उत्पत्ति फारसी शब्द बिरियन (भूनना) या बिरिंज (चावल) से हुई है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह व्यंजन ईरान से मध्य एशिया होते हुए भारत पहुँचा, जहाँ मुगलों ने इसे नया स्वाद और तकनीक दी। बिरयानी के आगे खिचड़ी, पोंगल, पुलाव, सतरंगी फ्लेवर्स के चावल, सब अपनी चमक खो रहे हैं। कई रेस्तरां में इसे स्पाइसी चटनी, रायते और प्याज के छल्ले के साथ परोसा जाता है।

जानकार भोजन प्रेमी बताते हैं कि भारत में बिरयानी ने क्षेत्रीय स्वादों को अपनाकर अलग-अलग रूप ले लिए हैं। मैसूर में एक रेस्टोरेंट में किलो के हिसाब से बाल्टी में मिलती है नॉन वेज बिरयानी। श्री महादेवन बताते हैं कि दक्षिणी बिरयानी मसालों के फ्लेवर्स से महकती है जो दूर से कद्रदानों को आकर्षित कर लेती है।

आगरा, जहां बिरयानी का उदय हुआ, आजकल वेज बिरयानी में परचम लहरा रहा है। अभी हलवाइयों ने पहल नहीं की है, पर इस व्यंजन की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए, कुछ समय बाद भगत बिरयानी भी मिलने लगे, तो अचरज नहीं होगा।

 

 

 

 

 

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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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