उपराष्ट्रपति बनने के बाद से जगदीप धनखड़ ने यह धारणा दी कि वे सरकार के शीर्ष नेतृत्व के बहुत करीब हैं और उनके इशारों पर काम करते हैं। इसका एक प्रमुख उदाहरण संसद परिसर में उपराष्ट्रपति के व्यवहार की मिमिक्री थी, जिसका वीडियो राहुल गांधी ने बनाया था। इस घटना का मूल कारण यह था कि राज्यसभा के सभापति के रूप में धनखड़ विपक्षी नेताओं के साथ लगातार टकराव में रहते थे। विपक्षी दलों का मानना था कि वे सरकार के कहने पर उन्हें बोलने नहीं देते और उनका अपमान करते हैं, जिससे सरकार और विपक्ष के बीच तनाव बढ़ता गया।
न्यायपालिका पर सीधा हमला और संवैधानिक टकराव
कुछ महीने पहले धनखड़ ने न्यायपालिका पर सीधा हमला किया और सुप्रीम कोर्ट पर भी निशाना साधा। उन्होंने संसद की सर्वोच्चता की बात की, जिससे न्यायपालिका को यह महसूस हुआ कि उपराष्ट्रपति सरकार के इशारे पर काम कर रहे हैं। इस स्थिति ने न्यायपालिका और सरकार के बीच एक संभावित टकराव पैदा कर दिया।
आंतरिक असंतोष और शीर्ष नेतृत्व से शिकायतें
जब उन्हें इन मामलों पर समझाने की कोशिश की गई, तो धनखड़ नाराज हो गए। उन्होंने कथित तौर पर याद दिलाना शुरू कर दिया कि कैसे उन्होंने उपराष्ट्रपति होते हुए भी जगह-जगह सरकार का बचाव किया और अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगा दी। यहीं से सरकार के साथ उनका सीधा टकराव शुरू हुआ।
आपने यह भी उल्लेख किया कि धनखड़ ने सरकार के शीर्ष नेतृत्व की शिकायतें आरएसएस से लेकर मंत्रियों और विपक्षी दलों से लेकर मीडिया के वरिष्ठ लोगों तक करनी शुरू कर दीं। उनकी शिकायत थी कि सरकार में उनसे कोई बात नहीं करता, उन्हें घुटन हो रही है, और अगर उनकी बात प्रधानमंत्री तक नहीं पहुंचाई गई तो उन्हें “कुछ करना पड़ेगा”। यह एक तरह से सरकार को दी गई सीधी धमकी थी।
तेवर दिखाना और इस्तीफे का दबाव
अंतिम चरण में, धनखड़ ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए। वे कांग्रेस नेताओं से मिले, अरविंद केजरीवाल को समय दिया, और कथित तौर पर इन सभी से सरकार के बारे में काफी कुछ कहा। उन्होंने यशवंत वर्मा के महाभियोग (impeachment) मामले को अपने हाथ में लेने की भी कोशिश की।
आपके अनुसार, जब सरकार को लगा कि धनखड़ राज्यसभा में भी “embarrassment” पैदा कर सकते हैं और एक खुला टकराव पैदा हो सकता है, तो उन्हें एक फोन कॉल गया। इस कॉल में यह स्पष्ट कर दिया गया कि “यह खेल अब ज्यादा नहीं चलेगा” और यह भी बताया गया कि यदि उन्होंने अपना रवैया नहीं बदला तो उनके खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। आपने कहा कि धनखड़ को इसकी उम्मीद नहीं थी और उन्होंने शीर्ष नेतृत्व का आकलन करने में गलती कर दी, जिससे उनका दांव उल्टा पड़ गया। इसी वजह से उन्होंने इस्तीफा देना ही बेहतर समझा।