नारी और संस्कृति

Dharmender Singh Malik
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नारी तुम केवल श्रद्धा हो करती सर्वत्र समर्पण

परिवार समाज धर्म संस्कृति को सजोती

नारी प्रकृति की अतुलनीय मूल्यवान सर्वाधिक सुंदर रचना है। सदियों से हमारे घर परिवार समाज की संस्कृति को सजती, संवारती संग्रह करती आ रही है। नारी अनेक रूपों , में संस्कृति की वाहक है, घर को रंगोली से सजाती, पूजा की थाली लिए इष्ट देव को करती अपना मन अर्पण। नाना प्रकार के व्यंजन बनाती, रोली तिलक लगाती फूलों की माला मां शारदे को पहनाती, पीपल, वट वृक्ष, केला, अशोक वृक्ष की पूजा-अर्चना करती नीम के पत्तों से घर आंगन और मरीज को करती शुद्ध और पवित्र। गाय, बकरी, बैल, घोड़े की देखभाल नित करती रहती प्रार्थना, बंदना हवन मंत्रों का जाप, भजन गाती महिलाएं, संस्कृति को ही सजा रही है। इस प्रकार महिलाएं संस्कृति की वाहक हैं।

परिवार में संयुक्त परिवार व्यवस्था के नियमों का पालन करती तो एकांकी परिवार में अपने अधिकारों को पाती, बच्चों की शिक्षा व्यवस्था की चितां दिन रात लगती सभी वर्गों की महिलाये परिवार की डोर को बाधे रखती। अपने असीमित कर्तव्यो से पति और और बच्चों सास ससुर का जीवन सीचती, साथी मोहल्ले की औरतो से संग गप्पबाजी करती मिलकर मनाती सभी त्योहार और उत्सव, कॉलोनी के सार्वजनिक कार्यक्रम में प्रस्तुति देती महिलाएं धर्म और संस्कृति की सच्ची वाहक है।

स्त्री बिन कायनात स्त्री विन पुरुष का अधूरा ना रिश्ते और ना नाते स्त्री ही जीवन का आधार है स्त्रियों से ही संसार बना। पश्चिमी देशों में महिलाओं के कुछ वर्ग यह मानते हैं कि स्त्री ही सृष्टि दात्री है वही भगवान अथवा प्रथम ईश्वर है महिला शमिकाओ के इस तथ्य का समर्थन करते हुए अपने गीत गए है जो संपूर्ण विश्व के प्रसिद्ध हो रहे हैं । किंतु वह जो तस्वीर बहुत सुंदर पहलू है उसका दूसरा नकारात्मक दुख पक्ष भी हैं समाज में सदैव स्त्री और पुरुष के संघर्ष रहा है समाज में स्त्री को कमजोर कोमल समझकर सत्ता पुरुष के हाथों में सौंप दी और समाज पितृसत्तात्मक बना।

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पुरुष की कुसंगत भावनाओं विचारों का ग्राश बनी महिलाऐ किशोरोंयां समाज में बलात्कार के केस बढ़े व्यभिचार वेश्यावृत्ति पनपी जिससे आज तक कानून द्वारा दूर नहीं कर किया जा सका। बालिका घरेलू श्रमिक बनकर रह गई निर्धन वर्ग की बच्चियां परिवार का आर्थिक बोझ कम करने के लिए श्रम व्यापार में उतर पड़ी और पुरुष शराब के नशे में धुत पड़े रहते शराब पीने के लिए स्त्रियों के मारने पीटने उनके कार्य परिश्रम को छीनने के किस्से आम हैं किशोरी से छेड़छाड़, एसिड अटैक वह महिलाओं के प्रति अन्य अपराधआत्मक ग्राफ कम नही हुआ हैं। घरेलू हिंसा मीडिया से शोषण झेलती नारी को मुक्ति दिलाने में स्त्रीवादी आंदोलन की अहम भूमिका रही हैं। संस्कृति की वाहक परंपराओं के स्त्रियों का जीवन निखारा कम बिगाड़ा ज्यादा है आज भी विधवा पुनर्विवाह की दर कम ही है भारत में आधी रात को घर से बाहर जाती महिला को शक संदेह की दृष्टि से देखा जाता है सृष्टि सृजन से आज तक स्त्री पुरुष में संघर्ष रहा किंतु फिर भी वास्तव में स्त्री पुरुष के साथ बिना समाज संसार नहीं होगा और ना संस्कृति होगी।

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भारत में जो स्त्री संस्कृति और बरसों की विरासत समझकर पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित रखती है रही है, उसी संस्कृति ने कुछ ऐसी परंपराएं कायम की जिन्होंने महिलाओं को घुट घुट कर जीने पर मजबूर किया। प्राचीन काल में सती प्रथा, बाल विवाह, बाल विधवा बेमेल विवाह, कुलीन विवाह, देवास प्रथा आदि कुछ ऐसी कुरीतियां हैं जिन्होंने स्त्री का शोषण किया हैं। इसी क्रम में 21 वी शताब्दी में तस्वीरों में महिलाओं अभद्र चित्रण मीडिया में नारी सा दोहन घर में घरेलू हिंसा, कार्यस्थल पर शारीरिक मानसिक उत्पीड़न का शिकार है स्त्री। साइबर अपराध फेसबुक द्वारा महिलाओं की अश्लील चित्रण संपादन करने वाले ऐप से लड़कियों को ब्लैकमेल किया जाना प्रेम जाल में फंसा कर अंतरंगता भंग कर वीडियो बनाना फिर सार्वजनिक करना इत्यादि नारी शोषण के ही अनेक रूप हैं। नववर्ष पर दोस्तों संग घुमने सामूहिक रूप से ईव टीचिंग स्त्री पुरुष या मित्रता पर आज भी उंगलियां उठाना कहां तक आधुनिकता की निशानी है। कपड़ों की संस्कृति पर लड़कियों को घेरना आज भी पुरुषवादी सोच को ही दर्शाता है। स्त्री-पुरुष दो भिन्न जननांगों के प्राणी है उन्हें स्त्री और पुरुष की भूमिकाएं निभाने को समाज ने दी है नर और नारी का भेद समाज ने किया है और आज यह दोनों ही जटिल व्यक्तित्व हैं। पितृसत्तात्मक समाज स्त्री उपभोग वादी संस्कृति से अभी तक उबर नहीं पाया है। आज तक पुरुषो का स्त्रियों के प्रति तटस्थ भाव दृष्टिकोण नहीं बना पाया हैं। भारतीय समाज वर्ना महिलाओं के जींस पहनेपर बजरंगी दल हल्ला न करते। आज भूमंडलीकरण का युग है सारी दुनिया एक परिवार है यह मेरी संस्कृति यह मेरी संस्कृति का सांस्कृतिक विभेदीकरण नहीं चलेगा। जब दुनिया वासुदेवकुटुम्बकम भारत कहता है तब विश्व संस्कृति संपूर्ण है तब कोई विभेद नहीं संपूर्ण विश्व एकाकार हैं।

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फिर भी वर्तमान परिद्रश्य में महिलाओं की स्थिति में अमूमन चल प्रवर्तन आया हैं। और सांस्कृतिक विरासत का आनंद उठाती रोज नए कीर्तिमान रच रही हैं।

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डॉ० शेफाली सुमन
प्रोफ़ेसर: समाजशास्त्र विभाग
महाराणा प्रताप राजकीय महाविद्यालय
सिकंदराराऊ हाथरस

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Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
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