मथुरा: मथुरा के फालैन गांव में होलिका दहन के दिन जलती होलिका से होकर निकलने वाले मोनू पंडा ने एक महीने की विशेष पूजा और व्रत शुरू कर दिया है। यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है।
Mathura Holi 2024: मथुरा के फालैन गांव में होलिका दहन के दिन जलती होलिका के बीच से होकर निकलने वाला मोनू पंडा एक महीने की विशेष पूजा और व्रत पर बैठ गए हैं। ब्रज की होली अपनी अनूठी परंपराओं को लेकर देश और दुनिया में विख्यात है। छाता तहसील के गांव फालैन में जलती हुई होलिका की लपटों के बीच से होकर निकलने वाले पंडा को देखने के लिए देशभर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। होलिका दहन के दिन होनी वाली इस चमत्कारिक घटना से एक एक महीने पहले गांव स्थित प्रहलाद मंदिर में पंडा विशेष पूजा पर बैठते हैं। शनिवार को माघ पूर्णिमा के अवसर पर गांव के ही मोनू पंडा ने प्रहलाद मंदिर में एक महीने का तप शुरू कर दिया। वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही इस परंपरा को इस बार भी मोनू पंडा निभाएंगे।
धधकती लपटों के बीच से होकर निकलते हैं मोनू पंडा
मोनू पंडा ने बताया कि वह इस दायित्व को पांचवीं बार निभाएंगे, जबकि उनके पिता सुशील पंडा आठ बार जलती होलिका के बीच से निकल चुके हैं। उन्होंने बताया कि होलिका दहन वाले दिन मंदिर में जलने वाले दीए की लौ में उन्हें जब ठंडक का एहसास होता है तभी वो प्रह्लाद कुंड में स्नान करते हैं और उनकी बहन होलिका को गाय के दूध से अर्ध्य देती हैं जिसके बाद वे जलती हुई होलिका की धधकती लपटों के बीच से होकर निकलते हैं।
यह परंपरा कैसे शुरू हुई
कहा जाता है कि करीब 2 हज़ार साल पहले इसी गांव में भक्त प्रह्लादजी की एक स्वयंभू प्रतिमा प्रकट हुई थी। उसी समय से यहां एक परंपरा चली आ रही है जिसमें एक ही कुनबा के लोग होली से सवा माह पहले बसंत पंचमी से विशेष पूजा करते हैं और अन्न भी त्याग देते हैं।
यह परंपरा क्यों मनाई जाती है
यह परंपरा भक्त प्रह्लाद की कहानी से प्रेरित है। भक्त प्रह्लाद अपने पिता हिरण्यकश्यप के खिलाफ गए थे क्योंकि हिरण्यकश्यप चाहता था कि सभी लोग उसकी पूजा करें। हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को आग में प्रवेश करने के लिए कहा था ताकि वह भक्त प्रह्लाद को जला सके। लेकिन भक्त प्रह्लाद बच गए और होलिका जल गई।