आगरा: आज़ादी के बाद शिक्षा को हर नागरिक का मौलिक अधिकार बनाने के लिए सरकारी स्कूलों की स्थापना की गई थी। इन स्कूलों में मुफ्त शिक्षा, किताबें, यूनिफ़ॉर्म और मिड-डे मील जैसी सुविधाएं दी गईं, ताकि कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे। लेकिन आज, गाँव से लेकर शहर तक यह साफ देखा जा सकता है कि लोगों का रुझान सरकारी स्कूलों से हटकर निजी स्कूलों की ओर बढ़ रहा है।
निजी स्कूलों की ओर क्यों है झुकाव?
लोगों का यह झुकाव सिर्फ़ निजी स्कूलों की आधुनिक इमारतों या अंग्रेज़ी माध्यम की पढ़ाई की वजह से नहीं है, बल्कि इसके पीछे सरकारी स्कूलों में अनुशासन, शिक्षण की गुणवत्ता और जवाबदेही की कमी भी एक बड़ा कारण है। सरकारी स्कूलों में कई बार योग्य शिक्षक होने के बावजूद उनमें वह प्रेरणा और नियमितता देखने को नहीं मिलती, जो अभिभावकों का भरोसा जीत सके। एक समय था जब सरकारी शिक्षक को समाज में सबसे सम्मानित व्यक्ति माना जाता था, लेकिन आज यह भरोसा टूटता जा रहा है।
अभिभावक यह सोचने लगे हैं कि अगर उन्हें अपने बच्चे का भविष्य बनाना है, तो उसे निजी स्कूल में ही भेजना होगा, भले ही इसके लिए उन्हें कर्ज़ लेना पड़े। यह स्थिति न केवल शिक्षा के स्तर को प्रभावित कर रही है, बल्कि समाज में आर्थिक और अवसरों की असमानता को भी बढ़ा रही है। जो परिवार निजी स्कूलों का खर्च नहीं उठा सकते, उनके बच्चे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित रह जाते हैं, जिससे सामाजिक संतुलन भी प्रभावित हो रहा है।
क्या है समाधान?
सरकारी स्कूलों को फिर से मजबूत करने के लिए उनकी इमारतों और योजनाओं में जान डालने की ज़रूरत है। शिक्षकों की जवाबदेही तय करना, आधुनिक शिक्षण पद्धतियों को अपनाना, शिक्षा में तकनीक का सही इस्तेमाल करना और स्थानीय समुदाय की निगरानी को बढ़ाना कुछ ऐसे कदम हैं, जो सरकारी स्कूलों पर लोगों का भरोसा वापस ला सकते हैं। इन प्रयासों से ही शिक्षा के इस दोहरे ढांचे को खत्म किया जा सकता है और हर बच्चे को समान अवसर मिल सकते हैं।
