शिक्षक दिवस की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ; गुरुदेवों के प्रति समर्पण और कृतज्ञता का भाव

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मेरी पहली गुरु माँ एवं पिता से लेकर अब तक जिन गुरुदेव की परम कृपा  आशीष और मार्गदर्शन में  आगे बढ़ कर कुछ करने का साहस कर पाया हूं उनके श्री चरणों में इस मूरख,अज्ञानी, जिद्दी, अधम, अशिष्ट  शिष्य का कोटि कोटि नमन।
बचपन से अब तक शिक्षकों को अक्षर ज्ञान करा कर संपूर्ण ज्ञान देने वाले, ईश्वर तुल्य, अंधकार से रोशनी की ओर ले जाने वाले, अज्ञान का तिमिर हटाने वाले, मार्ग दर्शक, पथ प्रदर्शक,उचित-अनुचित, अच्छे-बुरे में भेद बताने वाले या कुम्हार की संज्ञा से हम भली भांति परिचित हैं।
घर-परिवार, विद्यालय, कॉलेज कार्यस्थल और समाज में न जाने कितने ही शिक्षक मिले जिनसे हमने बहुत कुछ सीखा….शुभाचरण,सद्व्यवहार, चरित्र निर्माण, समायोजन, परिस्थितियों से संतुलन। न जाने कितना कुछ, आज उन सभी वन्दनीय, सम्माननीय, शिक्षकों, गुरु जनों को स्मरण करते हुए चरण वंदन व हार्दिक नमन।
आज ज़िंदगी के इस पड़ाव- पायदान पर फिर से घर-परिवार, समाज, प्रकृति और आध्यात्मिक गुरु ही हमारी पाठशाला हैं और यही हैं हमारे शिक्षक और अनवरत सीखना ही जीवंतता है।
हमें इस सबको शिक्षक मानकर प्रतिदिन कुछ न कुछ ग्रहण करते हुए चिंतन व मनन करते हुए अपना शेष समय अत्यंत जागरूकता,सजगता,व्यवहारिकता, समन्यवता व  संभलकर जीना है तभी सार्थक है आज का शिक्षक दिवस मनाना।
प्रथम शिक्षक मात-पिता, 
दूजे सकल गुणों की ख़ान,
तीजे अध्यात्म राह दिखलाते, 
होते गुरु पूजा योग्य महान।
ज्ञान पुंज ज्ञान दाता, 
जीवन के निर्माता है शिक्षक,
करें नित श्रद्धा से वंदन उनको, 
हैं ये ईश्वरीय प्रदत्त वरदान॥
शिक्षक ज्ञान के सागर, 
अम्बर से भी विस्तृत हैं,
बांटकर ज्ञान अनवरत, 
संवार देते यह जीवन हैं।
रहें कृतज्ञ हर पल हर क्षण,
हर साँस से हम उनके,
ज्ञान की जोत बनकर, 
हरते अज्ञान तिमिर हैं॥
गुरू से गुरुता धारण कर, संकीर्णता का नाश करते। 
शिक्षक पर श्रद्धा रख कर,  
हृदय में विश्वास जगाते हैं।
करें सम्मान शिक्षक का, 
शिक्षक दिवस मनाएँ हम,
देकर ज्ञान, विज्ञान शिक्षा का, 
अनपढ़ अब न कोई रह पाए॥
आज शिक्षक दिवस के अवसर पर भारतीय संस्कृति के अनुसार- मातृ देवो भव:, पितृ देवो भव:, आचार्य देवो भव:, अतिथि देवो भव; !!
अर्थात् माता, पिता, आचार्य और अतिथि इन चारों को ही संसार का सर्वोत्तम गुरु (शिक्षक) माना गया है । ये ही हमें अज्ञान रूपी अन्धकार से निकालकर संसार (प्रकृति) का ज्ञान कराते हैं ।
 इनके द्वारा ही हम बुद्धिमत्ता (I.Q), भावनात्मक (E.Q), वक्तृत्व (Com.Q), धैर्य (P.Q), साहस (C.Q), आर्थिक (F.Q) आदि आदि की गुणवत्ता अपने व्यक्तित्व में प्राप्त कर पूर्ण गुणात्मक रूप का व्यक्तित्व (Total Qwality Person) बनाते हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश हम मत, मजहब, सम्प्रदाय के लिए इन चारों को छोड़ अन्य अन्य को गुरू बना रहे हैं जो स्वयं अज्ञानी होने के कारण समर्पण का शोषण कर रहे हैं या अपने आप में ही अन्धकार में डूबे हुए हैं । अत: सार रूप में उक्त भू के भगवान चारों सर्वोत्तम शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन (attitude of gratitude)कर भारतीय संस्कृति के व्रती बनें तथा मानवता की रक्षा करने का प्रयास करें।
मेरे प्यारे गुरू दातार ,
मंगता द्वारे खड़ा।
मैं रहा रहा  पुकार,
शरण में लीजे सदा। 
रोम रोम में रमें …
ज्ञान की शुचि पावनता।
नेह दृष्टि में बसे …
सभी को ममता समता।
जिनकी सांस सांस में…. 
शिक्षा का ही स्पंदन है
नमन करूं गुरुदेव 
आपका कोटि कोटि अभिनंदन है।।
प्रोफेसर दिग्विजय के शर्मा
वरिष्ठ साहित्यकार, आगरा

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