करवाचौथ 2025-
भारत की संस्कृति में रिश्तों को संजोने और प्रेम को ईश्वर का रूप मानने की परंपरा रही है। इन्हीं भावनाओं को समर्पित एक सुंदर पर्व है — करवाचौथ।करवा चौथ का व्रत भारतीय संस्कृति में सबसे महत्वपूर्ण व्रतों में से एक माना जाता है। यह केवल एक व्रत नहीं, बल्कि पति-पत्नी के स्नेह, समर्पण और विश्वास का प्रतीक है।
🌕 व्रत का अर्थ और महत्व
अग्रभारत संवाददाता से चर्चा करते हुए भाजपा महिला मोर्चा खेरागढ़ की मण्डल अध्यक्ष श्रीमती ममता गर्ग ने कहा कि ‘करवा’ का अर्थ है मिट्टी का पात्र और ‘चौथ’ का अर्थ है चतुर्थी। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला यह पर्व करवाचौथ कहलाता है। इस दिन महिलाएँ अपने पति की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए निर्जला व्रत रखती हैं।
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, यह व्रत स्त्री की शक्ति और उसकी अटूट श्रद्धा का प्रतीक है। कहा जाता है कि पत्नी के इस प्रेमपूर्ण व्रत से पति के जीवन में आने वाले संकट भी टल जाते हैं।आज के समय में करवाचौथ केवल महिलाओं तक सीमित नहीं रहा। करवाचौथ केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि भावनात्मक रूप से भी अत्यंत विशेष है, जिससे यह पर्व समानता और पारस्परिक सम्मान का प्रतीक बन गया है।
🪔 व्रत की परंपराएँ
करवाचौथ की सुबह विवाहित महिलाएँ ससुराल से मिली ‘सरगी’ खाकर व्रत आरंभ करती हैं। दिन भर बिना पानी पिए वे ईश्वर का ध्यान करती हैं।
शाम के समय महिलाएँ सजधज कर करवा माता, भगवान शिव-पार्वती और चंद्र देव की पूजा करती हैं।
रात को चाँद के दर्शन के बाद पति की आरती कर, उसके हाथ से जल ग्रहण कर व्रत तोड़ा जाता है। इस अनुष्ठान के साथ यह पर्व प्रेम और समर्पण के भाव से पूर्ण होता है।
💞 प्रेम और विश्वास का पर्व
करवाचौथ केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि भावनात्मक रूप से भी अत्यंत विशेष है। यह त्योहार पति-पत्नी के बीच के रिश्ते को और अधिक गहराई देता है।
आज के आधुनिक समय में जहाँ जीवन भाग-दौड़ से भरा है, वहीं करवाचौथ हमें समर्पण, एकनिष्ठता और आपसी विश्वास की याद दिलाता है।
कई जगह अब पति भी अपनी पत्नी के लिए यह व्रत रखते हैं, जिससे इस पर्व का अर्थ और भी सुंदर हो गया है — समानता और सच्चे प्रेम का प्रतीक।
🌸 करवाचौथ की कथा
लोककथा के अनुसार, एक सती स्त्री वीरवती ने अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत रखा था। भाइयों के छल से उसने समय से पहले व्रत तोड़ा, जिससे उसके पति की मृत्यु हो गई।
देवी पार्वती की कृपा से जब उसका पति पुनः जीवित हुआ, तब से यह व्रत अमर प्रेम और आस्था का प्रतीक बन गया।
करवा चौथ का महत्व और पूजन विधि
शास्त्रों में इस व्रत की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। मान्यता है कि इस व्रत को श्रद्धापूर्वक रखने से विवाहित महिलाओं के जीवन में सुख और अखंड सौभाग्य में वृद्धि होती है।
पूजा का क्रम:
- व्रत और श्रृंगार: दिनभर निर्जला व्रत रखने के बाद, शाम के समय महिलाएं स्नान-ध्यान कर सोलह श्रृंगार करती हैं और नए वस्त्र पहनती हैं।
- करवा माता की पूजा: इसके बाद करवा माता, भगवान गणेश और भगवान शिव की पूजा की जाती है। इस दौरान करवा चौथ की कथा का पाठ करना अनिवार्य होता है।
- चंद्र दर्शन: रात्रि में चंद्रोदय होने के बाद, चंद्र देव की पूजा की जाती है और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है।
- व्रत पारण: चंद्र दर्शन के बाद, महिलाएं छलनी से पहले चंद्र देव को और फिर अपने पति को देखती हैं। इसके बाद पति के हाथ से पानी पीकर व्रत का पारण करती हैं।