बृज खंडेलवाल, गोवर्धन केवल मिट्टी का टीला नहीं, बल्कि एक जीवित देवता हैं — जिन्हें श्रीकृष्ण ने इंद्र के क्रोध से ब्रजवासियों को बचाने के लिए उठाया था। सात दिनों तक यह पर्वत करुणा की छतरी बनकर गायों, संतों, ऋषियों और ग्रामीणों को आश्रय देता रहा। आज भी यह पर्वत श्रद्धा की साँसें लेता है — 21 किलोमीटर की परिक्रमा पथ पर नंगे पाँव चलने वाले श्रद्धालु गीत, आँसू और प्रार्थनाओं के साथ अपनी भक्ति समर्पित करते हैं। यहाँ हर पत्थर पूजनीय है, हर मोड़ पर प्रेम और आस्था की कहानी है। यह कोई बीते युग की स्मृति नहीं, बल्कि भारतीय आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिकीय विरासत का एक जीवंत मंदिर है।
फिर भी, यह स्थल अब तक यूनेस्को जैसे वैश्विक संस्थानों द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है। समय आ गया है कि दुनिया गोवर्धन को केवल धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि प्रकृति, श्रद्धा और समुदाय के सामंजस्य का वैश्विक प्रतीक माने। गोवर्धन की रक्षा करना, उन सनातन मूल्यों की रक्षा करना है, जो श्रीकृष्ण ने इसी छाया में सिखाए थे।
कुछ साल पहले अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनॉय, अर्बाना-शैंपेन के लैंडस्केप आर्किटेक्चर विभाग की प्रोफेसर अमिता सिन्हा और उनकी टीम ने गोवर्धन पर्वत के संरक्षण की योजना पर काम किया था। उन्होंने कहा था, “यह एक अद्वितीय धार्मिक स्थल है, जिसे हर साल एक करोड़ से अधिक लोग दर्शन के लिए आते हैं। लेकिन इसकी पारिस्थितिकी संकट में है — जल स्रोत सूख चुके हैं, और हरियाली लगभग समाप्त हो चुकी है।”
टीम ने गोवर्धन का जलग्रहण मानचित्र तैयार किया, वनस्पतियों का सर्वे किया, प्राचीन संरचनाओं और तीर्थ व्यवस्थाओं का अध्ययन किया, और तीर्थयात्रियों व स्थानीय श्रद्धालुओं से साक्षात्कार किए। यह अध्ययन ब्रज फाउंडेशन और विश्वविद्यालय को सौंपा गया था। उत्तर प्रदेश सरकार को यूनेस्को में इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित करने की पहल करनी थी, लेकिन यह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया।
बाद में ब्रज मंडल हेरिटेज कंजर्वेशन सोसाइटी ने राज्य सरकार के संबंधित विभागों से इस मांग को उठाया, लेकिन सरकार की ओर से कोई खास उत्साह नहीं दिखा। अब एक बार फिर, धरोहर संरक्षकों ने योगी सरकार से आग्रह किया है कि यूनेस्को को एक नया प्रस्ताव भेजा जाए, ताकि गोवर्धन को विश्व धरोहर का दर्जा मिल सके।
यह पर्वत न केवल भूगर्भीय संरचना है, बल्कि श्रीकृष्ण की दिव्य लीलाओं का साक्षात प्रमाण है। भागवत पुराण में वर्णित कथा — जब श्रीकृष्ण ने इस पर्वत को उठाकर ब्रजवासियों को प्रलयंकारी वर्षा से बचाया — आज भी लोगों के दिलों में जीवित है। दिन-रात चलने वाली परिक्रमा इस स्थल की आध्यात्मिक महत्ता को और गहराई देती है।
गोवर्धन पर्वत पर अनेकों प्राचीन मंदिर, पवित्र वन, और कुंड (जैसे राधा कुंड, श्याम कुंड) स्थित हैं। यहाँ गोवर्धन पूजा जैसे उत्सव लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं, जिससे यह स्थल भारतीय लोक परंपराओं और अमूर्त धरोहर का जीवंत केंद्र बना हुआ है।
