विचार और परेशानी – राजीव गुप्ता जनस्नेही (गोल्डन एज सीनियर सिटीजन्स ग्रुप)
हमारे दैनिक जीवन में अवांछित कॉल्स एक बड़ी समस्या बन गए हैं। चाहे वो बैंक से हों, कार कंपनियों से या किसी अन्य मार्केटिंग एजेंसी से, ये फोन दिनभर बजते रहते हैं। हाल ही में गोल्डन ऐज के एक सदस्य ने राजीव गुप्ता जनस्नेही से संपर्क कर इस मुद्दे पर गहरी चिंता व्यक्त की, खासकर हाउसवाइव्स और 65 वर्ष से अधिक के रिटायर्ड लोगों के लिए।
‘चूसे हुए आम’ का आराम बनाम टेलीमार्केटिंग का शोर
गोल्डन ऐज के सदस्य ने राजीव गुप्ता से कहा, “राजीव भाई, कोई ऐसी व्यवस्था कीजिए ट्राई से या आरबीआई से, कि जो हाउसवाइफ और 65 साल के ऊपर के रिटायर्ड लोग हैं उनके पास कम से कम डेढ़ बजे से 5 बजे तक हमारे (चूसे हुए आम के) पास फोन नहीं आएं।” उन्होंने अपनी परेशानी बताते हुए कहा कि बड़ी मुश्किल से खाना खाकर और दवाई लेकर नींद आती है, और ये टेलीफोन की घंटियां उनके रिटायरमेंट की लाइफ में एक ‘कंकड़’ के माफिक लगती हैं।
राजीव गुप्ता भी इस बात से सहमत हैं। उनका मानना है कि 60 वर्ष से ऊपर के लोगों या दोपहर 2 बजे से 4 बजे के बीच गृहिणियों के पास इस प्रकार के फोन आने से न केवल उनके आराम में खलल पड़ता है, बल्कि नींद टूट जाने से उनकी दिनचर्या भी भंग हो जाती है।
मार्केटिंग और निजता का संतुलन: एक बड़ी चुनौती
राजीव गुप्ता यह भी मानते हैं कि अगर मार्केटिंग के फोन नहीं आएंगे तो हम एक-दूसरे के प्रोडक्ट या कंपनी के बारे में कैसे जानेंगे। लेकिन इसके लिए कोई एक गाइडलाइन या नियम बनना अत्यंत आवश्यक है। इस समस्या की जड़ में सबसे बड़ी बात है संस्थाओं और मार्केटिंग कंपनियों द्वारा ग्राहकों का डेटा बेचना, जिससे यह परेशानी कई गुना बढ़ जाती है।
प्रबुद्धजनों से उपाय की अपील
राजीव गुप्ता जनस्नेही ने सभी प्रबुद्ध जनों से निवेदन किया है कि वे इस समस्या का कोई उपाय सुझाएं या इसे दुरुस्त करने में मदद करें। यह सिर्फ कुछ लोगों की परेशानी नहीं, बल्कि एक व्यापक सामाजिक मुद्दा है जो लाखों लोगों के दैनिक जीवन को प्रभावित करता है।
क्या आपके पास इस समस्या का कोई व्यवहारिक समाधान है? आपके सुझावों का स्वागत है।