Advertisement

Advertisements

नर्क का रास्ता: भारतीय ‘विकास’ का ठेकेदारी मॉडल!

Dharmender Singh Malik
5 Min Read

जैसे दवा की दुकान पर प्रशिक्षित फार्मासिस्ट रखना कंपलसरी है, वैसे ठेकेदारों को भी ट्रेंड सिविल इंजीनियर्स रखना अनिवार्य किया जाए ताकि निर्माण कौशल और क्वालिटी सुधरे। देश में लाखों इंजीनियर्स बेरोजगार हैं, उनकी कॉपरेटिव्स बनवाकर ठेके उनको दिए जाएं।

बृज खंडेलवाल

धूल फाँकती सड़कें, भरभराकर तेज़ी से गिरकर ढहते पुल, और मलबे में तब्दील होते स्कूल – यही है हमारे ‘विकास’ की हक़ीक़त ! जिस भारत में सरकारी तिजोरी से हज़ारों करोड़ रुपये पानी की तरह बहाए जाते हैं, वहाँ अवाम के हिस्से में आता है बस घटिया काम और टूटे वादे। यह ठेकेदारी की व्यवस्था असल में मुल्क की तरक़्क़ी को लूटतंत्र में बदल चुकी है, जहाँ गुणवत्ता को क़ुर्बान करके भ्रष्टाचार का महाभोज चल रहा है। ये ऐसा ज़हर है जो भारत के विकास को अंदर ही अंदर चाट रहा है।

कागज़ी घोड़े और अंतहीन इंतज़ार

सरकारी टेंडर हासिल करने वाली बड़ी कंपनियाँ, कागज़ों पर अपनी काबिलियत का डंका बजाने के बाद, काम को छोटे-छोटे ठेकेदारों में बाँट देती हैं। ये छोटे ठेकेदार, जो पहले से ही कई परियोजनाओं में उलझे होते हैं, काम को अनंत काल तक खींचते रहते हैं। जैसे कोई बूढ़ा शायर अपनी नज़्म को दोहराता रहे, उसी तरह यह काम भी कभी ख़त्म होने का नाम नहीं लेता।

See also  तेज़ या धीमी धड़कन? सावधान! यह हो सकता है कार्डियक एरेथमिया!

2023 की कैग (CAG) रिपोर्ट चीख़-चीख़कर बताती है कि 60% सड़क परियोजनाएँ समय पर पूरी नहीं हो पातीं, और तो और, उनकी लागत 40-50% तक बढ़ जाती है। क्या यह सिर्फ़ लापरवाही है या कोई साज़िश ?

मौत का साया: ढहते ढाँचे

यह सिर्फ़ पैसों की बर्बादी नहीं, बल्कि इंसानी जानों की बर्बादी भी है। 2022 में मुंबई का एक फ्लाईओवर गिरा, जिसमें 5 बेक़सूर लोग मौत के मुँह में समा गए। जाँच हुई तो पता चला – ठेकेदार ने सीमेंट में रेत मिला दी थी! यानी, मुनाफ़े की हवस में उसने लोगों की ज़िंदगियों से खिलवाड़ किया। 2023 में बिहार के एक स्कूल की छत ढह गई, जिसमें 12 बच्चे ज़ख़्मी हुए। वजह? निर्माण सामग्री में घपला।

एनएचएआई (NHAI) के आँकड़े बताते हैं कि 30% नई बनी सड़कें पहले मॉनसून में ही उखड़ जाती हैं। क्या यह सिर्फ़ इत्तेफ़ाक़ (संयोग) है या मौत का इंतज़ार?

See also  मोदी जी ने आखिरकार यमुना की पीड़ादायक पुकार सुनी, प्रदूषण से मुक्ति और पुनरुद्धार की उम्मीद बढ़ीं

नेता और ठेकेदार: एक नापाक गठजोड़

सरकारी अफ़सर और ठेकेदार मिलकर कॉस्ट एस्केलेशन (लागत बढ़ोतरी) का खेल खेलते हैं। टेंडर मिलते ही काम की रफ़्तार धीमी कर दी जाती है, फिर “अतिरिक्त बजट” की मांग की जाती है, जैसे कोई भूखा भेड़िया अपने शिकार का इंतज़ार करे।
सीबीआई (CBI) के 2021 के एक केस में तो यह भी पता चला कि एक ठेकेदार ने 100 करोड़ के प्रोजेक्ट को 300 करोड़ तक पहुँचा दिया, जिसमें से 50 करोड़ अफ़सरों और सियासतदानों की जेब में गए! यह हमारे देश के खून-पसीने की कमाई है, जो ऐसे निकम्मे लोगों के हाथों में लुट रही है।

हुनरमंद क्यों रहते हैं बेकार?

भारत में 15 लाख इंजीनियर बेरोज़गार हैं, लेकिन ठेकेदार अनपढ़ मज़दूरों से काम करवाते हैं ताकि कम लागत में ज़्यादा मुनाफ़ा कमाया जा सके। आईआईटी (IIT) और एनआईटी (NIT) जैसे संस्थानों के पास तकनीकी महारत (विशेषज्ञता) है, लेकिन सरकार उन्हें सीधे प्रोजेक्ट नहीं देती। क्यों? क्योंकि ठेकेदारों का “कमीशन राज” चलता रहे! यह मज़बूरी नहीं, बल्कि मंज़ूरी है इस भ्रष्टाचार की।

कब तक सहेंगे यह ज़ुल्म ?

अंग्रेज़ों के ज़माने का हावड़ा ब्रिज और मुगलों के किले आज भी मज़बूत खड़े हैं, लेकिन आज बनी सड़कें 2 साल भी नहीं टिकतीं! क्या हम अपनी आने वाली नस्लों को यही विरासत देना चाहते हैं? अगर सरकार ने इस ठेकेदारी माफ़िया पर लगाम नहीं कसी, तो “विकास” के नाम पर सिर्फ़ धोखा, धूल और मौतें बचेंगी।

See also  Rhythm 0 and the New Age of Consequence-Free Cruelty

अब नहीं तो कब? समाधान की गुहार

मशीन बैंक योजना: सरकार उद्यमियों को किराए पर निर्माण मशीनें उपलब्ध कराए, ताकि छोटे ठेकेदार भी गुणवत्तापूर्ण काम कर सकें। यह उन्हें आत्मनिर्भर बनाएगा।

टेंडर में टैलेंट नीति

आईआईटी (IIT) और सरकारी कॉलेजों के छात्रों को छोटे प्रोजेक्ट दिए जाएँ, ताकि नए विचारों को मौका मिले। उन्हें अपनी काबिलियत साबित करने का मंच मिले।

ज़ीरो टॉलरेंस पॉलिसी

अगर कोई ठेकेदार समय पर काम पूरा नहीं करता, तो उस पर भारी जुर्माना लगे और उसे हमेशा के लिए ब्लैकलिस्ट किया जाए। कोई लिहाज़ नहीं!

यह वक्त है जागने का, यह वक्त है बदलने का! क्या हम इस अंधेरे में ही जीते रहेंगे या रोशनी की तरफ़ बढ़ेंगे?

Advertisements

See also  कुबेर भगवान के पसंदीदा पौधे: धनतेरस पर घर में लगाएं और समृद्धि पाएं, देखभाल करना भी है आसान
Share This Article
Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement