सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस विवादित आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें ब्रेस्ट पकड़ने और पजामे का नाड़ा तोड़ने को बलात्कार या बलात्कार के प्रयास से जुड़ा नहीं माना गया था। यह आदेश सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए रोक लगाई और अदालत की संवेदनशीलता पर सवाल उठाए।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ कहा कि इस फैसले में संवेदनशीलता की कमी थी। जस्टिस भूषण आर गवई ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह स्थिति बेहद गंभीर है और एक जज द्वारा इस तरह के कठोर शब्दों का प्रयोग निंदनीय है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय में कुछ पैराग्राफ (24, 25, 26) में स्पष्ट रूप से संवेदनशीलता की कमी नजर आई है।
सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की गंभीरता को समझते हुए हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई और इस मामले में याचिका दाखिल करने वाले पीड़िता की मां की याचिका को भी जोड़ा। कोर्ट ने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया और कहा कि इस मामले पर दो हफ्ते बाद सुनवाई होगी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का विवादित फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 17 मार्च को अपने एक विवादित फैसले में कहा था कि पीड़िता के ब्रेस्ट को पकड़ना और पाजामे का नाड़ा तोड़ना बलात्कार या बलात्कार के प्रयास के रूप में नहीं आ सकता। जज जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने 11 वर्षीय लड़की के साथ हुई घटना के तथ्यों को रिकॉर्ड करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि यह महिला की गरिमा पर आघात का मामला तो है, लेकिन इसे बलात्कार के प्रयास का मामला नहीं माना जा सकता।
कानूनी दृष्टिकोण
इस फैसले ने देशभर में विवाद और आलोचना को जन्म दिया, खासकर उस परिपेक्ष्य में कि अदालत को एक संवेदनशील मामले में इतनी कठोर टिप्पणी करने से पहले अधिक सोच-विचार करना चाहिए था। बलात्कार और यौन उत्पीड़न से जुड़े मामलों में अदालतों को बेहद सावधानी और संवेदनशीलता के साथ निर्णय लेना चाहिए।