वक्त की मांग: नदियों को जीवित इकाइयों के रूप में मान्यता दो

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नदी हमारी माता है

नदियों के कानूनी अधिकारों को सुरक्षित करने की जरूरत

लेखक: बृज खंडेलवाल

“नदियाँ हमारी माताएँ हैं, हमें उनकी देखभाल करनी चाहिए।” उत्तरी कैलिफ़ोर्निया की हूपा जनजाति के एक गीत में यह भावना भारतीय नदियों की गंभीर स्थिति को देखते हुए अत्यंत प्रासंगिक है। कई नदियाँ अस्तित्व के संकट में हैं, और उन्हें कानूनी अधिकारों के साथ जीवित संस्थाओं के रूप में मान्यता देने की आवश्यकता आज पहले से कहीं अधिक महसूस हो रही है।

नदियाँ: पारिस्थितिकी और सांस्कृतिक धरोहर

नदियाँ सिर्फ जलमार्ग नहीं हैं; वे हमारे पारिस्थितिकी तंत्र, सांस्कृतिक विरासत और समुदायों की जीवनरेखा हैं। इन्हें जीवित संस्थाओं के रूप में मान्यता देकर हम एक ऐसा ढांचा स्थापित कर सकते हैं जहाँ पारिस्थितिकी तंत्र को संवैधानिक संरक्षण दिया जाए। कुछ वर्षों पहले, उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने गंगा और यमुना नदियों को जीवित संस्थाओं के रूप में मान्यता दी थी, जो हमारे प्रकृति के साथ संबंध की गहरी समझ को दर्शाता है।

कानूनी अधिकारों का महत्व

नदियों को कानूनी अधिकार देने से हम उन्हें प्रदूषण, बांधों और नहरी डायवर्जन के खिलाफ सुरक्षा का अधिकार देंगे। इससे नदियों की स्वतंत्रता, जैव विविधता और पारिस्थितिक कार्यों को बनाए रखने की क्षमता सुनिश्चित होगी। यह एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है, जहाँ पारिस्थितिकी तंत्र को केवल संसाधन नहीं, बल्कि संवैधानिक संरक्षण के योग्य जीवित संस्थाएं माना जाएगा।

वैश्विक उदाहरण

इक्वाडोर में 2008 में प्रकृति के अधिकारों की संवैधानिक मान्यता एक प्रेरणादायक उदाहरण है। कोलंबिया के संवैधानिक न्यायालय ने अत्रातो नदी बेसिन के अधिकारों को मान्यता देकर यह साबित किया है कि नदियों की रक्षा का अर्थ उन समुदायों के अधिकारों की रक्षा करना भी है, जो इन पर निर्भर करते हैं। न्यूजीलैंड ने वांगानुई नदी को कानूनी व्यक्ति के रूप में मान्यता देकर स्वदेशी दृष्टिकोणों को भी शामिल किया है।

भारत में नदियों की स्थिति

भारत में नदियाँ सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। इनकी पूजा की जाती है और इन्हें माता के रूप में सम्मानित किया जाता है। हालाँकि, औद्योगिक दबाव और शहरीकरण के कारण ये नदियाँ खतरे में हैं। नदियों को कानूनी मान्यता देने से न केवल उनकी अखंडता की रक्षा होगी, बल्कि यह पर्यावरण शासन के लिए एक समग्र दृष्टिकोण को भी बढ़ावा देगा।

नदियों को अधिकारों वाली संस्थाओं के रूप में कानूनी मान्यता देने से परंपरा और आधुनिक शासन के बीच का अंतर पाटने का काम किया जा सकता है। यह अधिकार-आधारित ढांचा नदियों की सुरक्षा, बहाली और संरक्षण के लिए कानूनी तंत्र को सशक्त बनाता है। अंततः, नदियों के अधिकारों की मान्यता भारत में एक क्रांतिकारी कदम होगा, जो हमें एक नई दिशा में ले जाएगा।

नदियों का स्वास्थ्य हमारे स्वास्थ्य से जुड़ा है। हमें उनकी रक्षा करनी होगी।

 

 

 

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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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