राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की पत्रिका राष्ट्रधर्म ने हाल ही में एक विशेष अंक प्रकाशित किया है, जिसमें राम मंदिर आंदोलन की पूरी कहानी को तथ्यात्मक रूप से प्रस्तुत किया गया है। इस अंक के लोकार्पण के अवसर पर, आरएसएस के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल ने कहा कि यह अंक हिंदू समाज की नई पीढ़ी को भगवान श्रीराम के जीवन चरित्र और राम मंदिर आंदोलन के पूरे इतिहास को अच्छे ढंग से समझाएगा।
इस अंक में राम मंदिर आंदोलन के इतिहास को तीन भागों में बांटा गया है।
- प्रारंभिक चरण (19वीं शताब्दी से 1949 तक)
- आंदोलन का पुनरुत्थान (1980 के दशक)
- आंदोलन की सफलता (1990 के दशक)
प्रारंभिक चरण में, राम मंदिर के लिए हिंदू समाज द्वारा कई मुकदमे दायर किए गए, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। 1949 में, अयोध्या में बाबरी मस्जिद के अंदर भगवान राम की मूर्तियां रख दी गईं। इस घटना ने राम मंदिर आंदोलन को एक नई गति प्रदान की।
1980 के दशक में, राम मंदिर आंदोलन ने एक व्यापक जन आंदोलन का रूप ले लिया। इस आंदोलन का नेतृत्व विश्व हिंदू परिषद (VHP) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने किया। 1992 में, अयोध्या में कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद को तोड़ दिया। इस घटना ने पूरे देश में सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई।
1990 के दशक के मध्य में, भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के मुद्दे पर एक विशेष अधिवक्ता समिति का गठन किया। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि राम मंदिर की जगह पर पहले एक मंदिर था। 2019 में, सर्वोच्च न्यायालय ने राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया।
राष्ट्रधर्म पत्रिका के विशेष अंक में, राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख चरणों का विस्तृत विवरण दिया गया है। इस अंक में आंदोलन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें हिंदू समाज की प्रतिक्रिया, राजनीतिक दलों की भूमिका और सरकार की नीतियों का विश्लेषण शामिल है।
इस अंक को एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में देखा जा सकता है। यह अंक राम मंदिर आंदोलन की पूरी कहानी को एक तथ्यात्मक और निष्पक्ष तरीके से प्रस्तुत करता है।