लेकिन यह पर्वत अब गंभीर पारिस्थितिक संकट का सामना कर रहा है। तीर्थयात्रियों की भारी भीड़, अवैध निर्माण, वनों की कटाई, और प्रदूषण इसके नाजुक पारिस्थितिक तंत्र को खतरे में डाल रहे हैं। पवित्र वन लुप्त हो रहे हैं, कुंडों में गाद भर रही है, और भू-संरचना पर भारी दबाव है। यदि शीघ्र कोई ठोस हस्तक्षेप नहीं हुआ, तो यह अमूल्य धरोहर अपनी प्राकृतिक और सांस्कृतिक अखंडता खो सकती है।
यूनेस्को की विश्व धरोहर मान्यता गोवर्धन पर्वत को वैश्विक पहचान और संरक्षण के लिए ठोस ढाँचा देगी। यह स्थल कई यूनेस्को मानकों पर खरा उतरता है —
इसके मंदिर और परंपराएँ मानवीय रचनात्मक प्रतिभा का उदाहरण हैं (मानदंड i),
यह कृष्ण-भक्ति की जीवंत परंपरा का प्रमाण है (मानदंड iii),
और यह एक ऐसा सांस्कृतिक और पारिस्थितिक परिदृश्य है, जो मानव और प्रकृति की सह-अस्तित्व की मिसाल है (मानदंड v)।
यूनेस्को का दर्जा इसे अंतरराष्ट्रीय मदद, तकनीकी सहयोग और सतत पर्यटन रणनीतियाँ दिला सकता है, जैसा शांति निकेतन और होयसला मंदिरों के मामलों में देखा गया। यह राज्य और स्थानीय प्रशासन को संरक्षण को विकास योजनाओं में शामिल करने को बाध्य करेगा और ज़िम्मेदार पर्यटन को बढ़ावा देगा, जिससे पर्यावरणीय क्षति को कम किया जा सकेगा और स्थानीय समुदायों को भी सशक्त किया जा सकेगा।
हाल ही में रिवर कनेक्ट अभियान के सदस्यों ने भारत सरकार से मांग की कि संस्कृति मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के माध्यम से गोवर्धन पर्वत को यूनेस्को की टेंटेटिव सूची में शामिल करने का प्रस्ताव भेजा जाए।
वृंदावन के धरोहर प्रेमियों ने स्थानीय समुदायों, पर्यावरणविदों और श्रद्धालुओं से अपील की कि वे पर्यावरण के अनुकूल परिक्रमा मार्ग, पवित्र वनों का पुनः रोपण, और कुंडों के जीर्णोद्धार जैसे उपायों को अपनाएँ।
जगन्नाथ पोद्दार ने कहा, “यूनेस्को की मदद से इन प्रयासों को बल मिलेगा, जिससे गोवर्धन पर्वत एक सजीव तीर्थ और जैव विविधता का केंद्र बना रहेगा।”
पर्यावरणविद् डॉ. देवाशीष भट्टाचार्य ने कहा, “गोवर्धन केवल एक पर्वत नहीं है — यह आस्था, सहिष्णुता और प्रकृति से जुड़ाव का प्रतीक है। इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता देना इसकी पारिस्थितिक नाज़ुकता की रक्षा करेगा और कृष्ण की कथाओं को युगों तक जीवंत रखेगा। आइए हम सब मिलकर इस विरासत की रक्षा में योगदान दें, जो पूरी मानवता की धरोहर है।”
वर्तमान में गोवर्धन गंभीर पारिस्थितिक क्षरण का सामना कर रहा है। यहाँ की पारंपरिक वनस्पति लुप्त हो रही है, जल स्रोत प्रदूषण और अतिक्रमण के शिकार हैं, और तीर्थयात्रियों की भीड़ से मिट्टी का कटाव और भू-संरचना पर दबाव बढ़ता जा रहा है।
धरोहर संरक्षण समूह के डॉ. मुकुल पंड्या ने कहा, “हर साल 1 करोड़ से अधिक श्रद्धालु आते हैं, विशेषकर मुढिया पूनौ, गोवर्धन पूजा जैसे अवसरों पर। 21 किमी लंबी परिक्रमा के कारण कचरा, मिट्टी की कठोरता और पारिस्थितिक नुकसान लगातार बढ़ रहा है। अगर समय रहते प्रयास हुए, तो गोवर्धन पवित्रता और प्रकृति के संरक्षण का वैश्विक उदाहरण बन सकता है।”