दशहरा 2023: ‘मेरा टेसू यहीं अड़ा, खाने को मांगे दही बड़ा’ विलुप्त हो रही बच्चों के खेल की अनोखी परंपरा, दशहरा से कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है उत्सव

Dharmender Singh Malik
4 Min Read

दशहरा पर्व के साथ ही उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में बच्चों के बीच तेसू झांझी का खेल शुरू हो जाता है। यह खेल दशहरा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है। इस खेल में बच्चे मिट्टी से बने तेसू और झांझी को घर-घर जाकर दिखाते हैं और इसके बदले में लोगों से दान लेते हैं।

तेसू एक छोटा सा मिट्टी का खिलौना होता है जिसकी गर्दन पर घंटी लगी होती है। झांझी एक गहरे रंग की मिट्टी से बनी एक गोल गेंद होती है। तेसू और झांझी को एक साथ जोड़ा जाता है और उन्हें एक दूसरे के साथ बजाया जाता है।

इस खेल के साथ एक लोकप्रिय कहानी भी जुड़ी है। कहानी के अनुसार, एक समय में एक गरीब लड़का था जिसका नाम बर्बरीक था। वह एक बहुत ही कुशल योद्धा था। दुर्योधन ने बर्बरीक को अपने पक्ष में लड़ने के लिए कहा, लेकिन बर्बरीक ने कृष्ण को अपना आदर्श मानते हुए उनके पक्ष में लड़ने की बात कही।

See also  चेतावनी: 7 साल बाद पृथ्वी से टकरा सकता है विशाल एस्टेरॉयड, नासा और ESA ने दी जानकारी

कृष्ण ने बर्बरीक को एक ऐसी तलवार दी जो केवल एक बार इस्तेमाल की जा सकती थी। बर्बरीक ने तलवार का इस्तेमाल करके कौरवों के सभी योद्धाओं को मार डाला। अंत में, कृष्ण ने बर्बरीक का सिर काट दिया ताकि कौरवों की जीत सुनिश्चित हो सके।

बर्बरीक की मृत्यु के बाद, उसकी मां ने उसे एक तेसू और झांझी के रूप में पुनर्जन्म दिया। यह कहा जाता है कि तेसू और झांझी का विवाह दशहरा के दिन होता है। इस विवाह को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।

तेसू झांझी का खेल एक पारंपरिक लोक कला है जो पीढ़ियों से चली आ रही है। यह खेल बच्चों को मौज-मस्ती करने और अपनी संस्कृति को सीखने का एक अच्छा अवसर प्रदान करता है।

हाल के वर्षों में, यह खेल धीरे-धीरे विलुप्त होता जा रहा है। इसका मुख्य कारण यह है कि बच्चों में पारंपरिक खेलों के प्रति रुचि कम होती जा रही है। साथ ही, शहरीकरण के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में इस खेल को खेलने के लिए जगह भी कम होती जा रही है।

See also  ऑपरेशन सिंदूर के बाद क्या आपके बच्चों के स्कूल खुलेंगे? हवाई और रेल यात्रा पर क्या होगा असर? जानें हर सवाल का जवाब

हालांकि, कुछ लोग इस खेल को बचाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। वे बच्चों को इस खेल के बारे में जागरूक कर रहे हैं और उन्हें इस खेल को खेलने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।

आशा है कि इस खेल को बचाने के लिए समय रहते प्रयास किए जाएंगे ताकि यह खेल आने वाली पीढ़ियों तक पहुंच सके।

तेसू झांझी खेल की विशेषताएं

  • यह खेल दशहरा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलता है।
  • इस खेल में बच्चे मिट्टी से बने तेसू और झांझी को घर-घर जाकर दिखाते हैं।
  • तेसू एक छोटा सा मिट्टी का खिलौना होता है जिसकी गर्दन पर घंटी लगी होती है।
  • झांझी एक गहरे रंग की मिट्टी से बनी एक गोल गेंद होती है।
  • तेसू और झांझी को एक साथ जोड़ा जाता है और उन्हें एक दूसरे के साथ बजाया जाता है।
  • इस खेल के साथ एक लोकप्रिय कहानी भी जुड़ी है।
See also  पुराने वाहनों के रजिस्ट्रेशन पर नया नियम: अब 20 साल तक चलेगी गाड़ी, पर चुकाना होगा भारी शुल्क

तेसू झांझी खेल की विलुप्त होने की वजह

  • बच्चों में पारंपरिक खेलों के प्रति रुचि कम होती जा रही है।
  • शहरीकरण के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में इस खेल को खेलने के लिए जगह कम होती जा रही है।

तेसू झांझी खेल को बचाने के लिए प्रयास

  • बच्चों को इस खेल के बारे में जागरूक करना।
  • उन्हें इस खेल को खेलने के लिए प्रोत्साहित करना।

See also  फंस गए Mark Zuckerberg… इस वजह से संसदीय समिति करेगी Meta को समन
Share This Article
Editor in Chief of Agra Bharat Hindi Dainik Newspaper
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement