बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले, चुनाव आयोग के एक नए फरमान ने विपक्षी दलों, विशेषकर ‘इंडिया’ घटक दल के नेताओं की चिंता बढ़ा दी है। विपक्ष इस फरमान को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का ‘षड्यंत्र’ बता रहा है, आरोप लगा रहा है कि भाजपा महाराष्ट्र की तर्ज़ पर बिहार में भी ‘वोटों की चोरी’ कर चुनाव जीतने की योजना बना रही है।
क्या है चुनाव आयोग का नया फरमान?
विपक्ष का अंदेशा है कि चुनाव आयोग के नए फरमान के कारण, लाखों लोगों के नाम मतदाता सूचियों से कट सकते हैं। यदि नए नियम के अनुसार बिहार के मतदाताओं ने आवश्यक दस्तावेज़ नहीं दिखाए, तो उनका नाम मतदाता सूची में नहीं जुड़ेगा और कटेगा भी। जब मतदाता सूची में नाम ही नहीं होगा, तो वे वोट भी नहीं दे पाएंगे।
विपक्ष की दोहरी चिंता: मतदाता और उम्मीदवार
विपक्ष के नेताओं की यही सबसे बड़ी चिंता है, जिसका वे पुरज़ोर विरोध कर रहे हैं। हालांकि, लेखक डॉ. सुनील तिवारी, जो सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ कर्नाटक के पूर्व फर्स्ट कोर्ट मेम्बर रहे हैं, का मानना है कि विपक्ष के नेताओं को इससे भी बड़ी चिंता करनी होगी। यदि आवश्यक कागज़ात नहीं बताए जाते हैं, तो मतदाता न केवल वोट नहीं दे पाएगा, बल्कि चुनाव भी नहीं लड़ पाएगा। जब मतदाता सूची में नाम ही नहीं होगा, तो उम्मीदवार का फॉर्म खारिज हो जाएगा और वह चुनाव लड़ने से वंचित हो जाएगा।
डॉ. तिवारी के अनुसार, विपक्षी दलों के नेताओं को 3 करोड़ मतदाताओं की चिंता करने के साथ ही 243 उम्मीदवारों की भी चिंता करनी होगी। यदि अपने उम्मीदवारों के नाम मतदाता सूची में नहीं होंगे, तो वे भी वोट देना तो दूर, चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे। इसलिए, ‘इंडिया’ गठबंधन के नेताओं को उम्मीदवारों की घोषणा करने से पहले यह भी देखना होगा कि उनका नाम वोटर लिस्ट में है या नहीं।
सीट शेयरिंग से ज़्यादा वोटर लिस्ट पर ध्यान देने की सलाह
डॉ. सुनील तिवारी ने पहले भी कई बार लिखा है कि ‘इंडिया’ गठबंधन के नेताओं को सीट शेयरिंग को लेकर विवाद में नहीं फंसकर मतदाता सूचियों पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी बिहार में हर हाल में अपना मुख्यमंत्री बनाना चाहती है।
अभी भी ‘इंडिया’ घटक दल के नेताओं को सीट शेयरिंग की चिंता अधिक है। राजद नेता तेजस्वी यादव शायद यह समझ रहे हैं कि बिहार में एनडीए गठबंधन सरकार के खिलाफ जनता में आक्रोश है और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीमार हैं, इसलिए आरजेडी 140 सीटों पर चुनाव लड़कर अपनी दम पर बहुमत हासिल कर लेगी। इस मुगालते में वह कांग्रेस को 2020 की 70 सीटों से कम, मात्र 50 सीट ही देना चाहती है।
डॉ. तिवारी सवाल उठाते हैं कि चुनाव आयोग के नए फरमान के अनुसार, कागज़ नहीं दिखाने पर मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से कटें या जुड़ें, इसकी चिंता करने के साथ-साथ यह भी देखना होगा कि तेजस्वी यादव जिन 140 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार रहे हैं, उनका नाम वोटर लिस्ट में है या नहीं। इसकी चिंता ‘इंडिया’ घटक दल के नेताओं को अधिक करनी होगी, क्योंकि अगर कागज़ नहीं दिखाए गए तो ‘इंडिया’ गठबंधन के पास वोट तो होंगे, मगर उम्मीदवार नहीं होगा।
( लेखक सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी आफ कर्नाटक के पूर्व फर्स्ट कोर्ट मेम्बर रहे हैं)